शिमला, 04 नवंबर : 22 देवताओं के स्थान ठूंड में शुक्रवार को प्रबोधनी एकादशी अर्थात देवोत्थान (जिसे स्थानीय भाषा में देवठण कहते हैं) के पर्व पर सैंकड़ों श्रद्धालुओं ने देव जुन्गा के दर्शन करके आर्शिवाद लिया। देवोत्थान पर्व पर जानकारी देते हुए मंदिर के पुजारी नंदलाल शर्मा ने कहा कि ठूंड को रियासतकाल से 22 देवताओं का स्थान माना जाता है, जहां पर हर वर्ष देवशयनी व देवोत्थान के अवसर पर देव जुन्गा का आर्शिवाद पाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों से श्रद्धालु आते हैं।
देव जुन्गा की मान्यता सोलन जिला के स्पाटु, सिरमौर के शरगांव, नेईनेटी, शिमला के जुन्गा, शोधी, न्यू शलोठ, पीरन-ट्राई, बलोग इत्यादि क्षेत्रों में पाई जाती हैं। लोग देव जुन्गा को अपना कलिष्ट मानते हैं। नंदलाल शर्मा ने बताया कि देवठन व दसूणी के अवसर पर पूरे क्षेत्र के देवता देवचंद, पंजाल के कुंथली देवता, धार के मनूणी देवता, भनोग के जुन्गा देवता सहित 22 देवता एकत्रित होते है, जहां पर लोग मनौती पूर्ण होने पर देवता को भेंट अर्पित करते हैं।
उन्होने बताया कि देव जुन्गा के कलैणे में कनोगू, रोहाल, शलोंठी, भौंठी, टकराल, छिब्बर, बलीर, सराजी सहित 22 गौत्र (खैल) के लोग आकर परंपरा को निभाते हैं। देवठण की रात्रि को लोग डोम देवता के प्रांगण में 22 देवता का जागरण करते है और अगले दिन देवता के गुर की देववाणी से आर्शीवाद प्राप्त करते हैं। वहीं इस मौके पर भंडारे का आयोजन भी किया जाता है।
जुन्गा देवता का इतिहास...
जुन्गा देवता के अनन्य भक्त प्रीतम ठाकुर ने कहा कि जुन्गा देवता का इतिहास क्योंथल रियासत के राजा परिवार से जुड़ा है। कहा जाता है कि जुन्गा देवता की मान्यता समूची तत्कालीन क्योंथल रियासत में पाई जाती है। इस क्षेत्र के लोग परिवार में बेटा होने व अन्य शुभ कार्य होने पर देवता को अपने घर पर आमंत्रित करते हैं। इस मौके पर देव समिति के पदाधिकारी कृष्ण रोहाल, मनोहर सिंह ठाकुर, रामसरन, देवेन्द्र कुमार नंबरदार सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे।