‘भारत जोड़ने’ चली और खुद टूट रही कांग्रेस, आखिर मोदी से कैसे लड़ पाएगी?

कांग्रेस से लगातार बड़े नेताओं का पार्टी छोड़ना जारी है। पार्टी की पहचान रहे गुलाम नबी आजाद ने भी आज कांग्रेस छोड़ने का ऐलान कर दिया। साल 2014 में बीजेपी के केंद्र की सत्ता में आने के बाद पार्टी को छोड़कर जाने वालों की संख्या काफी बढ़ी है। इससे पहले कपिल सिब्बल ने भी शीर्ष नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया था।

नई दिल्ली : क्या देश का सबसे पुराना दल अब ‘समग्र रूप से नष्ट हो चुका है। कांग्रेस में शीर्ष नेतृत्व आतंरिक चुनाव के नाम पर ‘धोखा दे रहा है? आखिर क्या है कि देश में करीब 7 दशक तक सत्ता में रही पार्टी से उसके दिग्गज नेताओं का मोह भंग हो रहा है। चुनावी हार और दरकते जनाधार के बीच कांग्रेस अब तक सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है। ऐसे में कांग्रेस के लिए मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। जब कांग्रेस संगठनात्मक चुनाव की दिशा में आगे बढ़ रही है। पार्टी के अध्यक्ष का चुनाव होने वाला है। इस बीच आखिर क्या हो गया कि संसद के भीतर से लेकर बाहर तक पार्टी की पहचान रहा दिग्गज नेता पार्टी छोड़ने को मजबूर हो गया। गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे के बाद से एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी को लेकर सवाल उठ रहे हैं। एक तरफ पार्टी जहां भारत जोड़ो यात्रा की तैयारी कर रही हैं, वहीं पार्टी खुद टूट रही है। आखिर में क्या पार्टी को ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से पहले ‘कांग्रेस जोड़ो यात्रा’ की जरूरत है। गुलाम नबी आजाद ने अपने इस्तीफे में इसका भी जिक्र किया है। कई तथ्य इस बात की पुष्टि भी करते हैं। एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट के अनुसार 2014 और 2021 के बीच हुए चुनावों के दौरान 222 चुनावी उम्मीदवारों ने कांग्रेस पार्टी छोड़ी। वहीं, इस दौरान 177 सांसद और विधायक पार्टी को अलविदा कह चुके हैं। स्थिति यह है कि पिछले 8 महीने के दौरान ही कपिल सिब्बल, आरपीएन सिंह, अश्विनी कुमार, सुनील जाखड़, हार्दिक पटेल, कुलदीप बिश्नोई जैसे बड़े नेता पार्टी का दामन छोड़ चुके हैं। पूर्वोत्तर में असम से लेकर पश्चिम में गुजरात तक, उत्तर में जम्मू-कश्मीर से लेकर दक्षिण में केरल, तमिलनाडु तक पार्टी के दिग्गज नेता साथ छोड़ चुके हैं।

​कांग्रेस मोदी से कैसे करेगी मुकाबला?

साल 2024 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। मौजूदा स्थिति को देखें तो विपक्ष पूरी तरह से बिखरा हुआ है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2024 में अगर बीजेपी को सत्ता से दूर रखना है तो विपक्ष को एकजुट होना होगा। कई विश्लेषक मानते हैं क्षेत्रीय दलों की स्थिति और महत्वाकांक्षाओं को देखते हुए कांग्रेस को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। 2014 से पहले कांग्रेस ने जिस तरह से यूपीए सरकार चलाई थी, उसके लिए उसे फिर से अगुवा बनना होगा। इसके उलट जहां कांग्रेस दूसरों को एकजुट करती, उससे अपना ही घर नहीं संभल रहा है। ऐसे में सवाल है कि कांग्रेस पीएम मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को किस बूते मात दे पाएगी।

​गुलाम नबी कांग्रेस से हो गए ‘आजाद’

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने करीब पांच दशक बाद कांग्रेस को अलविदा कहा। आजाद ने राहुल गांधी पर परोक्ष रूप से हमला करते हुए अपने इस्तीफे में आरोप लगाया कि यह सब इसलिए हुआ क्योंकि बीते आठ वर्षो में नेतृत्व ने एक ऐसे व्यक्ति को पार्टी पर थोपने का प्रयास किया जो गंभीर नहीं था। उन्होंने आरोप लगाया कि दरबारियों के संरक्षण में कांग्रेस को चलाया जा रहा है। गुलाम नबीं ने कहा कि पार्टी देश के वास्ते सही चीजों के लिये संघर्ष करने की अपनी इच्छाशक्ति और क्षमता खो चुकी है। गुलाम नबी पार्टी में बदलाव की मांग करने वाले जी 23 समूह का हिस्सा रहे थे। आजाद ने पार्टी में संगठनात्मक चुनाव प्रक्रिया को ‘धोखा’ करार दिया। उन्होंने कहा कि देश में कहीं भी, पार्टी में किसी भी स्तर पर चुनाव संपन्न नहीं हुए।

​साइकिल पर सवार हुए थे कपिल सिब्बल

कांग्रेस में जी-23 गुट के प्रमुख नेताओं में शामिल कपिल सिब्बल ने इसी साल मई में पार्टी छोड़ दी थी। सिब्बल ने समाजवादी पार्टी की साइकिल की सवारी करना मुफीद समझा। सपा के टिकट पर वह राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए। पार्टी से इस्तीफा देने से पहले सिब्बल लगातार मिल रही चुनावों में हार का ठीकरा पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के सिर पर फोड़ा था। गांधी परिवार पर निशाना साधते हुए सिब्बल ने पूछा था कि जब अध्यक्ष ही नहीं है तो फैसले कौन ले रहा है? इससे पहले चांदनी चौक से सांसद, यूपीए सरकार में केंद्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री भी रहे। सिब्बल ने कई बड़े मसलों पर सुप्रीम कोर्ट में पार्टी की पुरजोर तरीके से पैरवी की थी। वहीं, पार्टी के शीर्ष नेतृ्त्व के खिलाफ आवाज उठाने पर उनके घर पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं की तरफ से तोड़फोड़ भी हुई थी।

​पंजाब : 50 साल का छूटा साथ

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इस साल उदयपुर में जारी चिंतन शिविर के बीच पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ ने पार्टी से अपना रिश्ता खत्म कर लिया था। जाखड़ का कांग्रेस से तीन पीढ़ियों का रिश्ता था। पंजाब में सीएम पद के दावेदार रहे सुनील जाखड़ को अनुशासन तोड़ने का दोषी करार देते हुए पार्टी की ओर से कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। जाखड़ इससे काफी नाराज थे। वहीं, पिछले साल विधानसभा चुनाव से पहले नवंबर में पहले पार्टी के कद्दावर नेता और प्रदेश के सीएम रहे अमरिंदर सिंह ने भी इस्तीफा दे दिया था। एक माह तक बगावती तेवर अपनाने के बाद उन्होंने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपना इस्तीफा भेजकर कांग्रेस से किनारा कर लिया था। इसके बाद उन्होंने अपनी अलग पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस बनाई कर चुनाव में बीजेपी से गठबंधन किया था। वहीं, पंजाब से इस साल फरवरी में पार्टी को एक और झटका अश्विनी कुमार के रूप में लगा था। पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार 46 साल तक कांग्रेस के साथ थे।

​यूपी में कांग्रेस के आरपीएन से लेकर जितिन के रूप में झटका

यूपी में पार्टी को आरपीएन सिंह, जितिन प्रसाद और अदिति सिंह के रूप में झटके पर झटके लगे। राहुल के करीबी रहे आरपीएन सिंह इस साल जनवरी में यूपी चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हो गए थे। पार्टी ने उन्हें एक दिन पहले ही स्टार प्रचारक बनाया था। इस साल कांग्रेस से इस्तीफा देने वालों में विधायक अदिति सिंह भी शामिल थीं। इससे पहले पिछले साल जून में वरिष्ठ कांग्रेस नेता जितेंद्र प्रसाद के बेटे और राहुल की मंडली में शामिल जितिन प्रसाद ने भी कांग्रेस को अलविदा कह दिया था। यूपी में ब्राह्मण चेहरे के रूप में पार्टी की पहचान रहे जितिन के जाने से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा था। शाहजहांपुर में कांग्रेस का मतलब जितिन प्रसाद से था।

​गुजरात : हार्दिक का हुआ था मोहभंग

गुजरात में इस साल विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी को हार्दिक पटेल के रूप में बड़ा झटका लगा। हार्दिक पटेल ने पार्टी छोड़ते हुआ आरोप लगाया था कि पार्टी देशहित और समाज हित के बिल्कुल विपरीत काम कर रही है। वहीं, इससे पहले शंकर सिंह वाघेला ने भी पार्टी छोड़ी थी। कांग्रेस ने हार्दिक पटेल को प्रदेश कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। इससे पहले 2017 में कांग्रेस में बगावत हुई थी। उस समय शंकर सिंह वाघेला ने कांग्रेस से इस्तीफे का ऐलान कर दिया था। उन्होंने कहा था कि आत्मसम्मान से समझौता नहीं कर सकता। इससे पहले वाघेला बीजेपी में रहे थे। कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद वह एनसीपी में शामिल हो गए थे।

​बिहार में शत्रुघ्न सिन्हा, कीर्ति आजाद ने दिया झटका

बिहार में इस साल कांग्रेस को शत्रुघ्न सिन्हा ने झटका दिया था। सिन्हा ने पार्टी से 3 साल पुराना रिश्ता तोड़ लिया था। इससे पहले शत्रुघ्न सिन्हा 28 साल तक बीजेपी में रहे थे। उन्होंने यशंवत सिन्हा और प्रशांत किशोर के कहने पर टीएमसी का दामन थामा था। वहीं, कांग्रेस को कीर्ति आजाद के रूप में भी झटका लगा था। कीर्ति आजाद ने भी पिछले साल नवंबर में कांग्रेस छोड़ कर टीएमसी का दामन था लिया था। बीजेपी में अरुण जेटली से तल्खियां बढ़ने पर आजाद ने पिछले लोकसभा चुनाव के समय कांग्रेस जॉइन की थी। उन्होंने कांग्रेस की टिकट पर लड़ा लेकिन वह जीत नहीं सके। कीर्ति आजाद को दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने की भी चर्चा थी लेकिन ऐसा नहीं होने पर खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे थे।

हरियाणा में बिश्नोई के रूप में ‘ताजा घाव’

हरियाणा में कांग्रेस को कुलदीप बिश्नोई और अशोक तंवर के रूप में बड़ा झटका लग चुका है। इस महीने की शुरुआत में कुलदीप बिश्नोई ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामा है। पार्टी छोड़ते समय बिश्नोई ने कहा कि कांग्रेस अपनी विचारधारा से भटक गई है और अब वह इंदिरा गांधी तथा राजीव गांधी के समय वाली पार्टी नहीं रही। कांग्रेस ने जून में हुए राज्यसभा चुनाव में बिश्नोई के क्रॉस वोटिंग करने के बाद उन्हें पार्टी के सभी पदों से हटा दिया था। 4 बार के विधायक और दो बार के सांसद पहले से ही पार्टी से नाराज चल रहे थे। इससे पहले दलित नेता अशोक तंवर ने भी पार्टी छोड़ दी थी। साल 2019 में अपने इस्तीफे के समय तंवर ने कहा था कि कांग्रेस के भीतर कुछ लोगों की वजह से पार्टी अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। तंवर ने इससे पहले पैसे लेकर टिकट बेचने का आरोप लगातेहुए सोनिया गांधी के आवास के बाहर प्रदर्शन किया था।

​पूर्वोत्तर में झटके से नहीं उबर पा रही कांग्रेस

पूर्वोत्तर के असम में हिमंत बिस्वा सरमा के रूप में कांग्रेस को ऐसा झटका लगा है कि पार्टी उससे उबर ही नहीं पा रही है। हिमंत बिस्वा सरमा बीजेपी में आने का बाद ना सिर्फ पार्टी को सत्ता में लाए बल्कि सीएम भी बने। सरमा ने भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी को लेकर सवाल खड़े किए थे। सरमा का कहना है कि कांग्रेस में समस्या यह है कि राहुल गांधी को जबरन आगे बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। इससे पहले पिछले साल अगस्त में महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देव कांग्रेस को छोड़कर तृणमूल कांग्रेस के पाले में चली गईं। सुष्मिता देव के पिता संतोष मोहन देव की असम में अच्छी पकड़ रही। वह राजीव गांधी सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे थे। पिता के बाद सुष्मिता देव ने भी लोकसभा में कांग्रेस की टिकट पर सिल्चर सीट से जीतकर सांसद बनी थीं।

​पश्चिम बंगाल से गोवा, तमिलनाडु से केरल तक झटका

कभी गांधी परिवार को देश की फर्स्ट फैमिली बताने वाले पीसी चाको का भी कांग्रेस से मोह भंग हो गया। पिछले साल केरल चुनाव के दौरान पीसी चाको ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। पीसी चाको 1998 से 2009 के बीच हुए 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच करने वाली जेपीसी का हिस्सा रहे थे। वहीं, तमिलनाडु से पार्टी की दिग्गज नेता जयंती नटराजन ने साल 2015 में पार्टी को अलविदा कहा था। जयंती ने अपने इस्तीफे में राहुल गांधी पर सवाल उठाए थे। उन्होंने पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा देते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर काम-काज में दखल देने और पर्यावरणीय मंजूरी के संबंध में ‘विशेष अनुरोध’ करने का आरोप भी लगाया था। वहीं, गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस पार्टी के विधायक लुइज़िन्हो फलेरो ने पिछले साल सितंबर में पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजित मुखर्जी ने भी कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था।

अब्दुल्ला क्यों देख रहे कांग्रेस के लिए उम्मीद

गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे पर जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि कांग्रेस ने अतीत में गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे जैसे कई झटके झेले हैं। उन्होंने कहा कि बाद में मजबूत होकर उभरी है। अब्दुल्ला ने कहा कि आजाद को शायद कांग्रेस में सम्मान नहीं मिल रहा होगा, लेकिन पहले तो उसी पार्टी ने उनपर खूब प्यार बरसाया था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस मजबूत वापसी करेगी। देश को एक मजबूत विपक्ष की जरूरत है।