चारों तरफ हजारों फीट बर्फ की मोटी चादर। ऑक्सीजन, पानी व भोजन भी नहीं। चारों तरफ खौफनाक मंजर। 18 नहीं, बल्कि 48 घंटे की जंग। ऐसे में भी पहाड़ी बेटी जंग को जीत ले तो उसका हौसला असाधारण ही माना जाएगा। विकट परिस्थितियों (extenuating circumstances) के बावजूद जिद हर हाल में बेस कैंप तक पहुंचने की थी। जी हां, यहां बात हो रही है, हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के सोलन जिला से ताल्लुक रखने वाली विश्व स्तरीय पर्वतारोही ‘बलजीत कौर’ (Mountain Daughter Baljeet Kaur) की।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने अदम्य साहस का परिचय देने वाली बाला बलजीत कौर से फोन पर करीब 20 मिनट बात की। इस दौरान बलजीत ने सर्वाइवल (survival) की जंग के खौफनाक पलों के कई खुलासे किए।
संवाददाता: वो जगह, जहां परिंदा भी पर नहीं मारता है, 18 घंटे तक जिंदगी की जंग कैसे जीती?
बलजीत: देखिए, पहली बात तो ये है कि ये जंग 18 घंटे की नहीं, बल्कि 48 घंटे की थी। 18 अप्रैल को दोपहर डेढ़ से दो बजे के बीच मुझे रेस्क्यू (rescue) किया गया। तब तक मुझे कैंप से निकले हुए 48 घंटे हो चुके थे। ऑक्सीजन तो पहले ही इस्तेमाल नहीं कर रही थी। पानी व खाने के लिए भी कुछ नहीं था। चोटी पर चढ़ने के दौरान आप केवल चाॅकलेट या कैंडी ही खाते हो। बाकी कुछ नहीं था।
संवाददाता: शेरपा से क्यों अलग हो गई।
बलजीत : दरअसल, मैं धीरे चल रही थी। नहीं चाहती थी कि मेरी वजह से कोई मुसीबत में फंसे। इसीलिए उन्हें आगे बढ़़ने को कहा था। हां, ये जरूर था कि मैं इस बात को लेकर दृ़ढ़ संकल्पित थी कि बेस कैंप तक पहुंच जाउंगी।
संवाददाता : बर्फ की सफेद चादर पर बगैर ऑक्सीजन (oxygen) के 7375 मीटर (24,193 फीट) की ऊंचाई पर फंसे होने का अनुभव शेयर करें?
बलजीत : मैंने सुना था, ऐसी परिस्थिति से गुजरने वाला खुली आंखों से सपना देखता है। हकीकत में मेरे साथ ऐसा ही हुआ। जीवन काल्पनिक सा हो जाता है। आपको ऐसा लगता है कि बचाने के लिए सामने से कोई आ रहा है, वास्तव में ऐसा नहीं होता। दिमाग काम करना छोड़ देता है, आप वही करते हो जो शरीर कहता है। डरावना अनुभव ताउम्र याद रहेगा। रह-रह कर दिमाग में केवल एक बात जरूर कौंध रही थी कि मुझे बेस कैंप (Base Camp) तक पहुंचना है। सुरक्षित घर जाना है। हाइपोथर्मिया (hypothermia) आपके शरीर को असमान्य कर देता है। बर्फ को पिघला कर पानी बनाना भी कठिन था।
संवाददाता : कैसे लोकेशन (Location) बता पाए, सबसे खुशी के पल क्या थे?
बलजीत : सेटेलाइट फोन के माध्यम से काठमांडू के अलावा भारत में बैकअप टीम (backup team) को सूचना देने में सफल हो गई थी। इसके बाद रेस्क्यू शुरू किया गया। रेस्क्यू करने पहुंचे हेलीकॉप्टर (helicopter) को देखकर खुशी का ठिकाना नहीं रहा था।
संवाददाता: एयर लिफ्टिंग (air lifting) की चुनौती का सामना कैसे किया?
बलजीत : दरअसल, जब पर्वतारोही को रेस्क्यू किया जाता है तो ऊंचाई की एक सीमा होती है। जहां मैं फंसी थी वहां से एयरलिफ्टिंग संभव नहीं थी। ऐसी परिस्थिति में को पायलट नीचे उतर कर फंसे व्यक्ति का हार्नेस बांधता है। लेकिन 7600 फुट की ऊंचाई पर ये भी संभव नहीं था। मुझे खुद ही इस चुनौती का सामना अचेत हालत में करना पड़ा। मैं पायलट की भी शुक्रगुजार हूं। रेस्क्यू करने के लिए हेलीकॉप्टर को हल्का किया गया, साथ ही मेरी हिम्मत के साथ-साथ पायलट की भी हिम्मत थी। एक-दूसरे की हिम्मत रंग लाई।