CPI Inflation Rate of India: खुदरा महंगाई (Retail Inflation) की दर लगातार आठवें महीने रिजर्व के संतोषजनक स्तर से ऊपर बनी हुई है। अगस्त में यह बढ़कर 7 फीसदी हो गई। इसके उलट थोक महंगाई दर (WPI) में नरमी का ट्रेंड है। ग्लोबल कमोडिटी प्राइजेस (Commodity Prices) में भी कमी देखी जा रही है। जब थोक महंगाई दर घट रही है तो खुदरा महंगाई दर बढ़ने की क्या वजह है।
नई दिल्ली: अगस्त में खुदरा महंगाई की दर (Retail Inflation Rate) बढ़ी है। इसका अनुमान पहले से था। सब्जी, मसाले जैसे खाने के सामान के दाम बढ़ने से ऐसा हुआ है। यह बढ़कर 7 फीसदी हो गई है। जुलाई में यह 6.71 फीसदी थी। वहीं, पिछले साल अगस्त में यह 5.3 फीसदी थी। लोग थोक दामों में नरमी के साथ खुदरा महंगाई के ठंडा पड़ने की उम्मीद करते हैं। हालांकि, ऐसा नहीं हुआ है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि इस तरह की उम्मीद लगाने वालों को मायूसी हाथ लगी है। पिछले एक दशक में अलग तरह का ट्रेंड देखने को मिला है। थोक मूल्य सूचकांक (WPI) और उपभोक्ता मूल्यों पर आधारित इंडेक्स (CPI) दोनों के रास्ते अलग-अलग रहे हैं। कह सकते हैं कि इस पूरे वक्त में इनका रिश्ता आपस में उलटा रहा है। यानी थोक मूल्य सूचकांक में गिरावट होने पर खुदरा महंगाई दर उसी के अनुसार नहीं घटी है। यह गुत्थी कैसे उलझ गई है, इसे समझने की कोशिश करते हैं।
ज्यादातर एक्सपर्ट्स को पहले ही आशंका थी कि खुदरा महंगाई की दर बढ़कर 6.9-7 फीसदी हो जाएगी। दूसरी तरफ ऐसे अनुमान हैं कि बुधवार को आने वाले आंकड़ों में थोक मूल्य सूचकांक (WPI) पर आधारित महंगाई की दर घटकर 12.9 फीसदी रह सकती है। यानी लगातार तीसरे महीने इसमें गिरावट आने के आसार हैं।
डबल डिजिट में हैं थोक महंगाई के आंकड़े
पिछले साल अप्रैल से थोक कीमतें डबल डिजिट में हैं। इस कारण कंपनियां एक खास तरह की स्थिति में पहुंच गईं। उन्होंने कीमतें बहुत ज्यादा बढ़ा दीं। मांग में जो शुरुआती सुधार हो सकता था उसे चोट पहुंचा दी। अगर ऐसा नहीं किया तो लागत को खुद झेला और जितना प्रॉफिट हो सकता था, उसे नुकसान पहुंचाया।
हिंदुस्तान यूनिलीवर और आईटीसी (ITC) सहित कई कंज्यूमर गुड्स बनाने वाली कंपनियों ने इस अवधि में दाम बढ़ाए। मारुति सुजुकी इंडिया (Maruti Suzuki India) ने भी कीमतों में बढ़ोतरी की। लेकिन, यह शायद बढ़ी हुई लागत को कवर करने के लिए नाकाफी थी। मारुति, टाटा मोटर्स (Tata Motors) और लार्सन एंड टुब्रो (L&T) ने अप्रैल-जून तिमाही में अपनी आय में नुकसान दर्ज किया। ज्यादा इनपुट कॉस्ट और सप्लाई चेन की बाधाओं के कारण ऐसा हुआ।
डब्ल्यूपीआई घटने और सीपीआई बढ़ने से दोनों के बीच की खाई कम हो रही है। लिहाजा, कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमोडिटी की कीमतों में गिरावट के लाभ को रिटेल कंज्यूमर्स को देने की इच्छुक नहीं होंगी। वे अपने मार्जिन को फिर से बहाल करने की संभावना तलाशेंगी।
अभी टारगेट के ऊपर रह सकती है खुदरा महंगाई
इसका मतलब हुआ कि खुदरा कीमतों को केंद्रीय बैंक (RBI) के 2% -6% के टारगेट बैंड में वापस आने में ज्यादा समय लग सकता है। इसके कारण भारतीय रिजर्व बैंक इस महीने के अंत में अपनी मौद्रिक नीति समिति की बैठक में कड़ा रुख बनाए रख सकता है। आरबीआई ने मई से पॉलिसी रेट में 140 बेसिस पॉइंट यानी 1.40 फीसदी की बढ़ोतरी की है। उसे आशा है कि इस वित्त वर्ष के खत्म होने तक महंगाई की औसत दर 6.7 फीसदी होगी।
नोमुरा होल्डिंग्स इंक के अर्थशास्त्री सोनल वर्मा ने कहा कि थोक मूल्य सूचकांक घटने पर कम इनपुट कॉस्ट का इस्तेमाल कंपनियां अपने मार्जिन की भरपाई में करेंगी। इससे खुदरा महंगाई की दर जस की तस बनी रहेगी। इसके फरवरी तक 6 फीसदी के ऊपर बने रहने के आसार हैं। ब्लूमबर्ग के एक सर्वेक्षण के अनुसार, ग्लोबल कमोडिटी प्राइसेज में नरमी देखी जा रही है। इसकी वजह मंदी की आशंका है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व के सख्त रुख के कारण ऐसा हुआ है। इस तरह थोक महंगाई की दर अगले एक साल में 5 फीसदी से कम रह जाने के आसार हैं।
सोमवार को जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई की दर लगातार आठवें महीने रिजर्व के संतोषजनक स्तर से ऊपर बनी रही। आरबीआई मौद्रिक नीति पर विचार करते समय मुख्य रूप से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई दर पर गौर करता है। रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) के गवर्नर की अध्यक्षता वाली मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक 28-30 सितंबर को होनी है।