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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, शांति देवी अपने बच्चों को एक बात कहती अगर तुम सब पढ़ लिखकर काबिल बन जाओगे तो उन्हें मजदूरी नहीं करनी पड़ेगी. उनके बच्चों ने भी अपनी मां के दर्द को समझा. मेहनत से पढ़ाई करते रहे.Patrikaफ़ीस भरने के नहीं थे पैसे मिली जानकारी के मुताबिक, शांति देवी मजदूरी करके बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाती रहीं. लेकिन कभी-कभी उनके पास बच्चों के फीस भरने के पैसे नहीं होते थे. ऐसे में वो अपने पालतू पशुओं को बेच दिया करती थीं. तो कभी वो पेड़ों को बेचकर बच्चों की फीस जमा कर देतीं. उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए काफी संघर्ष किया. कई मुश्किलों का डट कर मुकाबला किया.
Twitterफिर बच्चों ने किया नाम रौशनउनके बच्चों ने भी उन्हें निराश नहीं किया. फिर उनकी मेहनत रंग लाने लगी. उनके एक बेटे धर्मराज रुलानियां नर्सिंग ऑफिसर हैं. वे एसएमएस अस्पताल जयपुर में कार्यरत हैं. वहीं उनके छोटे बेटे हुक्मीचंद ने भी अपनी मां के सपनों को पूरा करने के लिए खूब मेहनत की. वे एक होनहार छात्र थे. कक्षा 8 से लेकर 12वीं तक लगातार टॉप करते रहे. उन्होंने सीकर के नवजीवन साइंस स्कूल से पढ़ाई करते हुए इंटरमीडिएट की परीक्षा में पूरे प्रदेश में 7वीं रैंक हासिल की. परिवार और जिले का नाम रोशन किया था. आगे बीटेक की डिग्री ली.
Twitterलेकिन हुक्मीचंद रुमनियां कुछ बड़ा करना चाहते थे. वो प्रशासनिक सेवा परीक्षा की तैयारी में जुट गए. दिन रात कड़ी मेहनत की. साल 2018 में राजस्थान प्रशासनिक सेवा परीक्षा में न सिर्फ पास हुए, बल्कि प्रदेश में 18वीं रैंक हासिल की. RAS (Rajasthan Administrative Services) अधिकारी बनकर हुक्मीचंद ने अपनी मां के सपनों को साकार कर दिया. आज गांव में उनकी मां को लोग SDM की मां कहकर पुकारते हैं. जो उनकी त्याग और संघर्ष की वजह से संभव हो पाया.