किसी इमारत के बारे में लोग अक्सर कहते हैं कि ये ईंट और सीमेंट से बनी है. उसकी मज़बूती का श्रेय भी इन्हीं दोनों को दिया जाता है. मगर सच तो ये है कि ईंट और सीमेंट के साथ-साथ उस इमारत को बनाने में बहुत सी चीज़ों का असर मिला होता. उस हवा पानी और सूर्य के प्रकाश का भी, जिसके लिए लोग दाम नहीं चुकाते.
फिल्म जगत भी इसी इमारत की तरह है. किसी भी फिल्म की कामयाबी का श्रेय उसके मुख्य किरदार या उसके निर्देशक को मिलता है. जबकि फिल्म में काम करने वाले हर छोटे से छोटे किरदार ने अपने अभिनय से इस फिल्म को बेहतरीन बनाया होता है. बॉलीवुड में ऐसे कई चेहरे हैं, जिनके अंदर प्रतिभा का अकूत भंडार भरा पड़ा है. लेकिन उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने में सालों लग जाते हैं. फिल्मों में साइड रोल करते हुए ये लोग अपनी पहचान बनाते हैं. इनका जीवन निकल जाता है लोगों को ये बताते हुए कि भाई मुझ में अभिनय करने की काबिलियत है.
ऐसे ही एक अभिनेता के बारे में आज हम आपसे बात करने जा रहे हैं. इन्होंने फिल्म जगत को 20 साल दिए तब जाकर फिल्म जगत ने इनके हुनर की पहचान की:
दिब्येन्दु की आंखें भी करती हैं अभिनय
अभिनय का मतलब है, जिस किरदार के लिए आपको चुना गया है उस किरदार में पूरी तरह से समा जाना. इस दौरान ज़रूरी है कि आपके शरीर का एक एक अंग अभिनय कर रहा हो. दिब्येन्दु भट्टाचार्य उर्फ देबू एक ऐसे ही अदाकार हैं, जो अभिनय के दौरान पूरी तरह से किरदार में उतर जाते हैं. इनके अभिनय का एक बड़ा हिस्सा इनकी आंखों से होकर गुज़रता है.
सूखे होंठ और मदमस्त आंखों की वजह से देबू दर्शकों को अपने अभिनय की ओर आकर्षित करते हैं. किरदार चाहे कैसा भी हो लेकिन अहम भूमिका इनकी आंखों की ही होती है. इनकी आंखें अपने किरदार के हिसाब से रंग बदलती हैं. क्रिमिनल जस्टिस में इनके किरदार लायक तलुक्दार की आंखें भय पैदा करती हैं, तो वहीं अनदेखी में डीसीपी घोष की आंखों में रहस्य है, उत्सुकता है और शरारत है. इनकी आंखों को लेकर महेश भट्ट ने कहा था कि इनकी आंखें इनके अभिनय की सबसे बड़ी मजबूती हैं.
वाकई में अगर इन्हें किसी दिन अभिनय क्षेत्र में कोई बड़ा पुरस्कार मिलता है तो वो सम्मान असल में इनकी आंखों को मिलेगा. दिब्येन्दु का जन्म कोलकाता में हुआ. वह एक बंगाली परिवार से संबंध रखते हैं. अपनी बोर्ड परीक्षाओं के बाद देबू थियेटर से जुड़ गए. थियेटर में आने के बाद इन्हें अहसास हुआ कि ये अभिनय कर सकते हैं और इन्हें इसी लाइन में आगे बढ़ना चाहिए.
इसी सोच के साथ देबू ने 1997 में नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा ज्वाइन कर लिया तथा कोलकाता छोड़ कर मुंबई चले आए. यहीं से शुरू हुआ इनके संघर्ष का सफर. इस बीच थियेटर ने इनका जो साथ दिया उसी के कारण इनका अभिनय में मनोबल बढ़ा. देबू मानते हैं कि थियेटर अभिनय की मां है. अभिनय थियेटर से ही जन्म लेता है इसीलिए तो देबू का पहला प्यार थियेटर ही है.
तीन साल तक नेशनल रिपर्टरी कंपनी में सीनियर एक्टर के तौर पर काम करने के बाद एक दिन देबू को पता चला कि मीरा नायर अपनी नई फिल्म के लिए ऑडिशन ले रही हैं. देबू को इस मौके की तलाश थी. लेकिन दुर्भाग्य से देबू ऑडिशन के लिए जाते उससे पहले ही उन्हें पता चला कि ऑडिशन समाप्त हो चुका है और कास्टिंग चुनी जा चुकी है.
उन्हें लगा कि उनके हाथ से ये मौका निकल गया लेकिन एनएसडी पहुंचने के बाद किसी ने उन्हें बताया कि जिस फिल्म के लिए देबू ऑडिशन देने की सोच रहे थे उस फिल्म के कास्टिंग डायरेक्टर उन्हें खोज रहे हैं क्योंकि वह फिल्म के एक रोल के लिए देबू को सही मान रहे थे. इस तरह से देबू को मानसून वेडिंग के रूप में उनकी पहली फिल्म मिली. इसके बाद उन्हें मंगल पांडे, अब तक छप्पन, गोल तथा ब्लैक फ्राइडे जैसी बड़ी फिल्मों में कई रोल मिले.
छोटे-छोटे किरदारों से प्रभावित किया
देबू की हमेशा से ये ख़ासियत रही कि वह अपने छोटे किरदार में भी लोगों को अपने अभिनय से खूब प्रभावित करते हैं. जिन भी अभिनेताओं के साथ उन्होंने काम किया उन सबने देबू की खून तारीफ की. फिल्म ऐतबार के दौरान देबू और जॉन इब्राहिम काफ़ी अच्छे दोस्त बन गए थे. एक इंटरव्यू के दौरान जॉन ने देबू की तारीफ़ करते हुए कहा था कि वह बहुत टैलेंटेड अभिनेता हैं.
सत्यहिंदी में देबू पर लिखे अपने एक लेख में फिल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज ने बताया था कि महेश भट्ट ने देबू को पहली मुलाकात में उनकी आंखों की तारीफ करते हुए कहा था कि उनमें रजनीकांत जैसी इंटेंसिटी है। उन्हें कोशिश करते रहना चाहिए एक दिन कामयाबी ज़रूर मिलेगी. बता दें कि देबू को रजनीकांत बेहद पसंद हैं.
वहीं विक्रम भट्ट देबू को अपनी फ़िल्मों में छोटे रोल देते रहे और कहते रहे कि एक दिन तुम्हारे लायक रोल दूंगा. वह दिन अभी नहीं आया है। देबू ने अनुराग कश्यप की देव डी में चुन्नीलाल का किरदार निभाया तो अनुराग भी उनके अभिनय के कायल हो गए. मंगल पांडे फिल्म के दौरान आमिर खान ने भी देबू को पसंद किया.
क्रिकेट के फॉर्मेट की बात करें तो भले ही क्रिकेट की शुरुआत टेस्ट से हुई हो लेकिन टेस्ट से ज़्यादा लोगों ने वन डे तथा बाद में टी ट्वंटी को पसंद किया. लेकिन फिल्म जगत में उल्टा है. यहां पहले वन डे यानी फिल्मों ने जगह बनाई, फिर टी ट्वंटी यानी शार्ट फिल्मों ने तथा आज लोग टेस्ट यानी वेब सीरिज़ पसंद कर रहे हैं.
देबू की भी शुरुआत ‘वन डे’ से हुई, जहां उन्हें अपने अभिनय का प्रदर्शन दिखाने का वो मौका नहीं मिला जिसके लिए वो हमेशा बेचैन रहे. मगर अब सिनेमा के टेस्ट फॉर्मेट यानी वेब सीरिज़ के जमाने में देबू का अभिनय प्रदर्शन खुल कर सामने आने लगा है. देव डी के चुन्नीलाल से लेकर ‘ब्लैक फ्राइडे’ के येड़ा याकुब तक. उनके द्वारा निभाए किरदारों को पसंद किया गया.
वहीं आज के दौर में सबसे ज़्यादा देखी जाने वाली वेब सिरिज़ों में देबू के अभिनय का जादू चल रहा है. वह ‘क्रिमिनल जस्टिस’ वेब सीरिज़ के लायक तलुकदार के भयभीत कर देने वाले लुक में नज़र आए, तो वहीं ‘अनदेखी’ में तेज तर्रार पुलिस ऑफिसर बन कर संजीदा भी रहे और चुलबुले भी.
इसके अलावा देबू जामतारा, लालबाज़ार, थिंकिस्तान जैसी वेब सीरिज़ में भी अपने अभिनय का जलवा बिखेर चुके हैं.
खुद को तराशने में लग गए 20 साल
एक तरह से देखा जाए तो देबू उन सबके लिए प्रेरणा हैं जो अपनी आंखों में एक सपना लिए मुंबई आते हैं लेकिन इंतज़ार के लंबे वक्त के आगे हार मान लेते हैं. देबू 20 साल से इस फिल्म इंडस्ट्री में खुद से ही खुद को तराश रहे हैं. बेशक कई बड़े अभिनेताओं और निर्देशकों ने उनके हुनर की सराहना की हो लेकिन अपनी पहचान इन्होंने अपने दम पर ही बनाई है. हर बार अपने अभिनय से इन्होंने बॉलीवुड के दरवाज़े पर दस्तक देते हुए कहा है कि मुझे पूरी तरह से अंदर आने दो.
अगर आप किसी लक्ष्य को पाने निकाले हैं तो सबसे ज़रूरी ये है कि आपका खुद पर विश्वास बना रहे. परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों लेकिन आप इस बात पर अपना विश्वास कभी ना कम होने दें कि एकदिन आप अपने लक्ष्य को पा ही लेंगे. देबू की भी सबसे बड़ी ख़ासियत यही रही कि इन्होंने कभी हार नहीं मानी. एक एक सीढ़ी चढ़ते हुए इन्होंने आज अपना वो मुकाम तो हासिल कर ही लिया है जहां ये किसी तरह की पहचान के मोहताज नहीं हैं.
लोगों ने ज़्यादातर देबू को नेगेटिव किरदार निभाते देखा है. उनकी आंखों से लेकर उनके चेहरे के हावभाव तक ऐसे किरदारों को सूट करते हैं लेकिन असल ज़िंदगी में देबू इससे बहुत अलग हैं. वो अपने परिवार से प्यार करते हैं, अपने बच्चों के साथ समय बिताना पसंद करते हैं. आगे देबू सिनेमा के कुछ खास दिग्गजों के साथ काम करना चाहते हैं.
उनकी सबसे पहली चाहत है कि वो रंगमंच और सिनेमा के मंझे हुए अदाकार नसरूद्दीन शाह के साथ काम करें. हालांकि देबू और नसीरुद्दीन शाह मानसून वेडिंग फिल्म में एक साथ काम कर चुके हैं, लेकिन फिल्म में दोनों ने स्क्रीन साझा नहीं की. दोनों का एक साथ कोई भी सीन नहीं था. पिकू फिल्म देखने के बाद देबू की दिली इच्छा है कि वह दीपिका पादुकोण के साथ काम करें. इसी तरह वह एक बार शाहरुख खान और शबाना आज़मी के साथ भी काम करना चाहते हैं.
देबू एक बार आमिर खान के साथ मंगल पांडे में काम कर चुके हैं, लेकिन वे दोबारा से आमिर के साथ काम करना चाहते हैं. दिब्येन्दु भट्टाचार्य में जितनी काबिलियत है. उन्हें उतने मौके अभी नहीं मिले. मगर जिस तरह से वह एक के बाद एक वेब सीरिज़ में नज़र आ रहे हैं. इस आधार पर लग रहा है कि आने वाला समय उनके करियर का पीक प्वाइंट साबित होगा. ऐसे अभिनेताओं को ज़्यादा मौके मिलने चाहिए जिनके पास केवल और केवल अभिनय है. लेकिन दुर्भाग्य से ऐसे अभिनेताओं की आधी से ज़्यादा ज़िंदगी खुद को साबित करने में ही बीत जाती है.