दलाईलामा ने कहा कि क्रोध अकसर ईर्ष्या और स्वार्थ चित्त के कारण पैदा होता है। हमें दैनिक जीवन में सुख-शांति की आवश्यकता रहती है। अगर मन में शांति है, तो दुनिया भर के हथियारों का इस्तेमाल नहीं होगा।
चीनी आक्रमणकारियों ने तिब्बत में बौद्ध विहारों को भारी नुकसान पहुंचाया। इन लोगों के खिलाफ हम सिर्फ करुणा का भाव व्यक्त कर सकते हैं। उन पर क्रोध करने का कोई लाभ नहीं होगा। तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु दलाईलामा ने आचार्य धर्मकीर्ति की रचना प्रमाणवर्तिका कारिका पर प्रवचन के तीसरे दिन एक अनुयायी की ओर से तिब्बत और शिंजियांग में नरसंहार को लेकर पूछे एक सवाल के जवाब में यह बात कही। दलाईलामा ने कहा कि क्रोध अकसर ईर्ष्या और स्वार्थ चित्त के कारण पैदा होता है। हमें दैनिक जीवन में सुख-शांति की आवश्यकता रहती है। अगर मन में शांति है, तो दुनिया भर के हथियारों का इस्तेमाल नहीं होगा। धर्मगुरु ने कहा कि हम सभी भगवान बुद्ध के शिष्य हैं।
भगवान बुद्ध ने भी स्वयं परीक्षण और अभ्यास के माध्यम से पाया कि बौद्ध चित्त ही बुद्धत्व की प्राप्ति का मार्ग है। मैं स्वयं भी रोज बौद्ध चित्त के अभ्यास से संबल लेता हूं। उन्होंने बताया कि संसार में हर दुख स्वार्थ की भावना से पैदा होता है और सुख परोपकार से उत्पन्न होता है। बुद्ध परहित करते हैं। दूसरों के दुख को सुख में बदले बिना हमें भी सुख की प्राप्ति नहीं होती। इसलिए बौद्ध चित्त का भाव परहित की भावना पर आश्रित है। अगर आप केवल अपने बारे में सोचते रहेंगे, तो फिर आपको किसी भी प्रकार के सुख की प्राप्ति नहीं होगी। इसलिए आपको पूरे मन से दूसरों का हित करना चाहिए।