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कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ा, तबेले में कढ़ा
मुंबई में बोरीवली के एक कान्वेंट स्कूल में मेरी पढ़ाई हुई। हमारा दहिसर में तब तबेला हुआ करता था और मैं तबेले में ही सोता था। मेरे पिता विश्वनाथ नाथ पांडे मुंबई में 1942 में आए थे। आठ रुपये महीने की नौकरी एक डेयरी फार्म में करते थे और चार रुपये महीने के बचाते थे। बाद में उन्होंने दहिसर में अपना तबेला खोला, तबेले को मेरे चाचा अमरनाथ पांडे चलाते थे। बाद में पिताजी मां विद्यावती के साथ गांव चले गए और मैं मुंबई में चाचा और चाची के साथ रहने लगा। जीवन के असली अनुभव मुझे तबेले में ही हुए। पर मुझे तबेले में कोई रुचि नहीं थी। हमारा तबेला 1980 के आसपास बिक गया। नौवीं में था तो रविवार के दिन पड़ोस के घर में टीवी पर राजेश खन्ना और देवानंद की फिल्में देखता और उनकी नकल करता। 10वी में पहुंचने तक तय हो गया कि एक्टर ही बनना है।
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‘किसी के पेट पर लात मत मारना’
अभिनय के प्रति आकर्षण हुआ मैं पिताजी से अक्सर पूछा करता था कि शायद मेरे पुरखों में कला के प्रति कुछ रहा हो और वह गुण मेरे अंदर आ गया हो। उन्होंने कहा कि ऐसा कोई उनकी जानकारी में नहीं है। किसी ने हमारे परिवार में कभी रामलीला या नाटक तक में काम नहीं किया। लेकिन पिताजी ने मुझे कभी अभिनय के लिए मना नहीं किया। वह बहुत ही भोले भाले इंसान थे। उन्होंने बस इतना ही कहा, ‘बेटा जहां भी जाना ईमानदारी से काम करना, चरित्र पर आक्षेप ना लगे इस बात का ध्यान रखना और किसी को कष्ट मत देना। क्रोध आए तो किसी के पीठ पर लात मार देना लेकिन किसी के पेट पर लात मत मरना।’

कॉलेज की पढ़ाई मेरी अंधेरी (पूर्व) के चिनाई कॉलेज में हुई। वहां होने वाली प्रतियोगिताओं में मैं हिस्सा लेने लगा। निर्देशक डॉ. चंद्र प्रकाश द्विवेदी उन दिनों कॉलेज में नाटक निर्देशित करने आते थे। कॉलेज में पढ़ाई कम पांच साल तक नाटक जमकर किए। एनएसडी में जाने की इच्छा थी लेकिन घर की ऐसी स्थिति नहीं थी कि वहां जाऊं। मैं भले ही उत्तर प्रदेश से हूं लेकिन उस समय मेरा हिंदी उच्चारण ठीक नहीं था। डॉक्टर चंद्र प्रकाश द्विवेदी ने मेरा उच्चारण ठीक करवाया। मेरा मानना है कि अगर आप का हिंदी उच्चारण ठीक नहीं है तो आप लंबे समय तक एक्टिंग में नहीं टिक सकते।
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मेरा चेहरा देखकर लोग हंसते थे
मैं कालेज में खुद को अमिताभ बच्चन समझने लगा था। बाहर आकर काम मांगना शुरू किया तो लोग मेरा चेहरा देखकर हंसते थे। मेरी पत्नी ने मेरे लिए बहुत त्याग किया। उस समय मेरी शादी हो गई थी और वह गांव में माता पिता की सेवा करती थी। जब एक्टिंग में काम नहीं मिला तो मैं निर्देशक ज्ञान सहाय का असिस्टेंट बन गया। मैं सोचा इसी बहाने इंडस्ट्री से जुड़ा रहूंगा। उनके साथ रहते हुए मैंने तमाम छोटे छोटे किरदार किए। उनसे कभी बड़ा रोल नहीं मांगा ताकि उनको बोझ न लगे। उन दिनों ‘लेने के देने’, ‘दाल में कुछ काला है’ जैसे कई सीरियल्स में छोटे मोटे रोल किए।
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पहला ब्रेक ‘पहला नशा’ में मिला
सिनेमा में पहला ब्रेक मुझे आशुतोष गोवारिकर की फिल्म ‘पहला नशा’ में मिला। आशुतोष गोवारिकर और हम लोग अक्सर रवि वासवानी के घर पर मिला करते थे। उन्होंने फिल्म ‘पहला नशा’ में एक छोटा सा रोल दिया तो मैं बहुत खुश था कि परेश रावल के साथ मेरा सीन है। लेकिन रिलीज होने पर थिएटर में फिल्म देखने गया तो देखा मेरे सारे सीन कट गए थे। परेश रावल के साथ वाले सीन में भी सिर्फ मेरा डायलॉग सुनाई दे रहा था। मैं बहुत दुखी हुआ। इस तरह से दौर चलता रहा फिर सई परांजपे की फिल्म ‘पपीहा’ में काम करने का मौका मिला।
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‘पपीहा’ के बाद मैंने आशुतोष गोवारिकर की फिल्म ‘बाजी’ में भी काम किया। इस फिल्म में आमिर खान ने मेरे काम की काफी तारीफ की और उन्हीं की वजह से मुझे उनकी फिल्म ‘गुलाम’ में भी काम मिला। मेरे लिए आमिर खान ने निर्देशक राम गोपाल वर्मा से भी फिल्म ‘रंगीला’ में पक्या के रोल के लिए बात की थी। मुझे लगा कि आमिर खान की बात भला कौन काटेगा? मैं उन दिनों बहुत खुश था कि मेरा संघर्ष खत्म हो गया। लेकिन, फिल्म इंडस्ट्री में जब तक फिल्म रिलीज न हो जाए, कुछ भी तय नहीं होता। मेरे साथ भी यही हुआ। सब कुछ फाइनल हो जाने के बाद भी मुझे वह रोल नहीं मिला।
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आशुतोष गोवारिकर से मैं लगातार मिलता रहता था। उन दिनों फिल्म ‘लगान’ की तैयारियां चल रही थी। मैंने आशुतोष गोवारिकर से रोल मांगा तो वह बोले कि मेरे लायक फिल्म में कोई रोल ही नहीं है। तो मैंने सीधे आमिर खान को फोन कर दिया। मैंने सिर्फ इतना कहा कि उत्तर प्रदेश की पृष्ठभूमि पर बन रही फिल्म में भी मुझे काम नहीं मिलेगा तो क्या यश चोपड़ा और करण जौहर की स्विट्जरलैंड की पृष्ठभूमि वाली फिल्मों में मिलेगा? यह सुनकर आमिर खान खूब हंसे। फिर एक दिन उनका फोन आया। मुझे आज भी वह तारीख याद है। 26 दिसंबर 1999 को मैं खाना खा रहा था। आमिर का फोन आया, बोले कल सुबह ऑफिस आकर किरण (राव) से मिल लेना।
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शनि की कृपा से मिला उनका किरदार
‘महिमा शनिदेव की’ धारावाहिक के बाद से मेरे जीवन में काफी बदलाव आया है। ये धारावाहिक मुझे 2008 में मिला था। सागर आर्ट्स के कार्यालय में पहुंचा तो शिव सागर बोले, आप अपने जन्म का विवरण बताइए। उन्होंने मेरी कुंडली देखकर बताया कि मेरे राशि का स्वामी शनि है और शनि का रोल आप ही करोगे। चार पांच साल तक लगातार शनिदेव का रोल किया था। बहुत ही आनन्द आता था। शनि का रोल करते करते शनि की तरह हो गया। झूठ और बनावटीपन मुझे पसंद नहीं। शनि गरीब और मजदूरों के देवता हैं। शनिदेव का मेरे जीवन में बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है और वह अब अंतिम समय तक रहेगा।
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और, ‘स्वदेस’ के सेट पर हुआ हादसा…
ये उन दिनों की बात है जब मैं शाहरुख खान के साथ फिल्म ‘स्वदेस’ कर रहा था। एक रात आशुतोष गोवारिकर का फोन आया और पूछा कि मोपेड चलानी आती है। फिल्म में बजाज एम 50 के साथ एक सीन था जिसमें मुझे शाहरुख और राजेश विवेक को लेकर ये दोपहिया वाहन चलना था। अगले दिन शूटिंग पर पहुंचा तो आशुतोष बोले, हाथ साफ कर लो। फिर शूटिंग करते हैं। शाहरुख खान दूर से देख रहे थे। एकाएक पास आकर पूछने लगे, तुम्हें बाइक चलानी तो आती है ना! मैं मन ही मन घबरा गया कि न बोला तो फिल्म हाथ से चली जाएगी या सीन कट जाएगा।
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