हमारे आसपास ही खाने की ऐसी मजेदार चीजें मौजूद हैं जो न केवल हमें बेहतर स्वाद देती हैं बल्कि इसके साथ ही शरीर के लिए भी ये बेहद फायदेमंद साबित होती हैं. इन्हीं में से एक है आंवले का मुरब्बा. ये स्वाद में मीठा और चटपटा व गुणों में अमृत जैसा माना गया है. आप सबने इस आंवले के मुरब्बे का स्वाद जरूर चखा होगा लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर एक आंवले को मुरब्बा बनाने का ख्याल किसी के मन में कैसे आया होगा या फिर इसे सबसे पहले कहां बनाया गया होगा?
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अगर आपको भी ऐसे सवालों के जवाब जानने हैं तो ये लेख आपके ही लिए है. तो चलिए इसे लेकर प्रचलित कहानियों के माध्यम से जानते हैं आंवले के मुरब्बे का इतिहास. इसके साथ ही हम ये भी जानेंगे कि आखिर ये आंवले का मुरब्बा हमारे लिए कैसे और कितना फायदेमंद है:
ब्रह्मा के आंसुओं से बना मुरब्बा
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आंवले के मुरब्बे का इतिहास जानने से पहले कुछ बातें आंवले के बारे में जान लेना जरूरी है. आंवले को सर्दियों का सुपरफ़ूड कहा जाता है. इसकी उत्पत्ति को लेकर एक पौराणिक कथा काफी प्रसिद्ध है. उस कथा के अनुसार आंवले की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के आंसुओं से हुई थी. पुराणों के अनुसार पूरे संसार के जल में समा जाने के बाद ब्रह्मा जी ने सृष्टि के सृजन के बारे में सोचा. इसके लिए उन्होंने भगवान विष्णु का जाप करना शुरू कर दिया.
कथा के अनुसार उनकी सालों की तपस्या के बाद भगवान विष्णु उन्हें दर्शन देने के लिए प्रकट हुए. ऐसे में जब विष्णु ने उनकी इस कठिन तपस्या का कारण पूछा तो ब्रह्मा जी ने कहा कि वे फिर से सृष्टि आरम्भ करना चाहते हैं. इस पर भगवान विष्णु का उत्तर था कि, ‘ब्रह्मदेव! आप चिंता न करें.’ विष्णु जी के दिव्य दर्शन और इस आश्वासन से ब्रह्मा जी इतने भावविभोर हो उठे कि उनकी आंखें छलक गईं. भक्ति-प्रेम के रंग से भरे इन आंसुओं ने एक वृक्ष का रूप लिया जो आगे चल कर आंवला का वृक्ष कहलाया.
आंवले के मुरब्बे की कहानियां
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ये तो थी आंवले की उत्पत्ति को लेकर पौराणिक कथा लेकिन अब जानते हैं उस व्यंजन के बारे में जिसने आंवले की प्रसिद्धि में सबसे अहम किरदार निभाया और ये व्यंजन है आंवले का मुरब्बा. ये मीठा और चटपटा व्यंजन स्वाद से ज्यादा अपने औषधीय गुणों के कारण मशहूर है. इससे जुड़ी कई कहानियां हैं जिनसे हमें इसके इतिहास के बारे में जानने में बहुत मिलती है.
मसालों और शक्कर में भिगोए गए आंवले से बना मुरब्बा एक मीठा संरक्षित पकवान है. मुरब्बे में आंवले की जगह सेब से लेकर चेरी तक और यहां तक कि गाजर जैसी सब्जियों तक का भी इस्तेमाल हो सकता है. लेकिन मुरब्बे में सबसे ज्यादा लोकप्रिय किस्में आम और आंवला की ही हैं. कहा जाता है कि उच्च घनत्व वाले शर्करा से बने सिरप में फल भिगोने से पानी की गतिविधि कम हो जाती है, जो रोगाणुओं को पनपने से रोकता है. इस वजह से मुरब्बे बिना खराब हुए लंबे समय तक रह पाते हैं.
चीनी से शुरू हुई मुरब्बे की कहानी
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फूड और कल्चर लेखिका प्रियदर्शिनी चटर्जी के एक लेख के अनुसार, मुरब्बे की खोज की कहानी चीनी से जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि गन्ने से चीनी का बड़े पैमाने पर उत्पादन भारत में सहस्राब्दी पहले शुरू हुआ था. यहां गन्ने से रस निकालने के लिए दबाव डालना और फिर उसे उबालकर क्रिस्टलीकरण करने की तकनीक लगभग 350 ईस्वी में खोजी गई थी. उस समय गुप्त वंश शासन कर रहा था. तब से चीनी की खरीद के बाद यह व्यापार और निर्यात का बड़ा हिस्सा बना और इसी वजह से मुरब्बे जैसा व्यंजन लोकप्रिय हुआ.
फारस ने चीनी से तैयार किया मुरब्बा
इतिहास की मानें तो डेरियस द ग्रेट ने भारत पर आक्रमण किया तो वह गन्ने को अपने साथ वापस ले गया. जब फारस में अरबों को चीनी मिली तो उन्होंने मुरब्बे की खोज शुरू कर दी और यह पहचान लिया कि चीनी में चीजों को पकाने के लिए वे किन अन्य तरीकों का इस्तेमाल कर सकते हैं. इस प्रकार उन्होंने भोजन को लंबे समय तक संरक्षित करने का तरीका खोज लिया. वे इस फल को संरक्षित अंबिजत कहते थे बाद में इसे मुरब्बा कहा जाने लगा. फारस में चीनी को औषधीय मसाले के रूप में बेशकीमती माना गया. एक लेखक और पुरस्कार विजेता जैम निर्माता सारा बी हूड ने अपनी 2021 की पुस्तक जैम, जेली एंड मार्मलाडे: ए ग्लोबल हिस्ट्री में कहा है कि सबसे पहले सासैनियन फारस में ही जैम बनाया गया.
बताया जाता है कि मुरब्बा शब्द अरबी मूल का है. इब्न सैयार अल-वर्राक की 10 वीं शताब्दी की रसोई की किताब एनल्स ऑफ द खलीफा रसोई में इसे मुरब्बायत कहा गया है. इसमें अदरक, खजूर, कटा हुआ खीरा, नीबू आदि से बने मुरब्बा की रेसिपी भी शामिल है. अरब लोग अपने मुरब्बा को जड़ी-बूटियों और मसालों के साथ बनाते और उनके औषधीय गुणों के लिए खाते थे. यह भी कहा जाता है कि अंबा, संस्कृत के शब्द आमरा से लिया गया है. विद्वानों का कहना है कि, शहद में आमों को संरक्षित करना प्राचीन भारतीय परंपरा रही है, जो अरब देशों में बहुत लोकप्रिय थी.
मुगलों ने भी पसंद किया मुरब्बा
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फारस के साथ साथ मुरब्बे का संबंध मुगलों से भी जुड़ा है. जब लाहौर के गवर्नर दौलत खान लोधी ने बाबर को दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोधी पर हमला करने के लिए आमंत्रित किया, तो निमंत्रण के साथ शहद में संरक्षित आधे पके आम भी भेजे थे. बाबर ने इसे एक शुभ शगुन के रूप में देखा और भारत की यात्रा करने का फैसला किया. अपने संस्मरणों में, अपनी मातृभूमि के फल की लैक्रिमोज यादों के बीच, बाबर ने आम की प्रशंसा करते हुए लिखा कि, “वे उत्कृष्ट मसाले बनाते हैं, लेकिन वे अच्छे होते हैं और सिरप में भी संरक्षित होते हैं.”
पुर्तगलियों का भी आता है जिक्र
माना जाता है कि भारत ने पश्चिमी एशिया से मुरब्बा बनाने की कला का आयात किया था, हालांकि बाबर के किस्से से, यह प्रशंसनीय लगता है कि चीनी की चाशनी में फलों को संरक्षित करने की तकनीक मुगलों के आगमन से पहले की थी. एक लोकप्रिय परिकल्पना यह है कि मुरब्बा गुरजिस्तान, वर्तमान जॉर्जिया के खानाबदोश जनजातियों के साथ भारत पहुंचा, जो उपमहाद्वीप के उत्तरी हिस्सों में बसने के लिए आए थे.
कई लोग पुर्तगालियों को भी मुरब्बे की खोज का श्रेय देते हैं. खाद्य इतिहासकार माइकल क्रोंडल का मानना है कि चीनी में फल को संरक्षित करने के की ये विधि पुर्तगाली विशेषज्ञता थी. फ्रांसीसी इतिहासकार फ्रांसिस बर्नियर द्वारा 17 वीं शताब्दी के बंगाल में अपनी यात्रा के बारे में लिखते हुए मिठाइयों और व्यंजनों में मुरब्बे की भी चर्चा की थी.
बर्नियर की तरह, कुछ अन्य भी थे जिन्होंने संरक्षण पर ध्यान दिया, भले ही वे मूल के बारे में असहमत थे. 1800 के दशक की शुरुआत में, स्कॉटिश चिकित्सक-वनस्पतिशास्त्री फ्रांसिस हैमिल्टन ने लिखा था कि मालदेह (वर्तमान में मालदा) अपने मुरब्बा के लिए प्रसिद्ध था. उन्होंने इसे भारत के पश्चिम से आए मुसलमानों द्वारा शुरू की गई एक कला, बताया था.
मूल कहानी जो भी हो लेकिन यह स्पष्ट है कि मुगल महाकाव्यों के साथ मुरब्बा की लोकप्रियता ने देश की पाक संस्कृति में अपना स्थान तय कर लिया. मुगल बादशाह साल भर अपने पसंदीदा फलों का आनंद लेना चाहते थे. ऐसे में उनका संरक्षण करना सही था. इससे कई प्रकार के मसालेदार अचार के साथ, मीठा मुरब्बा शाही भोजन का एक अभिन्न अंग बन गया.
गुणों की खान है आंवले का मुरब्बा
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मिठास के साथ साथ आंवले का मुरब्बा शरीर के लिए बहुत तरह से लाभकारी है. यही वजह है कि सर्दियों में ये पकवान हर घर में अपनी जगह बना लेता है. आंवला विटामिन ए, सी और ई से भरपूर है. इसका हर एक चम्मच स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है. ये सर्दियों में सर्दी और फ्लू के प्रसार को रोकता है और आपके लिए इम्युनिटी बूस्टर का काम करता है.
इसके साथ ही मुरब्बा बनाने की विधि ऐसी होती है कि इस्तेमाल किए गए फल या सब्जी में रेशे की मात्रा बरकरार रहती है, जिससे यह पाचन को सही रखने में बहुत मदद करता है. कहा जाता है कि मुरब्बे में चीनी और शहद मिलाकर पीने से गैस्ट्राइटिस से राहत मिलती है.
कार्टिलेज के खिलाफ सुरक्षात्मक क्षमताओं के कारण गठिया वाले लोगों के लिए आंवला अच्छा है या नहीं, इसका आकलन करने के लिए एक अध्ययन किया गया । जिसमें पाया गया कि गठिया में ये एक अच्छी प्रतिक्रिया दिखाता है. यह विटामिन सी सामग्री और कोलेजन संश्लेषण को बढ़ावा देने में इसकी भूमिका के कारण है.