छह राज्यों की सात विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों में बीजेपी के पाले में चार सीटें आईं। दो राज्यों के चुनाव से पहले सियासत की इस बाजी में बीजेपी आगे रही। बिहार और तेलंगाना इन दो राज्यों में उपचुनाव के नतीजे बीजेपी के लिए कई मायनों में खास है। नीतीश कुमार के पाला बदलने के बाद राज्य में यह पहला चुनाव था।
नई दिल्ली: 6 राज्यों की 7 सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे रविवार को आए और बीजेपी ने इन सात विधानसभा सीटों में से चार पर जीत हासिल की। चार सीटों पर जीत के साथ ही मिशन साउथ के तौर पर महत्वपूर्ण तेलंगाना में भी भाजपा का प्रदर्शन बेहतर हुआ है। तेलंगाना में जिस प्रकार नजदीकी मुकाबला बीजेपी और टीआरएस के बीच हुआ उससे एक बात तय है कि अगले साल केसीआर की टेंशन बढ़ने वाली है। वहीं बिहार में दो सीटों पर हुए उपचुनाव के जो नतीजे आए उसमें भी कई संकेत है। नीतीश कुमार के जाने के बाद यह माना जा रहा था कि बीजेपी कमजोर होगी लेकिन ऐसा उपचुनाव में दिखा नहीं। हिमाचल और गुजरात के साथ ही अगले कुछ महीनों में कई राज्यों में चुनाव है और उसके बाद बारी 2024 की। इन चुनावों से पहले इस नतीजे से निश्चित तौर पर बीजेपी के हौसले बुलंद होंगे।
कांग्रेस मैदान से बाहर… तेलंगाना में बढ़ने वाली है केसीआर की टेंशन
तेलंगाना के मुनुगोडे में टीआरएस की जीत हुई और बीजेपी की हार को देखते हुए भी यह कहा जा सकता है कि उसने जो लड़ाई लड़ी है, वह आगे बढ़ने वाली है। पार्टी के रणनीतिकार अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले इस नतीजे में कई पॉजिटिव चीजें देख रहे हैं। चार लोकसभा सीटों पर जीत, हुजूराबाद उपचुनाव और हैदराबाद निगम के चुनावों के बाद इस उपचुनाव ने टीआरएस को सही मायने में डरा दिया है। तेलंगाना में पार्टी का बढ़ता ग्राफ और कांग्रेस जिस तरीके से मैदान से बाहर हो रही है वह इस बात की पुष्टि करता है। सत्ता विरोधी लहर का सामना और पीएम मोदी के खुद मैदान में उतरने के बाद टीआरएस के लिए स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण होगी।
नीतीश-तेजस्वी साथ आए लेकिन क्या वोटों का हुआ फायदा
बिहार में बीजेपी का प्रदर्शन भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। गोपालगंज में जो जीत उसने बरकरार रखी है और दूसरी सीट पर आरजेडी के जीत के अंतर को भी कम करने में जिस प्रकार पार्टी सफल हुई है वह भी काफी महत्वपूर्ण है। महागठबंधन में 8 दलों का रहना और जातियों के हिसाब से देखा जाए तो यह 80% से अधिक आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं उसके बाद भी नतीजे उनके पक्ष में नहीं। जद (यू) और आरजेडी दोनों 2015 जैसा स्वीप दोहराने को लेकर आश्वस्त थे लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इस बार जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा भी साथ थे जो उस वक्त नहीं थे। मोकामा व्यक्तिगत तौर पर अनंत सिंह के लिए एक मजबूत गढ़ रहा है। चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित होने के बाद अनंत सिंह की पत्नी को चुनाव मैदान में उतारने के लिए जेडीयू और आरजेडी मजबूर हुए। अनंत सिंह की जीत पूर्व में और अब उनकी पत्नी की जीत पार्टी से कहीं अधिक व्यक्तिगत रही है। बिहार नतीजों के बाद पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि 2024 में इन दो दलों के साथ रहने का असर वैसा नहीं रहेगा जैसा अनुमान लगाया जा रहा था।
उपचुनाव: विधानसभा सीट विजयी प्रत्याशी
आदमपुर (हरियाणा) भव्य बिश्नोई (BJP)
गोला गोकर्णनाथ (यूपी) अमन गिरी (BJP)
धामनगर (ओडिशा) सूर्यवंशी सूरज (BJP)
गोपाल गंज (बिहार) कुसुम देवी (BJP)
मोकामा (बिहार) नीलम देवी (RJD)
अंधेरी ईस्ट (महाराष्ट्र) ऋतुजा लटके (शिवसेना)
मुनूगोडे (तेलंगाना) कुसुकुंतला प्रभाकर रेड्डी (BRS)
हरियाणा और ओडिशा मेंं बीजेपी की जीत, टेंशन में कांग्रेस
ओडिशा में बीजेपी धामनगर विधानसभा सीट को बरकरार रखने में कामयाब रही। यह जीत उस पैटर्न को तोड़ते हुए भी जहां पिछले कुछ समय से नवीन पटनायक की पार्टी उपचुनाव में जीत दर्ज करती आई है। मानव संसाधन विकास मंत्री और ओडिशा में भगवा पार्टी के मुख्य चेहरे धर्मेंद्र प्रधान ने कहा,ओडिशा धामनगर उपचुनाव परिणाम ओडिशा के लोगों के मूड के साथ-साथ प्रधानमंत्री मोदी के निर्णायक और विश्वसनीय नेतृत्व पर ओडिशा के भरोसे को दर्शाता है। हरियाणा के आदमपुर में जीत का संबंध कुलदीप बिश्नोई के परिवार से था, जिन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और उपचुनाव के कारण इस सीट से इस्तीफा दे दिया। बीजेपी और उसके सहयोगियों की जीत के बाद एक संकेत यह भी है कि जाट वोट बैंक पर भी कांग्रेस की पकड़ कमजोर हुई है।