छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले से करीब 70 किलोमीटर दूर बसे आदिवासी बाहुल्य गांव शिवतराई को दुनिया तीरंदाजी के लिए जानती है. इस गांव के युवाओं को जबसे इनके गुरु द्रोणाचार्य मिले हैं, तब से यहां के घर-घर में एक तीरंदाज है. ये द्रोणाचार्य हैं कॉन्स्टेबल लाल इतवारीराज. इन्होंने इस गांव के युवाओं को दुनिया भर में पहचान दिलाने का जिम्मा साल 2004 में उठाया था. तभी से ये घनघोर जंगल में बसे इस गांव में लड़के और लड़कियों को देशी जुगाड़ से तीरंदाजी सीखा रहे हैं.
चैंपियन ने गांव को भी बना दिया चैंपियन
इन्होंने इस गांव को दुनिया की नजरों में चैंपियन बना दिया है. शिवतराई के लाल इतवारीराज बच्चों को प्रशिक्षित करने साथ साथ खुद भी कई खेलों में माहिर हैं. तीरंदाजी, कबड्डी और रनिंग में इनका जवाब नहीं. तीरंदाजी अकादमी चलाने वाले इतवारीराज संयुक्त एमपी में ग्रामीण और क्षेत्रीय टूर्नामेंट में भाग लेते थे. 1992 में आयोजित क्षेत्रीय दौड़ प्रतियोगिता में उन्होंने पहला स्थान पार किया था. तब से यह सिलसिला लगातार बरकरार है.
पुलिस में हैं कॉन्स्टेबल
एनबीटी की रिपोर्ट के अनुसार खेलों में माहिर होने के बावजूद इतवारीराज को नौकरी पाने के लिए काफी संघर्ष और मेहनत करनी पड़ी. आखिरकार 16 अक्टूबर 1998 को उन्हें पुलिस की नौकरी मिल गई. इसके बाद समाजिक जनकल्याण और ग्रामीण युवाओं के बेहतर भविष्य के लिए वह गांव के आस-पास के बच्चों को तीरंदाजी की ट्रेनिंग देने लगे. उनके सैकड़ों स्टूडेंट राज्यस्तरीय और राष्ट्रीय स्तर के मुकाबलों में भाग ले चुके हैं. यही वजह है कि दूर-दराज के लोग अब शिवतराई गांव को चैंपियन का गांव कहते हैं.
दरअसल, आदिवासी बाहुल्य इस जंगली इलाके में बसे गांव को तीरंदाजी का हुनर विरासत में मिला है. ये लोग वर्षों से शिकार के लिए तीर-धनुष का इस्तेमाल करते आ रहे हैं. लोगों में जागरूकता आने के बाद उन्होंने समय के साथ साथ शिकार करना छोड़ दिया. गांव के बच्चे भी पढ़ने लिखने में व्यस्त होने के कारण अपने पूर्वजों की इस परंपरा से दूर होते गए. ऐसे में इतवारीराज ने अपने नए जमाने की सोच से बच्चों को अवसर देकर गांव की पुरानी परंपरा को फिर से शुरू किया है. लेकिन इतवारीराज इस बार बच्चों को शिकार पर निशाना लगाने के लिए नहीं बल्कि पूरी दुनिया में नाम कमाने के लिए तीरंदाजी सिखा रहे हैं.
चार बच्चों से शुरू हुआ था सफर
2004 में इतवारीराज ने अपनी जेब से पैसे लगा कर चार लड़के और लड़कियों को तीरंदाजी सिखाना शुरू किया था. समय के साथ बच्चों के अच्छे प्रदर्शन को देखकर धीरे-धीरे इतवारीराज ने पूरे गांव के तकरीबन 250 से 300 बच्चे को तीरंदाजी सिखा दी. जब यह बच्चे देशभर में अपने तीरंदाजी के लिए पहचाने जाने लगे तो सरकार ने भी उनकी मदद की. कुछ साल पहले सरकार की ओर से इस गांव में ट्रेनिंग सेंटर खोला गया. इसके साथ ही खेल से संबधित अलग-अलग सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं.
आदिवासी गांव शिवतराई के तीरंदाज राज्यस्तर पर 500 से अधिक और राष्ट्रीयस्तर पर 186 मेडल जीत चुके हैं. खुद इतवारीराज के बेटे अभिलाष राज भी तीरंदाजी में माहिर हैं.