अब भी शर्मा साल में एक करोड़ का कारोबार और 40 लाख रुपए तक की कमाई कर रहे हैं. गौकृति के जरिये 100 से अधिक महिलाओं को रोजगार मिला है, जबकि 20-25 लोगों की टीम शर्मा के साथ सीधे काम करती है.
नई दिल्ली: जयपुर से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर रहने वाले भीमराज शर्मा ने एक अनोखा काम किया है. पर्यावरण की सुरक्षा और इको फ्रेंडली प्रोडक्ट को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने गाय के गोबर से 70 तरह के इको फ्रेंडली आर्टिकल्स डिवेलप किए हैं. साल 2017 में भीमराज शर्मा ने गाय के गोबर से प्रोडक्ट बनाना शुरू किया और इसका पेटेंट हासिल कर लिया. गौकृति नाम से गाय के गोबर से वे पेपर बनाते हैं. इसके साथ ही भीमराज शर्मा गाय के गोबर से पेपर बनाकर स्टेशनरी आइटम बनाते हैं.
किसी भी त्योहार के मौके पर भीमराज शर्मा के गोबर से बने देवी-देवता की मूर्तियां और कई प्रोडक्ट खूब बिकते हैं. भीमराज शर्मा ने कहा कि फेस्टिवल सीजन में उनके प्रोडक्ट की इतनी डिमांड होती है कि वे उसे पूरा नहीं कर पाते. कोरोना संकट के बाद गौकृति के कामकाज पर असर पड़ा है लेकिन अब भी शर्मा साल में एक करोड़ का कारोबार और 40 लाख रुपए तक की कमाई कर रहे हैं. गौकृति के जरिये 100 से अधिक महिलाओं को रोजगार मिला है, जबकि 20-25 लोगों की टीम शर्मा के साथ सीधे काम करती है.
साल 2014-15 में भीमराज शर्मा ने आयुर्वेद और गाय को लेकर लोगों के बीच जागरूकता फैलाने वाले कुछ वीडियो देखे थे. इसके बाद उन्होंने देखा कि सड़क पर आवारा गाय घूमती रहती है, कई बार दुर्घटना में उनकी मौत हो जाती है.
भीमराज शर्मा ने कहा कि उन्होंने पहले सुना था कि दक्षिण अफ्रीका में हाथी के गोबर से कुछ प्रोडक्ट और पेपर तैयार किए जा रहे हैं. इसके बाद उन्होंने गाय के गोबर से कुछ प्रोडक्ट तैयार करने की सोची. भीमराज शर्मा ने कहा, “गाय की उम्र 15 साल होती है, जिसमें वह 5 साल ही दूध देती है. बाकी के 10 साल वह गोबर और गोमूत्र देती है.”
परिवार के लोगों को नहीं था भरोसा
भीमराज ने कहा जब उनके परिवार के लोगों ने इस बारे में सुना तो उन्होंने कहा कि यह पागल हो गया है. गोबर से पेपर बनाना संभव नहीं है. भीमराज शर्मा के मन में कहीं ना कहीं यह डर था कि उनका अच्छा खासा प्रिंटिंग प्रेस का बिजनेस है, यदि गाय के गोबर के प्रोडक्ट बनाने में फेल हो गए तो सब कुछ चौपट हो जाएगा. इसके बाद भी भीमराज शर्मा ने खुद से मशीन डिजाइन की ऑर्डर देकर मशीन बनवाई और पहली बार खुद पेपर बनाया.
पहली कोशिश फेल
यह किसी नक्शे की तरह टेढ़ा मेढ़ा बन गया. उसके बाद उन्होंने इंटरनेट पर देखकर गाय के गोबर से कम से कम 70 तरह के प्रोडक्ट बनाना सीखा. भारत में कई राज्य में बहुत सी गौशाला हैं जिनमें गोबर खरीदने वाला कोई नहीं है. गोबर से सिर्फ खाद बनाई जाती थी.
ताजे गोबर से बना पेपर
भीमराज शर्मा ने ताजा गोबर खरीदना शुरू किया क्योंकि पुराने गोबर में कीड़े पड़ जाते हैं. गोबर के साथ हुए कपड़ों की कतरन को मशीन से बारीक काटकर अच्छी तरह मिक्स करने के बाद पेपर तैयार किया जाता है. इसमें 50 फीसदी गोबर मिलाकर प्रोसेसिंग और ग्राइंडिंग की जाती है. करीब ढाई से 3 घंटे तक इसकी प्रोसेसिंग के बाद पेपर तैयार हो जाता है. इस पल्प को टंक में भरा जाता है फिर स्क्वायर जालीदार अच्छी तरह से लाया जाता है. मशीन से इस पेपर से पानी निकाला जाता है और फिर उसे सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है.
कई तरह के उत्पाद
24 घंटे में या अच्छी तरह सूख जाता है. जिस मोटाई के मुताबिक आपको प्रोडक्ट की जरूरत हो उतने पल्प को फ्रेम में डालकर पेपर तैयार कर लिया जाता है. इसे और मजबूत बनाने के लिए ग्वार गम डाला जाता है. पेपर को रंगीन बनाने के लिए हल्दी और ऑर्गेनिक प्रोडक्ट का यूज किया जाता है. भीमराज शर्मा अब रोजाना 3000 सीट तैयार करते हैं. भीमराज शर्मा के इस पेपर की डिमांड लाल बहादुर शास्त्री नेशनल अकैडमी आफ एडमिनिस्ट्रेशन से भी आती है. शर्मा गाय के गोबर से बने पेपर से ग्रीटिंग कार्ड, स्टेशनरी, फ़ाइल, बुक कवर जैसे प्रोडक्ट तैयार कर रहे हैं.