दास्तान-गो: मेरा नाम चिन चिन चू… नहीं, हेलन रिचर्डसन खान ‘क्वीन ऑफ द नाच गर्ल्स’

दास्तान-गो : किस्से-कहानियां कहने-सुनने का कोई वक्त होता है क्या? शायद होता हो. या न भी होता हो. पर एक बात जरूर होती है. किस्से, कहानियां रुचते सबको हैं. वे वक़्ती तौर पर मौज़ूं हों तो बेहतर. न हों, बीते दौर के हों, तो भी बुराई नहीं. क्योंकि ये हमेशा हमें कुछ बताकर ही नहीं, सिखाकर भी जाते हैं. अपने दौर की यादें दिलाते हैं. गंभीर से मसलों की घुट्‌टी भी मीठी कर के, हौले से पिलाते हैं. इसीलिए ‘दास्तान-गो’ ने शुरू किया है, दिलचस्प किस्सों को आप-अपनों तक पहुंचाने का सिलसिला. कोशिश रहेगी यह सिलसिला जारी रहे. सोमवार से शुक्रवार, रोज़…

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जनाब, एक मंज़र ज़ेहन में लाने की कोशिश कीजिए ज़रा. थोड़ा दर्दनाक है पर ज़रूरी है. साल 1941 या 42 का है कोई. दूसरा विश्व युद्ध छिड़ा हुआ है. जापान की फ़ौज ने बर्मा पर चढ़ाई कर के उसे तहस-नहस कर दिया है. कब्ज़े में ले लिया है. लड़ाई में हजारों लोग मारे गए हैं. हजारों परिवार उजड़ गए हैं. और इनमें से जो बच रहे हैं, वे घर-बार, ज़मीन-जायदाद छोड़कर हिन्दुस्तान जैसे पड़ोस के मुल्कों में आसरा लेने के लिए निकल पड़े हैं. इन्हीं में तीन-चार साल की एक बच्ची है. उसकी मां और उसके भाई-बहन भी. वे उस कारवां के साथ हो लिए हैं, जो हिन्दुस्तान की तरफ़ जा रहा है. धूप, बारिश, ठंड… सब बर्दाश्त करते हुए महीनों का सफ़र पांव-पांव तय कर रहा है. रास्ते में पड़ने वाले गांवों में इन लोगों को कुछ खाने-पीने के लिए दे दिया जाता है. आराम के लिए कभी कोई आसरा मिलता है तो कभी नहीं भी मिलता. सफ़र के बीच और भी मुश्किलें पेश आती हैं, तमाम तरह कीं.

लोग बीमार होते जाते हैं. किसी को हैजा हो जाता है, तो किसी को चेचक. कोई-कोई बच्चे, जवान या बुज़ुर्ग तो इन हालात की चपेट में आकर जान ही गंवा बैठते हैं. लेकिन आगे बढ़ते क़दम नहीं ठहरते. कारवां नहीं रुकता. चलता जाता है. वह बच्ची, जिसका शुरू में ज़िक्र किया, उसकी मां एक बार फिर पेट से है. वह भी रास्ते में बीमार होती है. बच्चा गिर जाता है. इस हादसे से तीनों बच्चे सिहर उठते हैं कि अब पता नहीं क्या होगा. मगर साथ चलने वालों की मदद से जैसे-तैसे वे लोग असम पहुंच जाते हैं आख़िरकार. वहां से कुछ पहले रास्ते में मिले अंग्रेज फ़ौजी इस कारवां में चल रहे लोगों के मदद-गार बने हैं. कारवां आधा बचा है अब तक. पर जितने भी हैं, उन सबके लिए उन्होंने डिब्रूगढ़ में टेंट वग़ैरा लगाकर रहने-खाने का बंदोबस्त कर दिया है. बीमारों के इलाज़ का इंतज़ाम किया है. अब तक उस बच्ची, उसके भाई-बहन और मां के ज़िस्म भी भूख, तक़लीफ़ से सिकुड़ चुके हैं.

उन चारों को भी अस्पताल में दाख़िल कराया गया है. दो महीने तक अस्पताल में रहना पड़ता है उन्हें. इसी बीच, उस बच्ची के भाई को चेचक की बीमारी अपने साथ ले जाती है. परिवार में अब तीन औरत-ज़ात बची हैं. मां और दो बेटियां. इस दूसरे मुल्क (हिन्दुस्तान) में इनके पास न रहने को घर है, न खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने या रोज़गार वग़ैरा का कोई ठीक इंतज़ाम. मां को फ़िक्र है कि उसकी बेटियों का अब क्या होगा. पर वो मां है जनाब. भोली-सी. नहीं जानती कि जिन बेटियों की फ़िक्र में वह दोहरी हुई जाती है, आने वाले दिनों में उन्हीं में से एक हिन्दुस्तान ही नहीं, दुनिया में उसका नाम रोशन करेगी. फिल्मी दुनिया की एक आला शख़्सियत बन जाएगी. लाेग, जो ‘डांस’ का शौक़ रखते हैं, उसकी नक़लें किया करेंगे क्योंकि उस मां की वह बेटी ‘हेलन : क्वीन ऑफ़ द नाच गर्ल्स’ कही जाएगी. जी हां जनाब, ये दास्तान हेलन की ही है. हेलन रिचर्डसन खान. अदाकार सलमान खान की दूसरी मां.

हेलन, ‘शोले’ जैसी फिल्मों की कहानियां लिखने वाले लेखक सलीम खान की पत्नी. हेलन, हिन्दुस्तान की फिल्मों में जिन्होंने ‘कैबरे’ जैसे डांस को मशहूरियत दिलाई. वह भी इस तरह कि एक वक़्त वह भी रहा, जब हेलन के डांस के बिना कोई फिल्म मुक़म्मल मानी नहीं जाती थी. बल्कि, उसकी कहानी में थोड़ा रद्द-ओ-बदल कर उनका डांस अलग से डाला जाता था. क्योंकि वह फिल्म के चल निकलने की गारंटी हुआ करता था. उन्हीं हेलन की ज़िंदगी का शुरुआती वाक़ि’आ है वह, जिसे ख़ुद हेलन ने बयां किया है कई मर्तबा. शायद साल 1964 में पहली दफ़ा ‘फिल्म फेयर’ मैगज़ीन को दिए इंटरव्यू में. उसके बाद अभी कुछ वक़्त पहले जब वे ‘द कपिल शर्मा शो’ में आईं, तब भी उन्होंने उसका ज़िक्र किया. लेकिन मुस्कुराते हुए. दुखड़ा रोने या कोई अफ़सोस जताने वाले अंदाज़ में नहीं.

हेलन जी ने ही बताया था, ‘असम से हम लोग कलकत्ते आ गए थे. वहां मेरा स्कूल में दाख़िला कराया गया. लेकिन पढ़ाई-लिखाई ज़्यादा हो नहीं पाई. क्योंकि घर में खाने-कमाने का मसला ज़्यादा बड़ा था. तो उसी में मां (मैर्लीन) का हाथ बंटाने लगी. वे नर्स के तौर पर काम किया करती थीं. लेकिन उनकी कमाई से पूरा नहीं पड़ता था. मैं तब तक मणिपुरी, कथक और थोड़ा-कुछ भरतनाट्यम वग़ैरा सीख चुकी थी. क्योंकि डांस में मेरी दिलचस्पी शुरू से थी. तो मां की एक परिचित थीं कुक्कू जी. वे फिल्मी दुनिया की जानी-मानी डांसर थीं. हमारे एंग्लो-इंडियन कम्युनिटी से ही उनका त’अल्लुक़ था. तो उनसे मां ने कहा मेरे लिए, कि इसे भी कोई काम दिलवा दीजिए. और उन्होंने मुझे कोरस में डांस करने वाली लड़कियों में शामिल कर लिया. इस तरह मेरी शुरुआत हुई. तो, मैं जब 13 साल की थी, 1951 में, तब मेरी पहली फिल्म आई ‘शाबिस्तान’. उसमें ग्रुप डांसर्स के साथ ही मैंने डांस किया था’.

लेकिन जनाब, ये ग्रुप डांसर्स की भीड़ में ही खड़े रहना हेलन जी का मुस्तक़बिल था नहीं. हमेशा हुनरमंद अदाकार ढूंढने वाली ‘फिल्मी दुनिया की आंखों’ ने जल्द ही हेलन के हुनर को भी पहचान लिया. साल 1957 के आस-पास का वाक़ि’आ है. मशहूर फिल्मकार शक्ति सामंत एक फिल्म बना रहे थे. बर्मा के उसी शहर रंगून के एक कारोबारी की कहानी, जहां हेलन पैदा हुईं. और कहानी भी अपराध जगत की गुत्थियों वाली, जिसमें तड़क-भड़क वाले नाच-गाने की एक अपनी जगह हुआ करती है. यानी इसमें हेलन के हुनर को बाहर लाने की पूरी गुंजाइश बनी थी. और इसका शक्ति सामंत ने पूरा फ़ायदा उठाया. इसमें मशहूर गायिका और अदाकारा गीता दत्त की आवाज़ में एक गाना रखा, ‘मेरा नाम चिन चिन चू, चिन चिन चू बाबा चिन चिन चू, रात चांदनी मैं और तू, हैलो मिस्टर हाउ डू यू डू’. इस गाने पर फिर हेलन का डांस फिल्माया, जिसने रातों-रात मशहूरियत की बलंदी छू ली.

तजरबा कामयाब रहा और इस कामयाबी ने हेलन का घर भी देख लिया था. इस तरह कि फिर कभी साथ छोड़ा नहीं. मुश्किलें आगे भी आईं अलबत्ता, पर उनसे निकालने वाले लोग भी साथ आते गए. मिसाल के तौर पर हेलन अपने फिल्मी सफ़र के शुरुआती दौर में ही फिल्मकार पीएन अराेड़ा के साथ रिश्ते में आ गईं. उन्होंने अरोड़ा साहब की फिल्म ‘हूर-ए-अरब’ (1955) में जब से काम किया था, शायद तभी से. मगर इस रिश्ते में उन्हें कुछ निजी वज़हों से परेशानी भी खूब उठानी पड़ी. ऐसे दौर में, सलीम खान (सलमान खान के वालिद) उनके मददगार बनकर आए. उन्होंने 1981 में हेलन से शादी भी कर ली फिर. जबकि वे पहले से शादी-शुदा थे. सो, इस दूसरी शादी से उनके घर में भी कुछ हलचल हुई. पर धीरे-धीरे वह भी तली में जा ठहरी, ठंडी हो गई. और इसमें जो बड़ी भूमिका रही, कहते हैं वह ख़ुद हेलन की थी. उनकी फितरत ने सलीम खान के पूरे परिवार को अपना बना लिया.

इसका नतीज़ा ये रहा कि हेलन को भी सलीम खान के परिवार ने पूरे दिल से अपनाया. अब तो आलम यूं है कि सलमान खान की मां सलमा (सुशीला चरक) जितना अपने बेटे के साथ नज़र नहीं आतीं, उससे ज़्यादा हेलन उनके साथ दिख जाती हैं. यहां तक कि ‘हम दिल दे चुके सनम’ जैसी फिल्मों में वे सलमान की मां के किरदार में भी नज़र आ चुकी हैं. इस तरह की मिसालें फिल्मी दुनिया में कम ही मिलती हैं. उनका रिश्ता अपने परिवार के साथ किस तरह का है, उसकी एक और मिसाल बीते दिनों  सामने आई. हास्य कलाकार कपिल शर्मा ने अपने शो में उनसे कहा कि ‘मैम, अगली बार आप और सलीम साहब, दोनों को बुलाकर बातचीत करेंगे’. तो हेलन कहने लगीं, ‘दोनों को क्यों? साथ बुलाना है तो तीनों को बुलाइए’. तीनों मतलब, सलीम साहब और हेलन जी के साथ सलमा जी भी. ये ख़ासियत है, उनकी शख़्सियत की. यक़ीनन ऐसी ही ख़ासियतें वह वज़ह भी है, जिसने हेलन जी की तरफ़ कोई उंगली उठने नहीं दी कभी. फिल्मी दुनिया में तड़क-भड़क वाले नाच-गाने के बावजूद.