Eknath Shinde: दशहरा रैली पर बाल ठाकरे के जमाने से चल रही परंपरा तोड़ देंगे एकनाथ शिंदे?

पार्टी की लड़ाई के साथ ही महाराष्ट्र में एक और जंग छिड़ गई है और वह है दशहरा रैली को लेकर। ठाकरे परिवार की दशहरा रैली करने की जिद तो समझ में आती है। हर कोई जानता है कि यह उनकी दशकों पुरानी परंपरा है। हालांकि सवाल यह है कि एकनाथ शिंदे इस रैली और पार्क की जिद पर क्यों अड़े हुए हैं।

हाईवे पर धू-धू कर जल रही थी कार, तभी वहां युवक की मदद को पहुंचे सीएम शिंदे

मुंबई: अब तक महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट असली और नकली शिवसेना को लेकर जंग लड़ रहे थे। लेकिन अब शिवसेना के अस्तिव की एक और जंग का गवाह महाराष्ट्र बनता हुआ नजर आ रहा है। अब दादर के शिवाजी पार्क को लेकर भी उद्धव और शिंदे गुट आमने है। दोनों ही गुट शिवाजी पार्क में आगामी दशहरा रैली करना चाहते हैं। दोनों तरफ से बीएमसी में अर्जी भी लगाई गई है। हालांकि अभी तक यह पार्क किसको मिलेगा इसपर फैसला नहीं हुआ है। शिवाजी पार्क और शिवसेना का नाता आज का नहीं बल्कि कई दशक पुराना है। पार्टी की स्थापना के बाद से ही शिवसेना शिवाजी पार्क में दशहरा रैली करती आई है। लेकिन एकनाथ शिंदे गुट के अलग होने के बाद अब असली और नकली शिवसेना का विवाद खड़ा हो चुका है। उद्धव ठाकरे की जगह अब एकनाथ शिंदे राज्य के नए सीएम बन चुके हैं। ऐसे में दशहरा रैली के लिए किस गुट को इजाजत दी जाए, यह बड़ा सवाल अब बीएमसी के सामने है। किसी एक को इजाजत न देने का मतलब मामले को तूल देने जैसा होगा। उद्धव गुट शिवाजी पार्क में रैली की जिद पर अड़ा हुआ है। अब हर साल ठाकरे परिवार यहां दशहरा रैली करता आया है।

खैर सियासत के जानकार यह भी मानते हैं कि यह मुद्दा आने वाले समय में अदालत की चौखट तक जाएगा। वहीं इस बात की भी संभावना है कि यदि किसी एक गुट को अनुमति दी गई तो लॉ एंड आर्डर के हालात भी पैदा हो सकते हैं। ऐसे में इस बात की संभावना है कि बीएमसी यह मैदान इस बार दशहरा रैली के लिए किसी को न दे। यदि ऐसा हुआ तो कई दशकों से शिवाजी पार्क में दशहरा रैली को संबोधित करने की ठाकरे परिवार की परंपरा भी टूट जाएगी। यह भी कहा जा रहा है कि एकनाथ शिंदे मुंबई के बीकेसी ग्राउंड में अपनी दशहरा रैली कर सकते हैं।

शिंदे के लिए दशहरा रैली जरूरी क्यों?
ठाकरे परिवार की दशहरा रैली करने की जिद तो समझ में आती है। हर कोई जानता है कि यह उनकी दशकों पुरानी परंपरा है। हालांकि सवाल यह है कि एकनाथ शिंदे इस रैली और पार्क की जिद पर क्यों अड़े हुए हैं। इसके पीछे भी शिंदे की अपनी वजह हैं दरअसल एकनाथ शिंदे यह दावा करते हैं कि उनका गुट ही असली शिवसेना है। इस बात को अमित शाह से लेकर देवेंद्र फडणवीस और बीजेपी आलाकमान भी कहती है। साथ ही एकनाथ भी यह भी कहते हैं कि वो बाला साहेब के विचारों को आगे बढ़ा रहे हैं। ऐसे में शिवाजी पार्क में रैली करना उनकी भी राजनीतिक मजबूरी है। हालांकि शिंदे इस बात को अच्छे से जानते हैं कि अगर वह यह जिद करेंगे तो इसका नुकसान उन्हें चुनाव में उठाना पड़ सकता है। अगर उद्धव गुट को जनता की सहानुभूति मिल गयी तो। इसलिए उन्होंने अब बीएमसी के पाले में गेंद डाल दी है। हिंदुस्तान में हर कोई इस कहावत से वाकिफ है कि जिसकी लाठी उसकी भैंस। ऐसे में क्या उद्धव कैंप को इस बार शिवाजी पार्क दशहरा रैली के लिए मिल पायेगा। इसका जवाब को भविष्य के गर्भ में है। हालांकि इसकी संभावनाएं काफी कम नजर आती है। बहरहाल आइये जानते है शिवाजी पार्क और शिवसेना के संबंधों की कुछ खास बातें।

आज से कई दशक पहले साल 1966 में दिवंगत बाल ठाकरे ने अपनी पार्टी शिवसेना की स्थापना की थी। मुंबई के शिवाजी पार्क में उन्होंने अपने कुछ खास मित्रों की मौजूदगी में नारियल फोड़ कर पार्टी की नींव रखी थी। तब से आज तक शिवाजी पार्क और शिवसेना एक दूसरे के पर्याय बने हुए हैं। इसी शिवाजी पार्क में 30 अक्टूबर 1966 को बाल ठाकरे ने अपनी पहली दशहरा रैली को संबोधित किया था। कहा जाता है कि उस समय ठाकरे को सुनने के लिए तकरीबन चार लाख लोग मौजूद थे। शिवाजी पार्क उनके चाहने वालों से खचाखच भरा हुआ था। बुराई पर अच्छाई की जीत यानी दशहरा का दिन इसके बाद आने वाले सालों में शिवसेना की पहचान बन चुका था। धीरे- धीरे हर गुजरती के साथ बाल ठाकरे की लोकप्रियता भी बढ़ती जा रही थी। इस रैली के जरिये वो विपक्ष पर जमकर निशाना साधते थे। साथ ही पार्टी आगामी नीतियों की भी घोषणा होती थी।

इसी दशहरा रैली से बाल ठाकरे ने दक्षिण भारतीयों के खिलाफ भी हटाओ लुंगी बजाओ पुंगी का नारा दिया। बिल्कुल वैसे ही जैसे कुछ साल पहले राज ठाकरे ने उत्तर भारतीयों के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था। बाल ठाकरे की दशहरा रैली की लोकप्रियता ऐसी थी कि महाराष्ट्र में उनके चाहने वाले इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार करते थे। वो जानते थे कि आज के दिन बाल ठाकरे बड़ा ऐलान करेंगे।

जब ठाकरे ने मनमोहन सिंह की खिंचाई की थी
महाराष्ट्र समेत पूरा देश इस बात को भलीभांति जानता है कि वो कार्टूनिस्ट यानी यानी व्यंगचित्रकार थे। व्यंग की अच्छी खासी समझ रखने वाले ठाकरे इसे अपने भाषणों में भी जगह देते थे। इसी तरह साल 2011 की दशहरा रैली में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर भी व्यंग के तीर चलाये थे। भरी सभा मे उन्होंने मनमोहन सिंह नकल उतारी और उनका मजाक उड़ाया था। ठाकरे ने तब कहा था कि पीएम क्या बोलते हैं यह उन्हें भी समझ मे नहीं आता होगा। देश को एक मजबूत आदमी की जरूरत है जिसकी बात जनता के कानों तक पहुंचे।

बाल ठाकरे यह भी बखूबी जानते थे कि जब तक चुभने वाली बात नहीं कही जाएगी तब तक उसका कोई खास असर नहीं होगा। उन्होंने अपनी इस शैली को आखिर तक बरकरार रखा। उनकी इस कला को उनके भतीजे राज ठाकरे और सांसद संजय राउत ने भी काफी हद तक आजमाया।

मराठी मानुस के कार्ड से लोगों के दिल के बस गए

बाल ठाकरे ने जब दक्षिण भारतीयों के खिलाफ मुहिम छेड़ी तब ज्यादातर नौकरियों पर उनका कब्जा था। दूसरी तरफ मराठी युवक बेरोजगार था जिसे काम की तलाश थी। ठाकरे ने इसी को मुद्दा बनाया। धीरे- धीरे मराठी युवा उनमें अपना नेता देखने लगे देखते ही देखते ठाकरे लाखों- करोड़ो युवाओं के दिल मे किसी भगवान की तरह बस गए। इसके बाद बाल ठाकरे ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

बाल ठाकरे और शिवाजी पार्क
बाल ठाकरे, शिवसेना और शिवाजी पार्क का नाता भी अटूट है। इसी शिवाजी पार्क में पार्टी की नींव रखने के बाद उन्होंने यहीं पहली दशहरा रैली को संबोधित किया था। इस पार्क से शिवसेना का नाता या जुड़ाव उस दौर से है जब महाराष्ट्र में शिवसेना- बीजेपी ने मिलकर सरकार बनाई थी और मनोहर जोशी सीएम बने थे। उस दौरान शपथ समारोह के लिए शिवसेना ने इसी पार्क को चुना था। इसी पार्क से बाल ठाकरे ने कई बार चुनावी शंखनाद भी किया था। इस पार्क से उनके जुड़ाव को इस तरह से भी समझा जा सकता है कि उनकी मौत के बाद इसी पार्क में उनका स्मृतिस्थल भी बनाया गया है।

शिवाजी पार्क का इतिहास

शिवाजी पार्क साल 1925 में तकरीबन 28 एकड़ में बनाया गया था। जिसका नामकरण 1927 में छत्रपति शिवाजी की जयंती पर उनकी की याद में शिवाजी पार्क नाम रखा गया था। इसी पार्क में सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली जैसे क्रिकेटर्स को भी जन्म दिया है।