जो इंसान अपनी जड़ों से जुड़ा रहता है उसे जमीन से आसमान तक की ऊंचाई नापने में ज्यादा तकलीफ नहीं होती. उसे पता होता है कि उसने या उसके पूर्वजों ने कहां से चलना शुरू किया था और वो आज किस संघर्ष के साथ यहां तक पहुंचा है. बॉब सिंह ढिल्लों एक ऐसे ही सफल व्यक्ति हैं जिन्हें हमेशा से याद रहा कि उनकी जड़ें कहां से जुड़ी हैं. आज हम आपको इन्हीं की कामयाबी की कहानी बताने जा रहे हैं.
परिवार ने छोड़ा गांव
वैसे तो बॉब सिंह ढिल्लों का जन्म 1965 में जापान में हुआ था लेकिन उनकी जड़ें पंजाब के बरनाला के नजदीक स्थित एक गांव तल्लेवाल से जुड़ी हुई हैं. बॉब का असल नाम नवजीत सिंह ढिल्लों है. बॉब के दादा जी सपूरण सिंह अपने परिवार के साथ अपना गांव छोड़ कर बेहतर जीवन की तलाश में जापान आ गए थे. यहां उन्होंने नॉर्थ चाइना शिपिंग कंपनी की शुरुआत की और जापान से सामान का निर्यात करने लगे. यहीं बॉब का जन्म हुआ.
परिवार ने सब कुछ गंवाया
जापान में 6 साल गुजारने के बाद बॉब का परिवार लाइबेरिया जा कर पश्चिमी अफ्रीका के ट्रेडिंग बिजनेस का हिस्सा बन गया. सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन इसी बीच 70 के दशक में बॉब के परिवार ने सिविल वॉर के कारण अपना सब कुछ गंवा दिया. इसके बाद बाद वे किसी तरह शरणार्थी के रूप में कनाडा के वैंकूवर पहुंचे और बाद में अल्बर्टा जा कर बस गए. इस तरह पंजाब की मिट्टी से जुड़ा हुआ ये सिख परिवार कनाडा का निवासी बन गया.
छोटी उम्र में ही शुरू किया बिजनेस
बॉब ने छोटी उम्र में ही व्यापार में जाने का मन बना लिया था और जल्द ही इसकी शुरुआत भी कर दी. उन्होंने मात्र 19 साल की उम्र में रियल स्टेट के बिजनेस में कदम रख दिया था. उन्होंने सबसे पहले दो पुराने घरों को खरीद कर उसकी मरम्मत कराई और उसे बेच दिया. अपनी इस पहली डील से बॉब ने 19 हजार डॉलर का मुनाफा कमाया था. अगले 10 सालों में उन्होंने खूब मेहनत की, आंखों की नींद और दिन का चैन सब भूल कर उन्होंने अपना काम किया और लाखों रुपये कमाए.
बने पहले सिख बिलेनियर
20 साल की उम्र में बॉब करोड़पति बन चुके थे. 21 साल की उम्र में वह सोच रहे थे कि अगले दस साल में उन्हें 150 मिलियन डॉलर से ज्यादा का रियल स्टेट के बिजनेस करना है. 30 साल की उम्र तक बॉब अपनी एक बड़ी फार्म खड़ी कर चुके थे. इसके बाद उनकी कामयाबी का जो सिलसिला शुरू हुआ वो आज तक जारी है. बॉब की एक बड़ी कामयाबी ये भी रही कि वह पहले सिख बिलेनियर बने.
बॉब ने सिर्फ पैसे ही नहीं कमाए बल्कि उन्होंने इन पैसों का सदुपयोग भी किया. 2018 में उन्होंने लेथब्रिज विश्वविद्यालय को 10 मिलियन डॉलर का दान दिया था. विश्वविद्यालय के इतिहास में ये सबसे बड़ा दान था. इस पैसे का इस्तेमाल बिजनेस स्कूल बनाने में किया गया, जिसे ढिल्लों स्कूल ऑफ बिजनेस का नाम दिया गया.