रूस-यूक्रेन युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है। वहरं की यूनिवर्सिटीज का मकसद ट्रांसफर मामले को अधिक से अधिक अटकाए रखना है ताकि स्टूडेंट्स उनके यहां बने रहें और यूनिवर्सिटी को उनसे होने वाली कमाई बंद न हो।
कई संस्थानों ने इन स्टूडेंट्स का ट्रांसफर का अनुरोध सीधे तौर पर खारिज कर दिया है। उनका कहना है कि अब देश में हालात ठीक हैं और इसलिए उन स्टूडेंट्स को वापस आकर कॉलेज जॉइन करना चाहिए। जिन यूनिवर्सिटी और इंस्टिट्यूट्स ने ऐसा मनमाना आदेश जारी नहीं किया और इच्छुक स्टूडेंट्स का ट्रांसफर करना सैद्धांतिक रूप से स्वीकार कर लिया है उनकी तरफ से भी ऐसी ऐसी शर्तें लगाई जा रही हैं जिन्हें पूरा करना मौजूदा हालात में लगभग नामुमकिन है।
उदाहरण के लिए, कई यूनिवर्सिटी कह रही हैं कि इन स्टूडेंट्स को तब तक उनके ओरिजिनल पेपर्स नहीं दिए जा सकते, जब तक वे लाइब्रेरी से ली गई किताबें और कॉलेज की अन्य संपत्ति खुद आकर वापस नहीं करते। सचाई यह है कि जिन स्थितियों में ये स्टूडेंट्स वहां से स्वदेश लौटे उनमें यह संभव ही नहीं था कि वे सारा सामान साथ ले आते। मिनिमम सामान के साथ जान बचाते हुए निकल आना ही उस समय संभव था और सबने ऐसा ही किया भी। ये स्टूडेंट्स कह भी रहे हैं कि सारा सामान वे ज्यों का त्यों हॉस्टलों में छोड़ आए। अब कहां वे किताबें ढूंढें और कैसे वापस करें। बाकी औपचारिकताओं के लिए भी स्टूडेंट्स से खुद वहां आने के लिए के लिए कहा जा रहा है।
ध्यान रहे रूस-यूक्रेन युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है। जाहिर है, इन यूनिवर्सिटीज का मकसद ट्रांसफर मामले को अधिक से अधिक अटकाए रखना है ताकि स्टूडेंट्स उनके यहां बने रहें और यूनिवर्सिटी को उनसे होने वाली कमाई बंद न हो। लेकिन यह वक्त ऐसा है जिसमें यूनिवर्सिटी को अपनी कमाई से ऊपर उठकर स्टूडेंट्स के भविष्य के लिहाज से सोचना चाहिए। अगर यूनिवर्सिटी स्वेच्छा से ऐसा नहीं करतीं तो राजनयिक और जरूरत पड़े तो राजनीतिक स्तर पर भी यह मसला उठाया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि इसका सरल और व्यावहारिक उपाय जल्द से जल्द निकले।