इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं
गधे हंस रहे, आदमी रो रहा है
जवानी का आलम गधों के लिए है
ये दिल्ली, ये पालम गधों के लिए है
पिलाए जा साकी, पिलाए जा डट के
मैं दुनियां को अब भूलना चाहता हूं
घोडों को मिलती नहीं घास देखो
यहां आदमी की कहां कब बनी है
जो गलियों में डोले वो कच्चा गधा है
जो खेतों में दीखे वो फसली गधा है
मैं क्या बक गया हूं, ये क्या कह गया हूं
मुझे माफ करना मैं भटका हुआ था
ओ घोड़ी पर बैठे दूल्हे क्या हंसता है
अरे उतावले!!
ओ रे बकरे!!
ओ मंडप के नीचे बैठे मिट्टी के माधो!!
ओ रे पगले!!
अरे निरक्षर!!
2022-10-29