आवश्यकता हर नई खोज के पीछे का मुख्य आधार होती है. इसे यूपी के एक लड़के ने सच साबित कर दिखाया है. यह पीलीभीत में गोपालपुर के रहने वाले धर्मेन्द्र की कहानी है, जो कानपुर के डॉ.अंबेडकर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी फॉर हैंडीकैप से 2014 में एक इंलेक्ट्रिक इंजीनियर बनकर निकले, मगर मां की बीमारी के चलते उन्होंने डायबिटीज से जुड़ी एक खास तकनीक ईजाद कर सबका ध्यान अपनी ओर खींचा.
दावा है कि बिजली से चलने वाला ‘इंसोलटी’ नामक उनका यंत्र बिना दवा के डायबिटीज को नियंत्रित कर सकता है. धर्मेन्द्र के दावों को लेकर कई सवाल हो सकते हैं, मगर उन्होंने जिस तरह से अपनी मां के लिए ‘इंसोलटी’ को बनाया वो प्रेरक है. एक इंजीनियर कैसे डायबिटीज की रिसर्च के सफ़र पर निकल गया यह जानने के लिए इंडियाटाइम्स हिन्दी ने धर्मेंद्र के साथ खास बातचीत की.
पिता चाहते थे बेटा पढ़-लिख कर इंजीनियर बने
1 मई, 1987 को यूपी के पीलीभीत में पड़ने वाले गोपालपुर में धर्मेन्द्र ने जन्म लिया. पिता पेशे से शिक्षक थे और चाहते थे कि उनका बेटा पढ़-लिख कर इंजीनियर बने. बेटे ने पिता को निराश नहीं किया और गांव के प्राईमरी से लेकर कानपुर के डॉ.अंबेडकर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी फॉर हैंडीकैप तक सफ़र तय किया. इस दौरान महज़ 2 साल की उम्र में उन्होंने पोलियों का दंश भी झेला. उनका आगे बढ़ना आसान नहीं था.
किन्तु, पिता और परिवार की मदद से उन्हें आगे बढ़ने में कोई समस्या नहीं हुई. धर्मेन्द्र बताते हैं कि इलेक्ट्रानिक इंजीनियर बनने के बाद उनके पास नौकरी के कई विकल्प थे. वो अपना मन भी बना चुके थे. इसी बीच उनकी मां को डायबिटीज हो गई और उनकी हालत बिगड़ गई. डायबिटीज क्यों होती है, कैसी होती है, इसका सही इलाज क्या है? मां के इलाज के दौरान ऐसे कई सारे सवाल थे, जो उनके मन में उठ रहे थे.
तकनीक से डायबिटीज के इलाज की कोशिश
इस सबके जवाब खोजते-खोजते धर्मेन्द्र ने कब डायबिटीज पर रिसर्च शुरू कर दी उन्हें खुद भी पता नहीं चला. धर्मेन्द्र की रिसर्च के मुताबिक जब दिमाग का शरीर की कई तंत्रिकाओं पर कंट्रोल नहीं रहता तो वह सही से काम नहीं करती हैं. इससे डायबिटीज का स्तर गड़बड़ाता है और इंसान को परेशानी शुरू होती है. यह जानने के बाद उन्होंने प्लान किया कि वो इस समस्या का हल तकनीक से करेंगे. यही से शुरू हुई उनकी नई यात्रा.
कड़ी मेहनत और अपनी लगन के बलबूते पर अंतत: धर्मेन्द्र ‘इंसोलटी’ नाम का एक खास यंत्र बनाने में सफल रहे. धर्मेन्द्र दावा करते हैं कि उनका यंत्र डायबिटीज को नियंत्रित कर सकता है. साथ ही इसके प्रयोग के बाद डायबिटीज रोगियों को इंसुलिन लेने की भी जरूरत नहीं है. धर्मेन्द्र के मुताबिक उनके यंत्र से निकलने वाली तरंगे शरीर के अमीनो एसिड के स्तर को कंट्रोल रखेगी. जिससे डायबिटीज सामान्य रह सकती है.
सवालों के बीच फ्रांस तक पहुंचा धर्मेंद्र का काम
धर्मेन्द्र के अनुसार वो अपने इस यंत्र का प्रयोग सैकड़ों लोगों पर कर चुके हैं, जिसके सकारात्मक परिणाम ही सामने आए हैं. करीब दो साल पहले धर्मेन्द्र ने दिल्ली के नागलोई क्षेत्र में मौजूद एक मेडिकल सेंटर पर इस यंत्र का प्रयोग किया था. उन्होंने समझौते के तहत अपनी तकनीक से चौदह लोगों पर प्रयोग किया था. जिनमें 12 लोगों पर इसका सकारात्मक प्रभाव हुआ. धर्मेन्द्र के दावे कितने सही हैं, ये तो आने वाला वक्त ही बताएंगा.
समय-समय पर उनकी तकनीक पर सवाल भी उठते रहे हैं. मगर, उनकी तकनीक के प्रदर्शन के लिए उन्हें पेरिस से बुलाया जाना एक शुभ संकेत है. फ्रांस में आयोजित तृतीय वर्ल्ड समिट बायोटेक्नालॉजी एंड प्लांट साइंस के लिए उन्हें बुलाया गया था. अफसोस कोरोना संकट के कारण धर्मेन्द्र इस मौके का लाभ नहीं उठा सके. मगर उन्होंने हार नहीं मानी है. धर्मेन्द्र का काम जारी है. मौका मिलने पर वो अपनी तकनीक को सही साबित करने के लिए हर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हैं. धर्मेन्द्र जैसे युवा समाज के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं हैं.