सौरमंडल के कई रहस्यों में से एक रहस्य शुक्र ग्रह (Venus) को लेकर भी है. वैज्ञानिक लंबे समय से यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि जब अरबों साल पहले पृथ्वी और शुक्र ग्रह जब एक जैसे थे तो फिर पृथ्वी (Earth) पर जीवन पनप गया लेकिन शुक्र ग्रह के हालात नर्क जैसे कैसे हो गए. यह वजह है जब मंगल ग्रह के बाद किसी दूसरे ग्रह की पड़ताल करने की बारी आई तो नासा ने शुक्र ग्रह का चयन किया. अब यूरोपीय स्पेस एजेंसी (European Space Agency) ईसा भी शुक्र के अन्वेषण के लिए एनविजन नाम का अभियान भेजेगी.
नर्क के हालात क्यों बने
ईसा (ESA) ने ऐलान किया है कि वह पृथ्वी के पड़ोसी ग्रह शुक्र के लिए एक नया अभियान तैयार कर रहा है. जिसके जरिए यह पड़ताल की जाएगी की आखिर शुक्र ग्रह की हालात इतने नर्क के जैसे क्यों हो गए. एनविजन नाम के इस अभियान में एक अंतरिक्ष यान शुक्र ग्रह के लिए 2030 के दशक के शुरू में प्रक्षेपित किया जाएगा. यह अभियान ग्रह के इसे क्रोड़ से लेकर वायुमंडल का अध्ययन करेगा
पृथ्वी से अलग ही
इस अभियान के जरिए शुक्र के विकास की गहन जानकारी हासिल करने की कोशिश की जाएगी. वैज्ञानिकों का कहना है कि शुक्र ग्रह आकार, संरचना और सूर्य से दूरी के मामले में पृथ्वी की ही तरह है. लेकिन वर्तमान सिद्धांत सुझाते हैं कि इस ग्रह का विकास कुछ अलग ही तरह का हो गया था जिससे वहां के हालात आवासीय नहीं रह गए.
कई सवालों के जवाब
ईसा के मुताबिक उसके एनविजन अभियान के उद्देश्यों में शुक्र ग्रह के वायुमंडल, सतह, सतह के ठीक नीचे के हिस्से, और ग्रह के आंतरिक हिस्सों की विशेषताओं की पड़ताल करना होगा. इससे वैज्ञानिकों को शुक्र के इतिहास, उसकी जलवयु और सक्रियता के बारे में विस्तार से जानकारी मिल सकेगी. शुक्र ग्रह वैज्ञानिकों के लिए ऐसी प्राकृतिक प्रयोगशाला है जो यह पता लगाने में मददगार होगी कि हमारे सौरमंडल में आवसीयता कैसे विकसित होती है या नहीं होती है तो क्यों नहीं होती है.
क्या क्या होगी पड़ताल
इस ग्रह की पड़ताल के दौरान एनविजन कई और सवालों के जवाब भी हासिल करने की कोशिश करेगा. इनमें शुक्र ग्रह भूगर्भीय और टेक्टोनिक दृष्टिकोण से आज कितना सक्रिय है, पिछले एक अरब सालों से कितना सक्रिय रहा था, क्या वहां कभी महासागर रहे थे, शुक्र की चट्टानों में कैसे बनी, वहां ग्रीनहाउस प्रभाव कैसे और क्यों शुरू हुआ, जैसे कई सवाल शामिल हैं.
आज के हालात
शुक्र का वायुमंडल आज बहुत ही भारी और जहरीला है क्योंकि वहां सल्फ्यूरिक एसिड के बादलों की भरमार है और सतह का तापमान 477 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है जिससे वहां पानी तरल अवस्था में नहीं रह सकता है. इसके अलावा सतह पर तो वायुमंडलीय दबाव है वह पृथ्वी समुद्र जल स्तर की तुलना में 90 गुना ज्यादा है.
यान काम कर सकेगा या नहीं
फिलहाल इंजीनयार अंतरिक्ष यान के हिस्सों का परीक्षण कर रहे हैं कि क्या इनसे बना यान शुक्र के वायुमडंल में गोता लगा सकता है या नहीं. ईसा का कहना है कि अपने यानों के हिस्सों की शुक्र के वातावरण में रख रहा है जिससे यह पता चल सके कि क्या ऐसे महौल में ये हिस्से सही तरह से काम कर सकेंगे या नहीं. यानि ढाई लाख किलोमीटर से लेकर 130 किलोमीटर तक की यान काम कर सकेगा या नहीं.
इस अभियान में एरोब्रेकिंग पद्धति का इस्तेमाल होगा जिसमें दो साल तक बार बार विपरीत हालातों में यान को उतारा जाएगा. इस अभियान में अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा का भी योगदान होगा. वह इसके लिए सिंथेटिक राडार इंस्ट्रूमेंट (VenSAR) और अभियान के दौरान डीप स्पेस नेटवर्क सपोर्ट प्रदान करेगा. इस अभियान से पृथ्वी से शुक्र ग्रह के कई शोधकार्यों के नतीजों की पुष्टि करने में मदद मिलेगी.