भगत सिंह… वो क्रांतिकारी जिनके बारे में हम और आप बचपन से ही पढ़ते आ रहे हैं. राम प्रसाद बिस्मिल (Ram Prasad Bismil) और अशफ़ाकउल्ला ख़ान (Ashfaqulla Khan) ने ‘मेरा रंग के बसंती चोला’ गाना बनाया, लेकिन कहीं भी अगर ये लिखाई दिखती है या ये गाना सुनाई देता है तो सबसे पहले ज़हन में भगत सिंह ही आते हैं. भगत सिंह (Bhagat Singh), सुखदेव (Sukhdev), राजगुरु (Rajguru), चंद्रशेखर आज़ाद (Chandrashekhar Azad) जैसे कई क्रांतिकारियों की वीरता की कहानियां आज भी इस वतन की हवाओं में मौजूद हैं. महिलाएं भी देश की आज़ादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने में पीछे नहीं थीं. अंग्रेज़ी हुकूमत (British Colonial Rule) के सामने उन्हें सिर कटाना मंज़ूर था, सर झुकाना नहीं. ऐसी कई महिलाओं के बारे हम थोड़ा-बहुत तो जानते हैं लेकिन बहुत सारी क्रांतिकारी महिलाओं की कहानियां इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो गईं. ऐसी ही एक वीरांगना थीं, भगत सिंह की भाभी (Bhagat Singh Bhabhi), दुर्गा देवी वोहरा (Durga Devi Vohra)
कौन थीं दुर्गा देवी वोहरा?
भगत सिंह पर बनी कई फ़िल्मों (Movies on Bhagat Singh), में दुर्गा देवी (Durga Devi) उर्फ़ दुर्गा भाभी (Durga Bhabhi) का ज़िक्र किया गया है. दुर्गा देवी को उस महिला के रूप में दिखाया गया है जिसने जॉन सॉन्डर्स (John Saunders) की हत्या के बाद, भगत सिंह को लाहौर से भागने में मदद की थी. ग़ौरतलब है कि इस तरह की कहानियां भगत सिंह पर ही केन्द्रित थी. आम जनता के स्मृति पटल में कम ही महिला क्रांतिकारी अंकित हैं, जबकि उनका बलिदान पुरुषों से कम नहीं था. दुर्गा देवी वोहरा का जन्म 7 अक्टूबर, 1907 को इलाहाबाद के एक संपन्न परिवार में हुआ. माता के देहांत के बाद उनके पिता ने संयास ले लिया और उनकी चाची ने ही उनका पालन किया. 11 साल की उम्र में दुर्गा देवी का विवाह, लाहौर में रहने वाले संपन्न गुजराती, भगवती चरण वोहरा (Bhagwati Charan Vohra) के साथ कर दिया गया.
क्रांतिकारियों के संपर्क में कैसे आईं दुर्गा देवी?
1920 के शुरुआत में ही भगवती चरण वोहरा ने सत्याग्रह में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था. वे लाहौर के नेशनल कॉलेज के छात्र थे. इसी कॉलेज में भगत सिंह. सुखदेव, यशपाल भी पढ़ते थे. सभी दोस्तों ने मिलकर नौजवान भारत सभा (Naujawan Bharat Sabha) की शुरुआत की. इस ग्रुप का मकसद था युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ना और सांप्रदायिकता और अस्पृश्यता जैसी सामाजिक बुराइयों को खत्म करना. लाहौर स्थित भगवती चरण वोहरा के घर पर क्रांतिकारी दोस्तों का आना-जाना लगा रहता था. इस तरह से दुर्गा देवी वोहरा भी क्रांतिकारियों के संपर्क में आईं. एचएसआरए (Hindustan Socialist Republican Association) की सदस्य बन गईं दुर्गा देवी.
‘पत्नी’ बनकर बचाई भगत सिंह की जान
19 दिसंबर, 1928 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने जॉन सॉन्डर्स की हत्या कर दी. जॉन सॉन्डर्स ही लाला लाजपत राय की मृत्यु का ज़िम्मेदार था. इस हत्या को अंजाम देने के बाद पुलिस से बचकर तीनों को लाहौर से निकलना था. भगवती चरण वोहरा इस दौरान कांग्रेस सेशन में हिस्सा लेने के लिए कोलकाता गए हुए थे. तीनों क्रांतिकारी मदद के लिए दुर्गा देवी वोहरा के पास पहुंचे. दुर्गा देवी को उनके पति ने खर्च के लिए जो पैसे दिए थे वो उन्होंने क्रांतिकारियों को दे दिए. दुर्गा देवी ‘भगत सिंह की पत्नी’ बनकर लाहौर से ट्रेन के ज़रिए निकलने को भी तैयार हो गईं. पुलिस से बचकर लाहौर से निकलने के लिए भगत सिंह ने अपने लंबे केश, दाढ़ी कटवा लिए थे.
वो ऐसा दौर था कि पुरुषों और महिलाओं का मिलना-जुलना, बात-चीत करना अशोभनीय समझा जाता था. समाज की परवाह किए बगैर दुर्गा भाभी ने पुरुष क्रांतिकारियों के साथ कंधे स कंधा मिलाकर काम किया. लोग क्या कहेंगे इसकी चिंता किए बगैर एक क्रांतिकारी की पत्नी बनने का नाटक तक कर दिया. तीन साल के बच्चे को गोद में उठाकर भगत सिंह, दुर्गा देवी और राजगुरु (नौकर बने थे) के साथ लखनऊ के लिए फ़र्स्ट क्लास कोच में बैठ गए.
क्रांतिकारियों के खत उनके घरों तक पहुंचाती थी
महिला क्रांतकारियों को उस दौर में हथियार, असला-बारूद इधर से उधर पहुंचाने का काम दिया जाता था. वो संदेशवाहक का भी काम करती थीं. पल-पल सिर पर मंडरा रहे मौत के खतरे के बावजूद वो निडर होकर क्रांतिकारियों के संदेश निहित ठिकानों तक ले जातीं. ग़ौरतलब है कि लाइव एक्शन, जैसे की बम फेंकना, किसी अंग्रेज़ की हत्या आदि करना जैसे काम पुरुष क्रांतिकारी ही करते थे. दुर्गा देवी ने संदेश वाहक का काम करने के साथ ही बम बनाने वाली फै़क्ट्री चलाने में भी सहायता की. जब लाहौर में भगतवी चरण की बम बनाने वाली फ़ैक्ट्री का पता अंग्रेज़ों को चला तब दुर्गा भाभी ‘पोस्ट बॉक्स’ बन गईं. वो छिप क्रांतिकारियों के खत उनके घरों तक पहुंचाती.
पति के देहांत के बाद शोक में नहीं, देशभक्ति में ही डूबी रहीं
भगवती चरण वोहरा, भगत सिंह को जेल से छुड़ाने की प्लानिंग कर रहे थे. 28 मई, 1930 में भगवती चरण वोहरा की बम की टेस्टिंग के दौरान मौत हो गई. दुर्गा देवी पति की मौत के बाद भी शोक में नहीं डूबी या खुद को घर की चाहरदिवारी में कैद नही किया बल्कि पहले की तरह ही क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेती रहीं. जुलाई 1929 में दुर्गा भाभी ने भगत सिंह की तस्वीर हाथ में लिए एक रैली निकाली और उनकी रिहाई की मांग की. कुछ हफ़्ते बाद 63 तक भूख हड़ताल करने की वजह से क्रांतिकारी जतींद्र नाथ दास का निधन हो गया. दुर्गा भाभी ने जतींद्र नाथ के लिए लाहौर से कलकत्ता तक पद यात्रा निकाली.
अंग्रेज़ों पर गोलियां चलाने वाली पहली महिला?
भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के लिए फांसी की सज़ा मुकर्र हो चुकी थी. इस निर्णय के विरोध में गदर पार्टी के पृथ्वी सिंह आज़ाद और एचएसआरए के सदस्य सुखदेव राज ने पमंजाब के गवर्नर विलियम हैली को बंबई में मारने की योजना बनाई. कड़ी सुरक्षा की वजह से उन्हें योजना बदलनी पड़ी और 8 अक्टूबर 1930 की रात को तीन लोगों ने लैमिंग्टन रोड पुलिस स्टेशन पर खड़े एक ब्रिटिश जोड़े पर गोलीबारी की. सार्जेंट टेलर को हाथ में गोली लगी और उनकी पत्नी को पैर में. दुर्गा देवी ने कुछ 3-4 बार गोलियां दागी होंगी. पहली बार किसी महिला क्रांतिकारी को अंग्रेज़ी हुकूमत पर यूं गोलियां बरसाते देखा गया. बॉम्बे प्रेस के अनुसार “पहली बार किसी महिला को आतंकवादी गतिविधि का हिस्सा बनते देखा गया”.
दुर्गा देवी ‘भगत सिंह डिफ़ेंस कमिटी’ की अहम सदस्य थीं. इस कमिटी ने कानूनी और आर्थिक सहायता की लॉबी बनाई, फांसी की सज़ा रद्द करवाने के लिए दस्तखत इकट्ठा किए और भगत सिंह और साथियों का केस प्रीवि काउंसिल तक ले गए. ख़ास बात ये है कि इस कमिटी में कई महिलाएं थीं. भगत सिंह जब जेल में थे तब भी वो उनसे मिलने पहुंचती रहीं और जेलर से छिपाकर चिट्ठियां, किताबें, खाने-पीने की चीज़ें देती रहीं. कई अन्य महिलाएं और लड़कियां भी जेल में कैद क्रांतिकारियों की बहनें या रिश्तेदार बनकर जेल पहुंचती और क्रांतिकारियों को संदेश देती.
कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, दुर्गा देवी ने 14 सितंबर, 1932 को आत्मसमर्पण कर दिया. उन्होंने खुद पुलिस को खत लिखकर अपना पता बताया. दुर्गा देवी के कई कॉमरेड्स शहीद हो चुके थे और वो अंदर से खाली हो चुकी थीं. कुछ रिपोर्ट्स कहते हैं कि जेल में वो किसी से ज़्यादा बात-चीत भी नहीं करती थीं. उन्हें 2 महीने तक जेल में रखा गया और 12 महीने तक लाहौर से बाहर जाने की अनुमति नहीं दी गई. 1935 में उन्होंने मैट्रीकुलेशन पास किया और 1936 में गाज़ियाबाद स्थित प्यार लाल गर्ल्स स्कूल में पढ़ाने लगीं. 1940 में उन्होंने लखनऊ में मॉन्टेसरी स्कूल की शुरुआत की. देश की आज़ादी के बाद दुर्गा देवी को चुनाव लड़ने के लिए कहा गया लेकिन उन्होंने मना कर दिया. 15 अक्टूबर, 1999 में दुर्गा देवी का निधन हो गया.