हारने के बाद भी बीजेपी का जलवा कायम! जानिए कैसे पार्टी का वोट प्रतिशत रहा बरकरार

गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत ने सारे रेकॉर्ड तोड़ दिए। वहीं हिमाचल में भी पार्टी को अच्छा खासा वोट शेयर मिला। ऐसा ही नजारा दिल्ली एमसीडी चुनाव में भी देखने को मिला। आखिर इसका क्या कारण है कि बीजेपी का हार के बावजूद भी वोट प्रतिशत बरकरार है। आइए बताते हैं।

नई दिल्ली: बीजेपी ने जहां गुजरात में बंपर जीत दर्ज की, वहीं हिमाचल प्रदेश में सत्ता गंवाई। दिल्ली एमसीडी में भी हार का सामना करना पड़ा। बीजेपी हारी जरूर, लेकिन उसका वोटर जुड़ा रहा। ये बीजेपी को कितने प्रतिशत वोट मिले, उससे साफ दिखता है। दिल्ली एमसीडी चुनाव में हारने के बावजूद बीजेपी का वोट प्रतिशत पिछली बार के मुकाबले बढ़ा है। वहीं, हिमाचल प्रदेश में बीजेपी को कांग्रेस से महज 0.9 प्रतिशत वोट कम मिले। कांग्रेस को 40 सीटें मिलीं और बीजेपी को महज 25। हारने के बावजूद बीजेपी का वोट प्रतिशत बरकरार है, जिसका साफ मतलब है कि बीजेपी का वोटर बीजेपी से दूर नहीं गया है।

क्या कहते हैं एमसीडी के नतीजे

इस बार एमसीडी चुनाव में बीजेपी 15 साल बाद सत्ता से बाहर हुई लेकिन पिछली बार के मुकाबले उसका वोट 3 प्रतिशत बढ़ा है। 2017 के चुनाव में बीजेपी को 36.08 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार 39.09 प्रतिशत वोट मिले। दिल्ली में बीजेपी 1998 के बाद से ही सत्ता से बाहर है, लेकिन कभी भी उसका वोट प्रतिशत 32 प्रतिशत से नीचे नहीं गया।

हिमाचल में भी जनाधार बरकरार

हिमाचल प्रदेश में देखें तो बीजेपी को कांग्रेस से मात्र 37,974 वोट कम मिले हैं। कांग्रेस को 43.90 प्रतिशत वोट मिले और बीजेपी को 43 प्रतिशत। पिछली बार के हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 44 सीटें मिली थीं और तब उसका वोट 48 प्रतिशत था। गुजरात में बीजेपी को 2017 में 49.1 प्रतिशत और इस बार 52.5 प्रतिशत वोट मिले, जबकि पिछले बार के मुकाबले इस बार मतदान कम हुआ। गुजरात में जिस तरह बीजेपी का वोट शेयर बढ़ा, उसी तरह सीटें भी बढ़ीं। लेकिन जिन जगहों पर बीजेपी हारी है वहां भी उसका वोट प्रतिशत बना हुआ है।

क्या कहती है पार्टी

बीजेपी नेता हमेशा कहते रहे हैं कि बीजेपी कार्यकर्ता आधारित पार्टी है। यह उसके वोट प्रतिशत से भी साफ होता है। बीजेपी हारे या जीते उसके काडर वोट हमेशा साथ रहते हैं। इसकी वजह है कि बीजेपी ने बूथ स्तर तक संगठन बनाया है और लगातार उसे मजबूत करने के लिए काम करती है। बीजेपी की चुनावी राजनीति के दो अहम हिस्से हैं, पन्ना प्रमुख और मैन टु मैन मार्किंग। बीजेपी ने हर राज्य में पन्ना प्रमुख बनाए हैं और हर चुनाव से पहले इन्हें अपडेट किया जाता है। उस आधार पर फिर जिम्मेदारी बांटी जाती है।

हर राज्य में वोटर लिस्ट के हर पेज के लिए बीजेपी का एक कार्यकर्ता पन्ना प्रमुख होता है। एक पन्ने में करीब 30 वोटर्स के नाम होते हैं। पन्ना प्रमुख की जिम्मेदारी अपने पन्ने में दर्ज वोटर्स से संपर्क करने की होती है। वह यह सुनिश्चित करते हैं कि ये सभी वोटर्स पोलिंग के दिन वोट डालने बूथ पर जाएं। साथ ही, इनसे संपर्क कर इन्हें बीजेपी का पक्ष बताने और बीजेपी के पक्ष में वोट डालने के लिए मनाने की जिम्मेदारी भी पन्ना प्रमुख की होती है।

पोलिंग वाले दिन भी बीजेपी हर पन्ना प्रमुख से चेक करती रहती है कि उनकी जिम्मेदारी वाले पन्ने से कितने लोग वोट डालने गए। बीजेपी इसके जरिए हर वोटर तक पहुंचने की कोशिश करती है। साथ ही सुनिश्चित करती है कि कम से कम उसके समर्थक वोटर्स तो जरूर वोट डालने जाएं।

हर वोटर तक पहुंच की कोशिश

एक बीजेपी नेता ने कहा कि पन्ना प्रमुख अपनी जिम्मेदारी की अहमियत समझेंगे। पन्ना प्रमुखों के जरिए हम हर वोटर तक पहुंचते हैं। साथ ही जितने पन्ना प्रमुख हैं वह तो पार्टी के कट्टर सपोर्टर होते ही हैं। इस तरह बीजेपी अपने काडर को अपने साथ जोड़े रहती है, जो वोट प्रतिशत के रूप में भी दिखता है।

इसके अलावा मैन टु मैन मार्किंग भी बीजेपी की चुनावी रणनीति रहती है। इसमें हर एक घर तक पहुंचना शामिल होता है। जरूरी नहीं कि बीजेपी कार्यकर्ता ही वहां पहुंचे, बल्कि संघ प्रचारक और संघ से जुड़े लोग भी यह काम करते हैं। बीजेपी संघ के ही विचार परिवार का सदस्य है। संघ के इस तरह के करीब 40 संगठन हैं। वह सब बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाते हैं और एक ही ‘बड़े परिवार’ से जुड़े होने के कारण उनका स्वयंसेवक बीजेपी के पक्ष में ही वोट डालता है।