तारीख: 23 मार्च 2003, 24 पंडितों का कत्लेआम, ‘कश्मीर फाइल्स’ का वह कंपा देने वाला पन्ना फिर खुला

जम्‍मू-कश्‍मीर व लद्दाख हाईकोर्ट ने पुलवामा के नदीमर्ग में हुए कश्‍मीरी नरसंहार केस को दोबारा खोलने का आदेश दिया है। ये घटना 23 मार्च 2003 की है। उस रात नदीमर्ग में सेना की वर्दी में आए लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवाद‍ियों ने 24 कश्‍मीरी पंडितों की गोली मारकर हत्‍या कर दी थी।

Nadimarg Massacre
23 मार्च 2003 की उस रात क्या हुआ था

श्रीनगर: कश्मीर फाइल्स का 19 साल पहले का कंपा देने वाला पन्ना फिर खुल गया है। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने नदीमर्ग नरसंहार केस को फिर से खोलने का आदेश दिया है। इस मामले में 15 सितंबर 2022 से सुनवाई होगी। वह 23 मार्च 2003 की रात थी, जब सेना की वर्दी में आए लश्कर ए तैयबा के आतंकियों ने नदीमर्ग में 24 कश्मीरी पंडितों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। मरने वालों में 11 पुरुष, 11 महिलाएं और 2 बच्चे भी शामिल थे। जम्मू-कश्मीर व लद्दाख हाई कोर्ट ने पुलवामा के नदीमर्ग में हुए इस नरसंहार की फाइल दोबारा खोलने के आदेश दिए हैं। यह कश्मीरी पंडितों पर हुए जघन्य अपराधों में से सबसे भीषण था जिसके जख्म अब तक हरे हैं।

90 के दशक में कश्मीर में पंडितों के साथ हुए अत्याचार और नरसंहार ने कई परिवारों के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगा दिया था। अपनी और परिवार की सुरक्षा के लिए उन्होंने कश्मीर छोड़ने ही मुनासिफ समझा। उस दौर में देश ने कश्मीरी पंडितों का सबसे बड़ा पलायन देखा था। करीब 58,000 पंडित परिवार जम्मू स्थित रिफ्यूजी कैंप में बस गए थे। हालांकि नदीमर्ग के कश्मीरी पंडितों ने न ही किसी हिंसा या धमकी का सामना किया था। ऐसे में उन्होंने अपनी धरती पर ही रहने का फैसला लिया और यही फैसला उनके लिए घातक साबित हुआ।

कई दिनों से रेकी कर रहे थे आतंकी
जहां कश्मीर के दूसरे हिस्सों में पंडितों को कश्मीर छोड़ने की धमकी मिल रही थी, वहीं नदीमर्ग में ऐसी कोई घटना नहीं हुई थी। यहां 52 कश्मीरी पंडित शांति से रह रहे थे। फिर आई 23 मार्च 2003 की वह काली रात, जब लश्कर-ए-तैयबा के 7 आतंकी सेना की वर्दी में मास्क लगाए हुए नदीमर्ग आए। ये आतंकी पिछले कई दिनों से वहां रेकी कर रहे थे लेकिन किसी के लिए खतरा नहीं बने थे।

नाम पुकारे और लाइन में खड़ा कर मारी गोली
23 मार्च को आधी रात आतंकियों ने अचानक सभी हिंदुओं के नाम पुकारना शुरू किया और घर से बाहर बुलाया। सभी 24 कश्मीरी पंडितों को चिनार के पेड़ के नीचे एक लाइन में इकट्ठा किया गया। इसके बाद अचानक उन्हें गोलियों से भून दिया गया। इस नरसंहार में 11 पुरुष, 11 महिलाओं और 2 बच्चों ने जान गंवाई जिनमें से एक 2 साल का था। रिपोर्ट्स के अनुसार, पाइंट ब्लैंक रेंज से उनके सिर में गोलियां मारी गई थीं।

नरसंहार में जीवित बचे मोहन भट की कहानी
इस नरसंहार में जीवित बचे मोहन भट ने कुछ साल पहले एक इंटरव्यू में आपबीती सुनाई थी। मोहन भट ने घर की पहली मंजिल की खिड़की से कूदकर अपनी जान बचाई थी। उस वक्त आतंकियों ने दूसरे कश्मीरी पंडितों को चिनार के पेड़ के नीचे घेर रखा था। हालांकि उनके माता-पिता, बहन और चाचा की निर्मम हत्या कर दी गई।

मोहन भट एक खेत में जाकर छिप गए थे जहां से उन्होंने अपने पिता का मृत शरीर, उनकी गोद में चाचा का शव और घर के आंगन में मारी गईं मां और बहन को देखा। जघन्य हत्याकांड के बाद उन्होंने वहां से आतंकियों को भागते हुए देखा था।

आतंकियों ने दो साल के बच्चे को भी नहीं छोड़ा
वरिष्ठ पत्रकार राहुल पंडिता ने अपनी किताब ‘ऑर मून हैस ब्लड क्लॉट्स’ में कश्मीरी पंडितों की व्यथा बताते हुए लिखा है, ‘आतंकियों ने एक बच्चे की रोने की आवाज सुनी और उनमें से एक ने दूसरे से कश्मीरी में बोला- ये करनावूं चुपे- जिसका मतलब था बच्चे को चुप कराओ। इसके बाद गोलियों की आवाज आई और आदेश का पालन हुआ।’ नदीमर्ग नरसंहार में अपनों को खोने के बाद मोहन भट जम्मू आकर बस गए जहां वह एक सरकारी स्कूल में लैब असिस्टेंट के रूप में काम करते हैं।

जैनापुर में दर्ज हुई थी एफआईआर
इस हत्याकांड के बाद जैनापुर में एफआईआर दर्ज की गई थी। पुलवामा सेशन कोर्ट में 7 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी। बाद में केस शोपियां सेशन कोर्ट में शिफ्ट कर दिया गया था। ट्रायल में देरी के बाद प्रॉसिक्यूशन ने दलील दी थी कि इनमें से कई गवाह कश्मीर से बाहर जा चुके हैं और खतरे की वजह से बयान के लिए वापस नहीं आना चाहते।

हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था केस
सेशन कोर्ट ने कहा कि समीक्षा की अनुमति देने का मामला उसके अधिकारक्षेत्र से बाहर है। कोर्ट ने यह दलील देते हुए 9 फरवरी 2011 को इस केस के गवाहों के बयान लेने की मांग खारिज कर दी थी। इसके बाद प्रॉसिक्यूशन ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट में क्रिमिनल रिविजन पिटीशन दाखिल की थी जहां से 21 दिसंबर 2011 को याचिका खारिज हो गई थी।

सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला और अब फिर होगी सुनवाई
2014 में मामले में नई याचिका दाखिल की गई। राज्य सरकार ने निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। साथ ही मामले की नए सिरे से सुनवाई के लिए इसे जम्मू की किसी अदालत में ट्रांसफर करने की मांग की थी लेकिन कोर्ट ने मांग खारिज कर दी थी।

इसके बाद राज्य ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा केस खुलवाने के लिए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल करने को कहा था। अब हाईकोर्ट के जस्टिस संजय धर ने केस दोबारा खोलने की याचिका मंजूर कर ली है। इस मामले में कोर्ट 15 सितंबर 2022 को सुनवाई करेगा।