सरकारी कार्यक्रमों और रैलियों में नहीं आता कोरोना यकीन नहीं आता तो खुद देख लें।

सरकारी कार्यक्रमों और रैलियों में नहीं आता कोरोना यकीन नहीं आता तो खुद देख लें।

हिमाचल में लगातार कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे है। चार दिनों में सोलन में  करीबन चार गुणा मामले हो चुके है।  प्रदेश सरकार ने कई तरह की पाबंदियां लगा दी है। शाम को दस बजे से सुबह पांच बजे तक का कर्फ्यू लगा दिया गया है। जिसे देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि प्रदेश सरकार इस बार कोरोना को नियंत्रण करने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है। लेकिन दूसरी और प्रदेश सरकार द्वारा ही भव्य कार्यक्रम आयोजित कर कोरोना नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है।  सरकारी आदेशों में तो इंडोर  कार्यक्रम 50 प्रतिशत कैपेसिटी पर आयोजित किए जा सकते है। लेकिन मंत्री का कार्यक्रम फ्लॉप साबित न हो इस लिए जिले के विभिन्न क्षेत्रों से कार्यकर्ताओं को आमंत्रित कर भारी संख्या में लोग जुटाए जाते हैं।  कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए कार्यकर्ताओं को लोगों को लाने का टारगेट दिया जाता है ताकि कार्यक्रम भव्य दिखाई दे।  ऐसा लगता है कि प्रदेश सरकार के नेताओं को कोरोना से ज़्यादा कार्यक्रम को सफल बनाने की चिंता होती है चाहे उसका अंजाम कुछ भी हो।  ऐसा ही वाक्या परवाणु में देखने को मिला जहाँ हिमाचल की पुष्प मंडी का उद्घाटन किया जाना था। जिसका उद्घाटन सूक्ष्म रूप में और वर्चुल रूप में भी किया जा सकता था। लेकिन  उद्घाटन जोर शोर के साथ किया गया।  भारी संख्या में कार्यकर्ताओं और किसानों  को इसमें बुलाया गया। जिसे देख कर ऐसा लगता है कि सरकारी कार्यक्रमों में कोरोना नहीं आता है।   यही नहीं जिम्मेदार  राजनेता और पदाधिकारी  इस भीड़ में बिना मास्क भी घूम सकते है। कृषि विपणन बोर्ड के अध्यक्ष बलदेव भंडारी ने तो कार्यक्रम के आरम्भ से लेकर अंत तक एक बार भी मास्क नहीं डाला। इसी तरह कार्यक्रम में कई पदाधिकारी थे जो नियमों की धज्जियां उड़ा रहे थे।  लेकिन प्रशासन उनके आगे नतमस्तक खड़ा नज़र आया और अपनी आँखों पर पट्टी बांधे रहा।  बाज़ार में किसी भी जन साधारण को बिना मास्क देख कर उसका पांच सौ रूपये का चालान कर दिया जाता है लेकिन रैलियों में सभी को छूट दे दी जाती है। अब ऐसे में कोरोना फैलेगा या नहीं  यह कार्यकर्ताओं और रैलियों में शामिल होने वाले नागरिकों को सोचने की आवश्यकता है।