पैग़ंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी के ख़िलाफ़ रांची में 10 जून को हुई हिंसा के कई वीडियो क्लिप वायरल हैं.
इनमें से एक में सड़क पर अकेले आगे बढ़ रहा एक निहत्था किशोर दिखता है. उसके पीछे चल रहे कुछ लोग इस्लाम जिंदाबाद का नारा लगाते हैं.
वह महात्मा गांधी मार्ग (मेन रोड) के डिवाइडर पर चढता है. तभी एक गोली सामने से उसके सिर में लगती है. वो वहीं पर गिर जाता है. तब उसके पीछे चल रहे कुछ युवा आगे आते हैं. आवाज आती है – भाई ये मर गया. ये मर गया भाई…!
देर शाम यह बात फैलती है कि वो 15 साल मुद्दसिर है, जो हिंदपीड़ी के राईन मोहल्ले में रहने वाले परवेज़ आलम का इकलौता बेटा है. उसे इलाज के लिए राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान (रिम्स) में भर्ती कराया गया है और उसकी हालत नाजुक है.
आधी रात बाद उसकी मौत हो जाती है.
रिम्स में इलाज करा रहे 24 साल के साहिल की मौत भी उसी रात हो गई. रात में ही उनका पोस्टमॉर्टम कराया गया और शव परिवारवालों को सौंप दिया गया. अगले दिन इन दोनों लोगों को अलग-अलग क़ब्रिस्तानों में दफ़्न किया गया.
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10 लोग गोली लगने से ज़ख़्मी
ये दोनों उन 10 लोगों में शामिल थे, जिन्हें पैग़ंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी किए जाने के ख़िलाफ़ रांची में हुए प्रदर्शन के दौरान भड़की हिंसा में गोलियां लगी थीं.
बीबीसी को रिम्स से हासिल दस्तावेजों में इतने लोगों को बुलेट इंजरी की पुष्टि हुई है. इनमें से तीन लोगों की हालत चिंताजनक बनी हुई है. इन सबका इलाज रिम्स में कराया जा रहा है. इनमें सरफ़राज, तबारक, उस्मान, अफसर, साबिर और शाहबाज़ को अगले कुछ दिनों तक अस्पताल में ही रहना होगा. इन सबकी उम्र 15 से 30 साल के बीच है.
झारखंड पुलिस के प्रवक्ता एवी होमकर के मुताबिक़ एक पुलिसकर्मी को भी बुलेट इंजरी है. उन्हें रिम्स के अर्थो वॉर्ड में रखा गया है. उनकी हालत ख़तरे से बाहर बताई जा रही है.
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कैसे भड़की थी रांची में हिंसा?
10 जून की दोपहर जुमे की नमाज़ के बाद मुस्लिम समुदाय के लोगों ने बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा की गिरफ़्तारी की मांग को लेकर मेन रोड में जुलूस निकाला था.
इनमें से कुछ लोगों के हाथ में धार्मिक झंडे भी थे, तो कुछ न काले झंडे ले रखे थे. जुलूस में शामिल लोग हनुमान मंदिर तक शांतिपूर्ण तरीक़े से अपनी मांगों के समर्थन में नारेबाज़ी करते जा रहे थे.
आरोप है कि तभी जुलूस में शामिल कुछ लोगों ने हनुमान मंदिर के ऊपर पथराव शुरू कर दिया. जुलूस में ही शामिल कुछ लोगों ने अपने साथियों से वापस लौटने की अपील की, जो अनसुनी कर दी गई.
वहाँ तैनात पुलिस पहले तो चुप थी लेकिन कुछ ही देर बाद पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी. इसके बाद भीड़ में शामिल लोग और हिंसक हो गए.
इस दौरान हुए पथराव में एक थानेदार का सिर फटा. एसएसपी को चोटें लगीं और कई दूसरे पुलिसकर्मी भी घायल हो गए. पुलिस के मुताबिक़ इस हिंसा में 12 पुलसिकर्मियों समेत कुल 24 लोग घायल हुए.
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किसके कहने पर निकला जुलूस?
अंजुमन इस्लामिया के निवर्तमान सदर (प्रमुख) अबरार अहमद ने बीबीसी से कहा कि यह जुलूस स्वतः था. यह बात किसी को नहीं मालूम कि इसका आह्वान किस संगठन या किन लोगों ने किया था. किसके बुलावे पर इतनी भीड़ जमा हो गई.
उन्होंने कहा, ”पहले जब भी हमलोग धार्मिक प्रदर्शन करते थे, तो पुलिस-प्रशासन को इसकी अग्रिम सूचना दे देते थे. कभी ऐसा नहीं हुआ कि भीड़ हिंसक हो गई हो. यहाँ हमेशा से अमन-चैन का माहौल रहा है और हर विवादित मसले का समाधान आपसी बातचीत से सौहार्द्रपूर्ण माहौल में होता रहा है. यह पहली दफ़ा है, जब इतना बड़ा हंगामा हुआ और लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी.
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क्या पुलिस को थी प्रदर्शन की सूचना
पुलिस ने भी अभी तक यह बात सार्वजनिक नहीं की है कि इस जुलूस की उन्हें पूर्व सूचना थी या नहीं. हालांकि, इस जुलूस निकलने से महज़ एक घंटा पहले पुलिस ने उसी सड़क पर फ्लैग मार्च किया था.
अलबत्ता डेली मार्केट दुकानदार संघ ने अपनी दुकानें बंद रखने की पूर्व घोषणा कर रखी थी. इनकी दुकानें शुक्रवार की सुबह से ही बंद भी थीं. यह फलों का थोक बाज़ार है, जहाँ अधिकतर दुकानें मुसलमानों की हैं. ये सबलोग पैग़ंबर मोहम्मद पर टिप्पणी से आहत थे.
पुलिस को क्यों करनी पड़ी फायरिंग?
रांची के उपायुक्त (डीसी) छविरंजन और एसएसपी सुरेंद्र कुमार झा ने रविवार को इस बावत एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस दौरान दोनों अधिकारियों ने पुलिस फायरिंग को तत्कालीन स्थिति के अनुसार लिया गया उचित फ़ैसला बताया. डीसी ने कहा कि हमने पहले एहतियात बरती, बाद में फायरिंग का निर्णय लिया.
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एसएसपी सुरेंद्र कुमार झा ने मीडिया से कहा, ”हमें इस बात की ट्रेनिंग दी गई है कि हम किस मोड़ पर क्या निर्णय लेंगे. हमें लोगों की सुरक्षा करनी है और शहर का माहौल न बिगड़े, इसकी व्यवस्था करनी है. ऐसे में हमें किस वक़्त क्या एक्शन लेना है, इसकी ट्रेनिंग पहले से है. हमने फायरिंग का निर्णय उसी हिसाब से लिया. इससे बहुत बड़ी अनहोनी टल गई.”
गौरतलब है कि पुलिस ने फायरिंग से पहले न तो आंसू गैस के गोले छोड़े, न वाटर कैनन का प्रयोग किया. उग्र भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस सामान्य तौर पर इन उपायों को आजमाती है.
शुक्रवार को हुई हिंसा के वक़्त क्या पुलिस ने वहाँ आंसू गैस और वाटर कैनन की व्यवस्था की थी? क्या प्रदर्शनकारियों को लाउडस्पीकर से चेतावनी दी गई थी?
प्रेस कॉन्फ़्रेंस में ये सारे सवाल पूछे गए लेकिन पुलिस का कहना है कि किसी भी तरह की अनहोनी को रोकने के लिए मजबूर होकर गोली चलानी पड़ी.
क्या बिना चेतावनी के गोली चलाना उचित है?
वो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख़बरें जो दिनभर सुर्खियां बनीं.
ड्रामा क्वीन
समाप्त
झारखंड और बिहार में महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके सेवानिवृत आइपीएस रामचंद्र राम कहते हैं कि रांची पुलिस ने सही निर्णय लिया था.
उन्होंने कहा, “अगर भीड़ हिंसक हो जाए और कोई उपाय नहीं बचे, तो पुलिस क्या करती. उसने लोगों की जान बचाने के लिए उचित निर्णय लिया. हमलोग जो वीडियोज देख पा रहे हैं, उसमें रांची पुलिस की कार्रवाई प्रारंभिक तौर पर उचित जान पड़ती है. वह भीड़ काफ़ी हिंसक थी.”
हालांकि, चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता नदीम ख़ान इससे उलट राय रखते हैं.
उन्होंने बीबीसी से कहा, ”पुलिस कभी सीधे फायरिंग नही करती है. एक तो यह जांच का विषय है कि शांतिपूर्वक जुलूस निकाल रहे लोग हिंसक क्यों हो गए. दूसरा यह कि पुलिस ने वाटर कैनन, रबर बुलेट, आंसूगैस या लाठीचार्ज जैसे उपायों को क्यों नहीं आजमाया. वह भी तब जब पुलिस को इस प्रदर्शन की जानकारी पहले से थी.”
‘मुझे पक्की सूचना है कि शुक्रवार की सुबह डेली मार्केट थाना प्रभारी ने दुकानदारों के साथ बैठक की थी और कहा था कि आपलोग अपनी दुकानें बेशक बंद रखें लेकिन कोई प्रदर्शन नहीं करें. लेकिन लोगों ने उनकी बात मानने से इनकार कर दिया था.”
”पुलिस को तभी सचेत हो जाना चाहिए था. इस प्रदर्शन की ख़बरें अख़बारों में भी छपी थीं. इसलिए पुलिस यह नहीं कह सकती कि यह सब अचानक हुआ. पुलिस ने जानबूझकर लोगों को निशाने पर लेकर फायरिंग की. इसका प्रमाण काली मंदिर के पास बिजली के पोल में गड़ा वह बुलेट है, जो आदमी के कद की हाइट पर लगा हुआ है. कई लोगों को शरीर के ऊपरी हिस्से में गोलियां लगी हैं. ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि कहीं पुलिस पर भी धार्मिक ध्रुवीकरण का प्रभाव तो नहीं है.”
सरकार पर सवाल
पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी इस पूरी घटना के लिए सरकार को ज़िम्मेदार ठहराते हैं.
उन्होंने बीबीसी से कहा, ”रांची में हुई हिंसा पूरी तरह से हेमंत सोरेन सरकार की विफलता है. क्या इतनी बड़ी घटना अचानक हो गई. अगर सरकार ने पहले से आवश्यक निर्देश दिए होते और प्रशासन ने ज़रूरी इंतजामात किए होते, तो उपद्रवियों का मन नहीं बढ़ता. गोली चलाने की नौबत नहीं आती. भीड़ का तो अपना चरित्र होता है. उस दिन मैं रांची में नहीं था लेकिन मुझे जो जानकारी मिली है और मैंने जो फुटेज देखे हैं, उनमें साफ़ दिखता है कि घटनास्थल पर पुलिस की संख्या काफ़ी कम थी. वहाँ हिंदू समाज के लोगों ने तो कोई विरोध नहीं किया था. फिर मुस्लिम समाज के लोग क्यों उग्र हो गए. यह बड़ा सवाल है.”
बाबूलाल मरांडी ने आगे कहा, ”मुझे तो लगता है कि यह सरकार प्रायोजित हिंसा है. ईडी और दूसरी एजेंसियों द्वारा मुख्यमंत्री और उनके क़रीबी लोगों के ख़िलाफ़ की जा रही कार्रवाई से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए सरकार ने जानबूझकर यह हिंसा कराई है. अब उनलोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए, जो उस हिंसक जुलूस का नेतृत्व कर रहे थे.
जाँच करा रही सरकार
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झारखंड सरकार मे शामिल कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने इस बावत कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस घटना की जांच के लिए वरिष्ठ अधिकारियों की टीम बनाई है. वे सात दिनों में अपनी रिपोर्ट देंगे. सरकार उस आधार पर आगे का निर्णय लेगी.
उन्होंने बीबीसी से कहा, ”जाँच से ही तो दूध का दूध और पानी का पानी होगा. बगैर जाँच कोई संवेदनशील सरकार कैसे निर्णय ले सकती है. मेरी अपील है कि इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाएं. इस संबंध में की गई अनर्गल बयानबाजी उचित नहीं कही जाएगी. यह दुखद घटना है. इसकी दोहराव नहीं हो, इसके लिए सरकार पूरी संजीदगी से काम कर रही है. किसी भी संस्था या संगठन को राज्य का माहौल बिगाड़ने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.”
पुलिस पर हत्या का आरोप
इस हिंसा में मारे गए मुद्दसिर के पिता परवेज़ आलम ने अपनी पुलिस कंप्लेन में कुछ पुलिसकर्मियों को नामज़द करते हुए उन पर अपने बेटे की हत्या का आरोप लगाया है. इसकी प्रति बीबीसी के पास मौजूद है.
उन्होंने अपनी शिकायत में आरोप लगाया है कि सड़क पर तैनात पुलिसकर्मियों ने गोलियां चलाईं. तभी जुलूस में शामिल लोगों ने भी पथराव शुरू कर दिए. इस कारण भगदड़ मची. इस दौरान गोली लगने से मुदद्सिर की मौत हो गई.