ड्रैगन फ्रूट की खेती: एक ही लागत से 25 साल तक मुनाफा, जानें कहां से लाएं पेड़, कैसे लगाएं और ऐसे कमाएं

आज हम आपको एक ऐसे फ्रूट की खेती के बारे में बता रहे हैं जिसे कम लागत में शुरू अच्छी कमाई कर सकते हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं ड्रैगन फ्रूट (Dragon Fruit) की खेती के बारे में। आइए जानते हैं इसके बारे में सबकुछ। आदित्य ने हमें बताया कि ड्रैगन फ्रूट की खेती (Dragon Fruit Cultivation) के लिए किसी विशेष मिट्टी की जरूरत नहीं होती है। यूपी, एमपी, बिहार के किसान भी आराम से इसकी खेती कर सकते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने पिछले साल मन की बात कार्यक्रम (Mann Ki Baat) में ड्रैगन फ्रूट की खेती (Dragon Fruit Farming) करने वाले किसानों को बधाई दी थी। उन्होंने इसे किसानों की आमदनी बढ़ाने का एक बढ़िया तरीका बताया था। उसी समय कमल के फूल की तरह दिखने वाले इस फल को ‘कमलम’ नाम दिया गया था। मूलत दक्षिण अमेरिका से आए इस फल की खेती देश में महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना, कर्नाटक के अलावा उत्तर भारत के भी कई राज्यों में होने लगी है।

अहम सवाल ये है कि क्या वाकई ड्रैगन फ्रूट की खेती (Dragon Fruit Farming) किसानों को अधिक कमाई (Bumper Earning by Dragon Fruit Farming) करा सकती है, इस बारे में हम आपको बताएं, इससे बेहतर होगा कि इसकी खेती कर रहे किसान से ही इन सारे सवालों के जवाब को जान लिया जाए।

उत्तर प्रदेश में एक जिला है, शाहजहांपुर यहां एक सरकारी हाई स्कूल में विज्ञान के टीचर हैं आदित्य मिश्रा। वे 1997 से ही सरकारी सेवा में है। लेकिन इसके साथ ही वे मूलत किसान हैं। पिछले चार साल से 5 एकड़ खेत में वे ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं। उन्होंने इसके 20,000 पौधे लगाए हैं। ड्रैगन फ्रूट की खेती को लेकर हमने उनसे सम्पूर्ण जानकारी एकत्रित की।

यूट्यूब देख आया विचार

आदित्य मिश्रा ने मीडिया से बातचीत के दौरान बताया कि मोबाइल पर इंटरनेट के जरिये वे खेती को लेकर काफी कुछ एक्सप्लोर करते रहते थे। इसी दौरान यूट्यूब पर उन्होंने ड्रैगन फ्रूट की खेती के बारे में देखा। उन्होंने इसके बारे में बहुत सर्च किया। कि इसे कैसे किया जा सकता है, कैसे पैसे कमाया जा सकता। उस समय ड्रैगन फ्रूट को देखना तो दूर, शाहजहांपुर के किसानों ने इसका नाम तक नहीं सुना था। शाहजहांपुर में कोई इस फल के बारे में कोई नहीं जानता था। की इसे कैसे उगाया जाता है।

 

आगे वे बताते हैं कि महाराष्ट्र के सोलापुर में इसकी खेती के बारे में उन्हें पता चला। वर्ष 2018 में वे सोलापुर गए और वहां से 1600 पौधे लेकर आए। अपने खेत में उन्होंने 1600 पेड़ लगाए और फिर कलम कर के पौधे से पौधे तैयार किए। अब उनके पास ड्रैगन फ्रूट के करीब 20 हजार पौधे हैं। सोलापुर से उन्‍होंने 2018 में 50 रुपये की दर से पौधे लाए थे। अपने आसपास के किसानों को भी उसकी जानकारी उपलब्ध करा कर उनको भी वे उसी दर पर उपलब्ध करा रहे हैं।

ट्रेलिस विधि से लगाए पौधे

आदित्य ने हमें बताया कि ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए किसी विशेष प्रकार की मिट्टी की आवश्यकता नहीं पड़ती है। यूपी, एमपी, बिहार के किसान भी आसानी से इसकी खेती कर सकते हैं। मानक तो ये है कि एक एकड़ में 2000 पौधे लगाए जाएं, लेकिन ट्रेलिस विधि Trellis Method for Dragon Fruit से उन्होंने 5 एकड़ में करीब 20 हजार पौधे लगाए हैं।

उन्होंने बताया कि यह मूलत कैक्टस की प्रजाति का एक पौधा है। इसे पिलर का सहारा देना होता है। उन्होंने भी अपने खेत में सिमेंट के पिलर बनवाकर पौधे लगाए हैं। अगर आपको इसके बारे में सही जानकारी होगी इसकी रणनीति की सही जानकारी होगी तो आप सफल किसान बन सकते है इस खेती को करके।

 

ड्रैगन फ्रूट की सिंचाई को लेकर उन्होंने बताया कि फ्लड एरिगेशन यानी सामान्य तरीके से भी इसकी सिंचाई की जा सकती है। हालांकि ड्रिप एरिगेशन यानी टपक सिंचाई इसके लिए ज्यादा फायदे मंद साबित होती है। इससे पौधों को बेहतर पोषण मिलता है और उत्पादन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

पीएम कृषि सिंचाई योजना का उपयोग

आदित्य मिश्रा ने बताया कि ड्रिप एरिगेशन के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (Pradhan Mantri Krishi Sinchai Yojana) से उन्हें बहुत हेल्प मिली। डिस्ट्रिक्ट हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट ने मदद की। 3 एकड़ खेत के लिए उनका आवेदन स्वीकृत हुआ। एजेंसी खेता का सर्वे कर के गई और फिर आकर सारे उपकरण, सेटअप वगैरह लगा गई। उन्होंने बताया कि 3 एकड़ से कम खेती में 90 फीसदी सब्सिडी मिल जाती है। उन्हें केवल 10 ​पीसदी खर्च वहन करना पड़ा।

नीम ऑयल या गोमूत्र का करे उपयोग

उन्होंने बताया कि यूं तो इस फल के पौधे में कोई बीमारी नहीं लगती है। लेकिन मौसम में बदलाव के कारण अगर फंगस लग भी जाता है तो इसका बहुत ही आसान उपाय है। इसके लिए केमिकल दवाएं भी आती हैं, लेकिन वे अपने खेतों में इन पौधों के लिए नीम ऑयल या गोमूत्र का उपयोग करते हैं। इससे फलों का उत्पादन अच्छा बना रहता है और जैविक खेती रह जाती है।

कितना होता है उत्पादन, कितनी होती है कमाई (How Much Earning)

उत्पादन को लेकर आदित्य ने बताया कि एक बार पौधे लगाकर किसान 25 साल तक निश्चिंत हो सकते हैं। इसके पौधे एक साल में 7 बार फल देते हैं। जैसे मई की शुरुआत में कलियां निकलती है, तो जून के लास्ट तक फल पक जाते हैं। जून या जुलाई में कलियां होती हैं, तो अगस्त में फल तोड़े जा सकते हैं।

 

उन्होंने बताया कि उनके खेत में पहले साल एक पोल पर 5 किलो फल आए, फिर दूसरे साल 10 किलो और फिर तीसरे साल से 7 राउंड में एक पोल पर 20 किलो फल आने लगे। उनके यहां लोकल बाजार में लोग खेत से ही 250 रुपये किलो तक फल ले जाते हैं। लोकल के अलावा आसपास के जिलों में और लखनऊ तक भी उनके खेतोंं से फल भिजवाए जाते हैं। उन्‍होंने बताया कि एक एकड़ में 8 से 10 लाख रुपये तक की कमाई आराम से हो जाती है।

कई दूसरे जिलों में भी होने लगी है खेती

उत्तर प्रदेश में बाराबंकी के अलावा संभल और मुरादाबाद समेत कुछ जिलों में किसानों प्रयोग के तौर पर इसकी खेती करना प्रारंभ कर दिया है। संभल के किसान शेख इकबाल इसकी काफी समय से खेती करते आ रहे हैं। उनके अनुसार इसकी फसल के लिए रेतीली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है, और पानी की आवश्यकता कम होती है। पिछले दिनों राजभवन में लगी शाक भाजी प्रदर्शनी में भी शेख इकबाल की स्ट्रॉबेरी समेत कई फसलों का प्रदर्शन हुआ था। उन्हें प्रधानमंत्री मोदी भी पत्र भेजकर बधाई दे चुके हैं।