धर्म की स्वतंत्रता संशोधन विधायक के खिलाफ दलित संगठनों का हल्ला बोल

धर्म की स्वतंत्रता संशोधन विधायक के खिलाफ दलित संगठनों का हल्ला बोल

हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा विधानसभा में धर्म की स्वतंत्रता संशोधन विधेयक 2022 को पारित किया गया है जिसके खिलाफ दलित संगठनों ने मोर्चा खोल दिया है ओर इसके विरोध में उतर आए है। मंगलवार को दलित शोषण मुक्ति मंच के बैनर तले विभिन्न संगठनों ने शिमला डीसी ऑफिस के बाहर धरना प्रदर्शन किया और राजभवन तक रैली निकालकर राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा जिसमे इस विधेयक को पारित न करने का आग्रह किया गया। इस प्रदर्शन में सीपीआईएम विधायक राकेश सिंघा भी मौजूद रहे। वही शेरे पंजाब से आगे जाने से रोके जाने पर पुलिस के साथ काफी देर तक

दलित शोषण मुक्ति मंच के राज्य संयोजक जगत राम ने कहा कि 13 अगस्त को प्रदेश सरकार ने धर्म की स्वतंत्रता विधेयक 2022 को विधानसभा में लाया और उसे पारित भी किया । इस विधेयक से हिमाचल प्रदेश के दलित समुदाय पर जबरदस्त हमला किया जा रहा है उसके मौलिक अधिकारों का हनन है क्योंकि इस विधेयक में जो पहले से प्रावधान थे उन प्रावधानों में और संशोधन किया और कड़ा इसको बनाया गया है।

नए प्रावधानों में धर्म परिवर्तन नही कर सकते ।और यदि आप मैरिज दूसरे धर्म के साथ करते है औऱ अपना धर्म छुपाते है तो उसमें व्यक्ति को 1.50 लाख का जुर्माना व 5 साल की कैद होगी । इसके अलावा अनुसचित जाति का व्यक्ति यदि धर्म परिवर्तन करता है तो दलित में उसको जो लाभ मिलते है आरक्षण का लाभ मिलता है दूसरा लाभ मिलते है वो उसके सारे खत्म हो जाएंगे । उन्होंने कहा कि ये दलित को गुलाम बनाने की साजिश की जा रही है। जिसका सभी संगठन विरोध कर रहे है ओर आज राज्यपाल ज्ञापन सौंपा जा रहा है कि वह इस विधेयक को निरस्त करें और इस विधेयक को पूरी तरह से रदद् करें ।
बाईट। जगत राम संयोजक दलित शोषण मुक्ति मंच

वही माकपा विधायक राकेश सिंघा ने कहा कि हिमाचल प्रदेश के अंदर दलितों के अधिकारों का हनन हो रहा है । दलित नेता जिदान की हत्या बेरहमी से कर दी गई थी कोई कार्यवाई नही होती । प्रदेश में अधिकारों को छीनने का प्रयास किया जा रहा है विधानसभा में धार्मिक स्वतंत्रता का कानून पारित किया गया है ।जोकि दलित और उनके अधिकारों के हनन करने का प्रयास है किसी जाति को संविधान से बाहर करना है जाति को बदलते हैं तो कानून नहीं बनाया जा सकता है लोकसभा भी नहीं बना सकती यह सिर्फ राष्ट्रपति के अधिकार क्षेत्र का मामला है ।