राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को 63,000 रुपये मुआवजा देने के आदेश दिए हैं।
राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को 63,000 रुपये मुआवजा देने के आदेश दिए हैं। आयोग ने स्पष्ट किया कि इंश्योरेंस कंपनी को यह राशि 9 फीसदी ब्याज दर के साथ शिकायतकर्ता को देनी होगी। आयोग के अध्यक्ष सेवानिवृत्त न्यायाधीश इंदर सिंह मेहता और सदस्य सुनीता शर्मा और आरके वर्मा की पीठ ने भूपेंद्र पाल की अपील को स्वीकार करते हुए यह निर्णय सुनाया।
वैध बीमा अवधि के दौरान अपीलार्थी की गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। गाड़ी ठीक करने पर 1.8 लाख का खर्च आया। अपीलार्थी ने इंश्योरेंस कंपनी से खर्चा देने की मांग की। कंपनी ने सिर्फ 78,000 रुपये का नुकसान आंका। इंश्योरेंस कंपनी ने अपीलार्थी को मुआवजा देने से इनकार कर दिया था। इस पर भूपेंद्र पाल ने जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम मंडी के समक्ष इसकी शिकायत की। इसे फोरम ने खारिज कर दिया था।
जिला उपभोक्ता विवाद निवारण मंडी के फैसले को आयोग के समक्ष अपील के माध्यम से चुनौती दी। अपीलार्थी ने दलील दी कि उसने अपनी गाड़ी का बीमा यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी से करवाया था। आयोग ने पाया कि इंश्योरेंस कंपनी ने गलत और मनमाने तरीके से नुकसान की भरपाई से इनकार किया है। पाया कि दुर्घटना के समय अपीलार्थी के वाहन का बीमा इंश्योरेंस कंपनी से किया गया था। अपीलार्थी गाड़ी के नुकसान लेने का हक रखता है।
चेक बाउंस के मामले में एक लाख की सजा
जिला अदालत चक्कर ने चेक बाउंस मामले में एक लाख रुपये की सजा सुनाई है। चेक की राशि का दोगुना छह लाख रुपये मुआवजा देने के आदेश दिए गए हैं। न्यायिक दंडाधिकारी प्रतिभा नेगी ने हिमाचल प्रदेश वाणिज्यिक निगम की शिकायत पर यह निर्णय सुनाया। कुल्लू निवासी दोषी दौलतराम ने शिकायतकर्ता की दुकान से 9.15 लाख का सामान लिया था। दोषी शिकायतकर्ता कर्ज की राशि को चुकता न कर सका। दोषी ने शिकायतकर्ता को तीन लाख रुपये का चेक जारी किया था। चेक बाउंस होने पर निगम ने दोषी के खिलाफ न्यायिक दंडाधिकारी शिमला की अदालत में शिकायत दर्ज करवाई। गवाहों के बयान और दस्तावेजों के आधार पर अदालत ने पाया कि दोषी ने निगम को गुमराह करने के इरादे से चेक जारी किया था। अदालत ने दौलतराम को चेक बाउंस मामले में दोषी पाते हुए यह सजा सुनाई।