कोरोना ने नौकरी छीनी, हौसला बना हथियार… अब US, कनाडा तक कारोबार बढ़ाने की तैयारी में प्रतापगढ़ के अरविंद

Pratapgarh Arvind Success Story: प्रतापगढ़ के अरविंद ने सफलता के लिए काफी कोई शॉर्टकट नहीं चुना। बल्कि खुद को तैयार किया। जिंदगी ने उन्हें एक मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया, जहां उन्हें एक डिसीजन लेना था, तो वे अपनी बनाई राह पर चल निकले। आज सफलता उनके साथ चल रही है।

Pratapgarh Coconut

प्रतापगढ़: हर सफल व्यक्ति की एक कहानी होती है। कहानी ऐसी जो आपको प्रेरित करती है। उन मुश्किल समय में जब आपके सामने जीवन की राह चुनने के दो विकल्प होते हैं, एक सरल सीधा और दूसरा जोखिम भरा। ये कहानियां आपको उचित राह पर चलने का हुनर बताती हैं। सिखाती हैं। कुछ ऐसी ही कहानी प्रतापगढ़ जिले के सदर ब्लॉक के रामगढ़ी गांव निवासी अरविंद कुमार की है। परिस्थितियां उनके लिए कभी अनुकूल नहीं थीं। लेकिन, हार न मानने की जिद ने आज उन्हें सुर्खियों में ला दिया है। हालांकि, इस सफलता के लिए उन्होंने पहले खुद को तैयार किया। परिस्थितियां प्रतिकूल हुईं तो उन्होंने अपने अनुभवों का इस्तेमाल खुद को स्थापित करने में किया। आज वे अपने उत्पाद को अमेरिका और कनाडा तक भेजने की योजना पर काम कर रहे हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं नारियल का खाद तैयार करने वाले अरविंद कुमार की।

फल आपके लिए, ये तो गुठलियों से निकाल रहे मुनाफा
अरविंद कुमार ने नारियल के खाद तैयार करने की योजना पर काम शुरू किया है। आप नारियल का फल खाने के बाद उसके छिलके और कड़ी वाली परत को फेंक देते हैं। इसी का उपयोग कर अरविंद मुनाफा कमा रहे हैं। यकीन नहीं हो रहा है न। लेकिन, यही सच है। भले ही देश के उत्तरी भाग में नारियल की पैदावार वैसी नहीं होती, लेकिन खपत खूब होती है। पूजा-पाठ से लेकर नारियल पानी तक। आप और हम इसका रोज उपयोग करते हैं। अरविंद इसी नारियल के बचे हिस्से से खाद बनाते हैं। उसकी मांग अपने देश में ही नहीं विदेशों तक है।

गरीबी ने पढ़ाई छुड़ाई, शुरू किया काम
अरविंद की जिंदगी तंगहाली में गुजरी है। गरीबी ने उन्हें खासा प्रभावित किया। कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि के कारण इंटर के बाद कमाई का दबाव बना। फरवरी 2008 में मुंबई चले गए। मैकेनिकल सुपरवाइजर के तौर पर एक कंपनी में काम किया। 6 साल काम करने के बाद कम कमाई, अधिक मेहनत और परिवार के बढ़ते खर्च ने सोचने पर मजबूर किया। कमाई बढ़ाने की जुगत खोजने लगे। हाथ-पांव मारा। कुछ हासिल नहीं हुआ। कंपनी के साथियों से घर की स्थिति शेयर की। साथियों ने सुझाया, दुबई के लिए ट्राई करो। काम भी ठीक-ठाक और वेतन भी बढ़िया।

अरविंद ने कोशिश शुरू की। मेहनती तो थे ही। अनुभव भी आ चुका था। अरविंद ने कंपनी से संपर्क शुरू किया। सीनियर ऑफिशियल्स उसकी मेधा से प्रभावित हुए। काम मिल गया। फरवरी 2014 में दुबई निकल गए। दिसंबर 2020 तक दुबई में रहे। नारियल के छिलके से खाद बनाने वाली कंपनी में काम किया। अन्य प्रकार की खाद भी। लेकिन, कोरोना संक्रमण ने नौकरी छीन ली। दुबई भी। वापस प्रतापगढ़ आ गए।
अब थी फैसले की बारी
अरविंद के लिए यह सबसे परेशान करने वाला समय था। हाथ में हुनर था, काम नहीं। देश में काम का दाम नहीं। ऐसे में उन्होंने अपनी कंपनी बनाने का फैसला ले लिया। वे खुद नारियल का खाद बनाने की तैयारी में जुटे। दहिलामऊ के पास राम राम चौराहे पर किराए के मकान में एक प्लांट लगाया। यहीं से सफलता की कहानी लिखनी शुरू की। नारियल के छिलके से जैविक खाद बनाते हुए वे सफलता का परचम लहराते जा रहे हैं। इस खाद का प्रयोग घर के गार्डन में सब्जियों और फूलों के साथ-साथ फसलों को भी उचित पोषण देने में प्रयोग में लाई जा रही है।

ऐसे तैयार करते हैं खाद
अरविंद खाद बनाने के लिए अपनी तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं, जो उन्होंने दुबई में सीखा। वे पानी वाले नारियल के छिलके को जमाकर उसे पानी में भिगोते हैं। इसके बाद उसे धूप में सुखाते हैं। यह सिलसिला चार से छह महीने तक चलता रहता है। इसके बाद उसे कोकोनट क्रशर मशीन में डालकर तोड़ते और फिर जैविक विधि से खाद तैयार करते हैं। यह तकनीक खादों में पोषक तत्वों को काफी बढ़ाती है। इससे जैविक खेती को काफी मदद मिल रही है।
मुनाफे वाला है सौदा
अरविंद को एक किलो खाद बनाने में बामुश्किल 20 से 30 रुपये की लागत आती है, जबकि बाजार में इस खाद की कीमत 60 से 70 रुपये प्रति किलो तक बिकती है। प्रतापगढ़ ही नहीं अब यह यूपी के कई जिलों में डिमांड में है। अन्य राज्यों में भी। कई देशों में भी। वाराणसी, मिर्जापुर, गोरखपुर, प्रयागराज के अलावा बिहार और हिमाचल प्रदेश से इसकी डिमांड खूब आ रही है। इसके अलावा कनाडा और अमेरिका से भी खाद की मांग हो रही है।

अरविंद कहते हैं कि खाद की मांग अधिक है। हमारी उत्पादन क्षमता उस स्तर की नहीं है। अब तो विदेशी कंपनियां हमारी खाद को सीधे खरीदने का ऑफर कर रही हैं। हमने उनसे दो माह का समय लिया है। हमारा स्टॉक हो जाए तो फिर एजेंटों के माध्यम से इसकी उपलब्धता कराएंगे।

मांग बढ़ेगी तो काम बढ़ेगा, रोजगार बढ़ेगा
अरविंद कुमार दो साल पहले तक जॉब सीकर थे। काम की तलाश में भटकने वाले युवक। आज जॉब गिवर हो गए हैं। बड़ा प्लांट लगाने की तैयारी कर रहे हैं। मांग बढ़ रही है। उसी के अनुरूप प्लांट हो तो ही काम चलेगा। प्लांट बड़ा होगा तो काम बढ़ेगा। काम बढ़ेगा तो रोजगार बढ़ेगा। अरविंद का मुनाफा भी। अरविंद कहते हैं बड़ी जगह होगी तो नारियल सुखाने में मदद मिलेगी। तेजी से अधिक मात्रा में खाद तैया कर सकेंगे।

नारियल की उपलब्धता के बारे में वे कहते हैं कि दुकानदारों की ओर से खुद यह हमें उपलब्ध कराया जाता है। नारियल पानी बेचने वाले पहले पानी बेच कर कमाते हैं। फिर अरविंद को बचे हुए छिलके बेचकर। उनकी भी आय बढ़ी है। एक नारियल पर पांच से सात रुपये का मुनाफा। इस प्रकार अरविंद अपनी मेहनत और पक्के इरादे की बदौलत खुद को संवार को उठाने में सफल होते दिख रहे हैं।