संविधान देता है अधिकार… अलगाववादी नेता अल्ताफ अहमद शाह को कैंसर पर कोर्ट ने एम्स शिफ्ट करने का दिया आदेश

अलगाववादी नेता के इलाज के मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि पर्याप्त और उपयुक्त उपचार का अधिकार संविधान देता है और यह मौलिक अधिकारों का हिस्सा है। यह कहते हुए कोर्ट ने अलगाववादी नेता को एम्स शिफ्ट करने की इजाजत दे दी।

delhi high court
नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने कश्मीरी अलगाववादी अल्ताफ अहमद शाह को कैंसर के इलाज के लिए एम्स में शिफ्ट करने का आदेश दिया है। वह इस समय जेल में हैं और NIA की जांच वाले टेरर फंडिंग के एक मामले में मुकदमे का सामना कर रहे हैं। दिवंगत हुर्रियत नेता एसएएस गिलानी के दामाद शाह ने अदालत को बताया कि वह राम मनोहर लोहिया अस्पताल (RML) में कुछ गंभीर बीमारियों का इलाज करा रहे थे, लेकिन हाल में पता चला कि वह गुर्दे के कैंसर से पीड़ित हैं, जो अंतिम चरण में है।
यह दावा करते हुए कि आरएमएल में गुर्दे के कैंसर के इलाज के लिए पर्याप्त सुविधा नहीं है, उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि उन्हें इलाज के लिए तत्काल एम्स या अपोलो अस्पताल में शिफ्ट करने की अनुमति दी जानी चाहिए। न्यायमूर्ति सुधीर कुमार जैन ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत मामले के गुण-दोष में गए बिना कहा कि पर्याप्त और उपयुक्त उपचार का अधिकार संविधान के तहत मौलिक अधिकारों का हिस्सा है। कोर्ट ने कहा कि यह न्याय के हित में है कि याचिकाकर्ता को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में इलाज मिले।
हाई कोर्ट ने तीन अक्टूबर के अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता की ओर से पेश मेडिकल रिकॉर्ड से पता चलता है कि याचिकाकर्ता कई बीमारियों से पीड़ित है। उन्हें गुर्दे का कैंसर होने का भी पता चला है, हालांकि याचिकाकर्ता की ओर से ऐसा कोई चिकित्सा दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया है।
अदालत ने कहा कि परिस्थितियों की समग्रता और न्याय के हित में विचार करने के बाद यह आदेश दिया जाता है कि याचिकाकर्ता को संबंधित न्यायिक हिरासत और जेल अधीक्षक की प्रत्यक्ष निगरानी के तहत उचित इलाज के लिए एम्स, दिल्ली में स्थानांतरित किया जाए और सभी आवश्यक सुरक्षा उपायों का पालन किया जाए।
NIA ने कहा कि वर्तमान में, यह दर्शाने के लिए कोई मेडिकल रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है कि याचिकाकर्ता गुर्दे के कैंसर से पीड़ित है और आरएमएल के डॉक्टरों ने उसे किसी अन्य अस्पताल में स्थानांतरित करने की सिफारिश नहीं की है। अदालत ने अपने आदेश में याचिकाकर्ता को अपने बेटे या बेटी से दिन में एक बार अस्पताल में एक घंटे के लिए मिलने की भी अनुमति दे दी। याचिकाकर्ता को एम्स ले जाने और आगे के इलाज के लिए आवश्यक खर्च याचिकाकर्ता द्वारा वहन किया जाएगा।