ई. श्रीधरन: वो ‘इंजीनियर’ जिसने शहरों से मेट्रो को और मेट्रो को दिलों से जोड़ दिया

आज भारत में सबसे सस्ते पब्लिक ट्रान्सपोर्ट और कुशल रेल नेटवर्क का इस्तेमाल है. ये दुनिया में सबसे लंबे और सबसे जटिल नेटवर्क्स में से है. भारत के रेल परिवहन के क्षेत्र में हमने जितने भी विकास देखे हैं, उनमें से अधिकांश ई. श्रीधरन – भारत के मेट्रो मैन के बिना संभव नहीं थे. (E. Sreedharan: the Metro Man of India).

पेशे से एक सिविल इंजीनियर श्रीधरन की वजह से ही कोंकण रेलवे और दिल्ली मेट्रो का विकास हो सका. कई अन्य बड़े परियोजनाओं में उनके योगदान ने देश में पब्लिक ट्रान्सपोर्ट के अनुभव को बिल्कुल बदल दिया.

केरल ने दिया देश को उसका Metro Man

E. Sreedharan metro man

ई. श्रीधरन या इलाट्टुवालापिल श्रीधरन का जन्म 12 जून, 1932 को केरेला में पलक्कड़ जिले के थिरथला निर्वाचन क्षेत्र में हुआ था. उनके पिता का नाम नीलाकंदन मूसथ और मां का नाम अम्मलूमाला है. उन्होंने अपनी प्राथमिक स्कूली शिक्षा पलक्कड़ जिले के गवर्नमेंट लोअर प्राइमरी स्कूल से पूरी की. उसके बाद बेसल इवेंजेलिकल मिशन हायर सेकेंडरी स्कूल से पढ़ाई की. बाद में उन्होंने आंध्र प्रदेश के काकीनाडा के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने का फ़ैसला किया.

लेक्चरर के रूप में करियर शुरू किया

कोझिकोड में सरकारी पॉलिटेक्निक में  श्रीधरन ने कुछ समय के लिए सिविल इंजीनियरिंग के लेक्चरर के रूप में कार्य किया. एक साल बाद वे बॉम्बे पोर्ट ट्रस्ट में ट्रेनी होने के साथ-साथ इंडियन रेलवे सर्विस ऑफ़ इंजीनियर्स में शामिल हो गए.

भारतीय रेलवे का हिस्सा बने

E. Sreedharan metro man

IRSE में शामिल होने के बाद उन्हें पहला असाइनमेंट 1954 में दक्षिण रेलवे के साथ मिला. यहां उनकी नियुक्ति एक प्रोबेशनरी असिस्टेंट इंजीनियर के रूप में हुई. यहीं पर उन्होंने पहली बार अपना टैलेंट भी साबित किया था. 1963 में एक चक्रवात ने दक्षिण में पंबन ब्रिज के सेक्शन को नष्ट कर दिया था. ये रामेश्वरम और तमिलनाडु को जोड़ने वाली सबसे प्रमुख लाइन थी. शुरुआत में, दक्षिणी रेलवे ने इसे 6 महीने में पूरा करने का लक्ष्य रखा था. श्रीधरन ने सिर्फ 46 दिनों में काम पूरा कर लिया. इसके लिए उन्हें रेल मंत्री का पुरस्कार भी मिला.

भारत की पहली मेट्रो विकसित की

1970 में उन्हें Deputy Chief Engineer बनाया गया और कलकत्ता मेट्रो का प्रभारी बनाया गया. उस समय वो देश में सार्वजनिक परिवहन के फील्ड में क्रांति ले आए. ये प्रोजेक्ट इसलिए भी ख़ास था क्योंकि यह (Kolkata Metro) भारत का पहला Rapid Transit System था. यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कोलकाता मेट्रो भारतीय रेलवे की अध्यक्षता वाली देश की एकमात्र मेट्रो है.

j

कोंकण रेलवे परियोजना पर काम

1987 में श्रीधरन को पश्चिम रेलवे का महाप्रबंधक बनाया गया. इसके बाद 1989 तक इंजीनियरिंग रेलवे बोर्ड के सदस्य रहे, 1990 तक वह रिटायर हो गए. हालांकि, कोंकण रेलवे परियोजना को अंजाम देने के लिए उन्हें तब के रेल मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस रिटायरमेंट से वापस लेकर आए.

कोंकण रेलवे को दुनिया की सबसे चुनौतीपूर्ण रेलवे परियोजनाओं में से एक माना जाता है. इसमें एक जटिल सुरंग प्रणाली शामिल थी जिसमें 82 सुरंगों की लंबाई 82 किलोमीटर थी. पूरी परियोजना में 760 किलोमीटर की दूरी तय की गई और इसमें 150 से अधिक पुल थे.

दिल्ली मेट्रो पर काम किया

E. Sreedharan metro man

उनके पिछले कार्यों को देखने के बाद, दिल्ली के पूर्व सीएम साहिब सिंह वर्मा ने उन्हें दिल्ली के क्षेत्र के लिए मेट्रो प्रणाली विकसित करने के लिए वर्ष 1997 में प्रबंध निदेशक के रूप में नियुक्त किया. वो न केवल समय से पहले काम पूरा करने में कामयाब रहे, बल्कि पूर्वनिर्धारित बजट के भीतर लागत रखने में भी कामयाब रहे. यह असंभव को संभव करने वाला काम था. वह आखिरकार वर्ष 2011 में DMRC से सेवानिवृत्त हो गए. लेकिन वह अंत नहीं था. उन्होंने कोच्चि मेट्रो के साथ-साथ लखनऊ मेट्रो, साथ ही जयपुर मेट्रो के एक्सीक्यूट को निर्देशित किया.

पुरस्कार और प्रशंसा

उन्हें वर्ष 2001 में उनके काम के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया गया. दिल्ली मेट्रो में उनके योगदान के लिए, उन्हें फ्रांस की सरकार द्वारा Chevalier de la Légion d’honneur (Knight of the Legion of Honour) से सम्मानित किया गया. उन्हें कई अन्य प्रशंसाओं के साथ, 2008 में भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया है.

इंजीनियर्स डे 2020 पर हम ई. श्रीधरन को उनके इंजीनियरिंग कौशल और रेल परिवहन आधारित राष्ट्र निर्माण के प्रयासों के लिए सलाम करते हैं