नगर निगम शिमला में भाजपा को मिली करारी हार उसके लिए 2024 लोकसभा चुनाव में खतरे की घंटी है। मंडी लोकसभा उपचुनाव के बाद भाजपा में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। जो पार्टी जीतने में विश्वास रखती है, वह हिमाचल में कई मोर्चों पर शिकस्त का सामना कर रही है।
मंडी से शुरू हुआ हार का सिलसिला विधानसभा चुनावों से गुजर कर शिमला नगर निगम तक पहुंचा है। अब सामने 2024 की चुनौती है। शिमला के पूरे चुनाव में भाजपा बिखरी नजर आई। संगठन के लिए अपनी पहचान रखने वाली भाजपा हिमाचल में कामयाबी के लिए तरस रही है। भाजपा शिमला चुनावों में शुरू में गलत निर्णय लेने के चलते पूरे चुनाव में बैकफुट पर नजर आई। कारण था कि पांवटा साहिब के विधायक सुखराम चौधरी को शिमला चुनावों का प्रभारी बनाया गया।
सुखराम पांवटा में लोकप्रिय विधायक हैं। भारी मतों से जीते भी हैं। मगर शिमला जैसे शहर में चौधरी को चुनाव प्रभारी बनाना भाजपा आलाकमान का गलत फैसला रहा, क्योंकि शिमला के भौगोलिक व जातीय समीकरण बेहद भिन्न हैं। हालांकि पिछले चुनाव में डॉ. राजीव बिंदल ने काफी मेहनत के बाद शिमला में भगवा परचम लहराने में सफलता हासिल की।
भाजपा आलाकमान ने बिना व्यवहारिक अध्ययन के अति उत्साह में सुखराम चौधरी को शिमला चुनावों का प्रभारी बना कर जो गलती की, उसे हालांकि डॉ. राजीव बिंदल को पार्टी का अध्यक्ष बनाकर सुधारने की कोशिश की मगर तब तक देर हो चुकी थी। भाजपा नेता चुनावों से पहले ही जीत-हार की जिम्मेदारी एक-दूसरे पर थोपने में जुटे थे। जिसका नतीजा सबके सामने है।
भाजपा आलाकमान को इस हार के बाद आत्ममंथन करने की जरूरत है। यदि भाजपा ने समय रहते अपने कुनबे को ठीक नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं जब लोकसभा चुनाव में भाजपा कांगड़ा, शिमला व मंडी सीट पर कड़ा संघर्ष करती दिखाई देगी।
यही नहीं, अगर हमीरपुर संसदीय सीट से केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के खिलाफ अगर कांग्रेस ने किसी मजबूत उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतार दिया तो राहें उनके लिए भी कठिन नजर आ रही हैं। उसका सबसे बड़ा कारण मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू व डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री का ताल्लुक हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से है। ये दोनों अभी से अनुराग ठाकुर के खिलाफ फील्डिंग सजाने में जुट गए हैं। इसलिए भाजपा आलाकमान के साथ-साथ राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को लगातार मिल रही हारों पर चिंतन करने की जरूरत है।
व्यावहारिक निर्णय लेने के साथ-साथ पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी पर लगाम लगाना उनके लिए अभी तक चुनौती साबित हुआ है। क्योंकि हिमाचल नड्डा का गृह प्रदेश है इसलिए 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए उनकी भी साख दांव पर लगी हुई है। समय रहते यदि डैमेज कंट्रोल नहीं किया तो भाजपा के लिए परिणाम सुखद नहीं कहे जा सकते।