1. जड़ी-बूटियों से लाखो की कमाई
चंद्रपाल सिंह के पास अपने गांव से करीब 1 किलोमीटर की दूरी पर करीब 15 बीघा जमीन थी. मगर उसमें फसल के नाम पर कुछ होता नहीं था. लिहाजा, उन्होंने वन विभाग कार्मिक मित्र की सलाह पर जंगल लगाना शुरू कर दिया. सैकड़ों प्रजातियों के पौधे उन्होंने रोपने शुरू कर दिए. वर्तमान में एक अच्छा-खासा जंगल बनकर तैयार हो चुका है.
चंद्रपाल सिंह के जंगल में सागौन के 200 बड़े और 300 छोटे पेड़ हैं. इसके अलाव लीची, पांच लौंग, ग्रिवेलिया, पुत्रंजीवा, अनार, बेल, आंवला, करौंदा, नीबूं जैसे सैकड़ों छोटे पेड़ हैं. पेड़ों के बीच चंद्रपाल बूट, हल्दी, जमीकंद की खेती भी करते हैं. उनकी मेहनत रंग लाने लगी है. आज वो सैकड़ों पेड़ों के मालिक हैं. पेड़ों में लगने वाले फल और जड़ी-बूटियों की मदद से सालाना करीब पांच लाख की कमाई कर रहे हैं.
डेयरी के बिज़नेस से सालाना कमाई 90 लाख
अंकिता कुमावत राजस्थान के अजमेर की रहने वाली अंकिता ने सबसे पहले 2009 में IIM कोलकाता से अपनी पढ़ाई पूरी की, इसके बाद उन्होंने जर्मनी तथा अमेरिका में करीब पांच साल तक नौकरी की. यहां उन्हें हर वो सुख सुविधा मिल रही थी जो किसी भी युवा का सपना होता है. लेकिन, वह अपने पिता के कहने करने पर अपने वतन लौट आई.
यहां आने के बाद अंकिता ने अपने पिता द्वारा शुरू किये गए डेयरी, ऑर्गेनिक फार्मिंग और फूड प्रोसेसिंग के काम में हाथ बटाना शुरू किया. आज इनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर 90 लाख रुपये है.
न्होंने अपने पिता द्वारा शुरू किए गए डेयरी फार्मिंग और ऑर्गेनिक फार्मिंग के काम को समझना शुरू किया तब पाया कि इस काम में समाज की भलाई के साथ साथ बढ़िया मुनाफा भी है. बस जरूरत है तो काम करने का तरीका और मार्केटिंग पर फोकस करने की. इसके बाद उन्होंने नई टेक्नोलॉजी पर विश्वास जताते हुए सोलर सिस्टम डेवलप किया, ड्रिप इरिगेशन टेक्निक पर इम्प्लीमेंट किया, खेती का दायरा बढ़ाया, मवेशियों की संख्या बढ़ाई और साथ ही खुद भी कई संस्थानों से ट्रेनिंग लीं और बिजनेस सेट-अप कर दीं.
3. औषधीय पौधों की खेती, लाखों की कमाई के साथ सैकड़ों लोगों को दिया रोजगार
हिमाचल प्रदेश के सेईकोठी में रहने वाले लोभी राम से मिलना चाहिए. लोभी राम वो किसान हैं, जिन्होंने औषधीय पौधों की खेती के लिए अपनी सरकारी नौकरी तक छोड़ दी. एक वक्त में लोभी राम कृषि विभाग में अनुबंध पर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की नौकरी करते थे. मगर, खेती के प्रति प्यार के चलते 1999 में उन्होंने अपनी नौकरी को अलविदा कह दिया था.
मौजूदा समय में लोभी राम न सिर्फ अच्छी खेती कर लाखों की कमाई कर रहे हैं बल्कि सैकड़ों लोगों को रोजगार भी दे चुके हैं. उनके खेतों से निकले औषधीय पौधों की देश के कई राज्यों में डिमांड हैं. महाराष्ट्र, किन्नौर, पुणे, दिल्ली, कोलकाता, और बंगलूरू जैसे कई अन्य राज्यों में वो अपनी जड़ी-बूटियों का निर्यात करते हैं.
4. खेती से 1 करोड़ रुपए से ज्यादा का सालाना कमाई
राजस्थान के खेमाराम एक किसान है और खेती के ज़रिये सालाना करोड़ों रुपए की कमाई कर रहे हैं. इजरायल की तर्ज पर उन्होंने कुछ साले पहले ही संरक्षित खेती की शुरूआत की थी और आज सारे इलाके की पहचान बन चुके हैं. दूर-दूर से लोग यह देखने के लिए आते हैं कि खेमाराम कैसे ओस की बूंदों से सिंचाई करते हैं. दीवारों पर गेहूं व धान कैसे उगाया जाता है.
राजधानी जयपुर के गांव गुड़ा कुमावतान के रहने वाले खेमाराम चौधरी 45 साल के हैं. खेमाराम के चलते आज उनका खेती का क्षेत्र मिनी इज़रायल के नाम से मशहूर हो चुका है. उन्होंने इज़रायल की तर्ज पर करीब 4 साल पहले संरक्षित खेती (पॉली हाउस) शुरू किया था, जिसकी संख्या वर्तमान में बढ़कर करीब 200 तक पहुंच चुकी है
खेमाराम चौधरी बताते हैं, “एक पॉली हाउस लगाने में 33 लाख रुपये का खर्चा आया, जिसमें 9 लाख मुझे देने पड़े जो मैंने बैंक से लोन लिया था, बाकी सब्सिडी मिल गयी थी. पहली बार खीरा बोए जिसमें करीब डेढ़ लाख रुपये खर्च हुए. चार महीने में ही 12 लाख रुपये का खीरा बेचा, ये खेती को लेकर मेरा पहला अनुभव था.”
5. रेतीली जमीन में उगा दिए सेब के पेड़, तीन गुना हो रही कमाई
हरियाणा के किसान धर्मेंद्र श्योराण गांव कन्हड़ा में रहते हैं. उन्होंने रेतीली जमीन में सेब की पैदावार करके सबको चौंका दिया है. 2019 में धर्मेंद्र ने एक छोटा प्रयोग करते हुए अपनी डेढ़ एकड़ जमीन में सेब के पौधे लगाए और उनकी देखभाल करनी शुरू कर दी.
2021 में उनकी मेहनत रंग लाई और सेब के पौधों ने फल देने शुरू कर दिए. गौर करने वाली बात यह कि उन्होंने जिस जमीन पर सेब इत्यादि के पौधे लगाए हैं, उसकी मिट्टी रेतीली है, जोकि खेती के लिए अच्छी नहीं माना जाती. मगर धर्मेंद्र ने इसे अपने परिश्रम से खेती के अनुकूल बना दिया है.