Recession

बाजार में दुकानदारों के जुबान से अक्सर सुनने को मिलता रहता है कि मंदी का दौर है. अखबार वैगरह पढ़कर लोग अनुमान लगाते रहते है कि फलां सेक्टर में मंदी आने वाली है, फलां सेक्टर मंदी से उभर गया. लेकिन सवाल यह कि मंदी होती क्या है, और देश का आम नागरिक इससे कैसे प्रभावित होता है?

‘मंदी’ आखिर होती क्या है?

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मंदी या Recession को आसान भाषा में समझें तो किसी भी चीज़, समान या बाज़ार का लंबे समय के लिए सुस्त पड़ जाना होता है. जब इस सुस्ती को अर्थव्यवस्था के संदर्भ में देखा जाता है तो उसे आर्थिक मंदी कहा जाता है. इसी क्रम में जब देश की अर्थव्यवस्था बहुत लंबे समय तक धीमी रहती है, तब उस आर्थिक मंदी को राष्ट्रीय मंदी का नाम दे दिया जाता है.

मंदी आने पर क्या होता है?

अर्थव्यवस्था बढ़ने की जगह गिरने लगे, और कई तिमाही तक यही सिलसिला चला रहे तब देश में आर्थिक मंदी की स्थिति बन जाती है. ऐसी स्थिति में निम्नवत चीज़ें होती हैं:

1. महंगाई और बेरोज़गारी तेज़ी से बढ़ती है.

2. लोगों की आमदनी कम होने लगती है, क्योंकि कमाई का जरिया सीमित होने लगता है.

3. शेयर बाज़ार में लगातार गिरावट आने लगता है.

भारत में कब मंदी का असर तेज हुआ है?

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 आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि भारत में 1958, 1966,1973 और 1980 में मंदी का असर बहुत ज्यादा था.

1. साल 1957-58 में आयात बिलों में बहुत तेजी आई थी. इस साल पहली बार भारत के अंदर अर्थव्यवस्था में गिरावट दर्ज की गई थी. यह पहली दफा था जब भारत की अर्थव्यवस्था माइनस में गई थी. इस साल भारत की अर्थव्यवस्था -1.2 पर पहुंच गई थी.

2. साल 1965-66 में भी भारत ने अर्थव्यवस्था में गिरावट देखी थी. क्योंकि इस साल भारत में भयंकर सूखा पड़ा था. इस साल अर्थव्यव्स्था का आंकड़ा -3.6 पर पहुंच गया था .

3. योम किप्पूर की लड़ाई में इजराइल का साथ देने वाले देशों पर अरब देशों के संगठन (OAPEC) ने तेल निर्यात पार रोक लगा दिया था. जिससे तेल संकट और पेट्रोलियम उत्पादक की भारी समस्या पैदा हो गई थी. इसके बाद कुछ समय के लिए तेल की कीमत 400 फ़ीसदी तक बढ़ गई थी. 1972-73 में भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट -0.3 पर आ गई थी.

4. ईरानी क्रांति के वजह से पूरी दुनिया में तेल उत्पादन को बहुत बड़ा झटका लगा था. इसके बाद तेल आयात की कीमतों में बहुत तेजी आई. भारत का तेल आयात भी क़रीब दोगुना हो गया था, और भारत के निर्यात में आठ फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी. साल 1979-80 में भारत का जीडीपी ग्रोथ -5.2 फीसदी पर आ गया था.

5. साल 2020 में कोरोना महामारी के आने के बाद, और अब रूस यूक्रेन की लड़ाई की वजह से पूरी दुनिया के साथ भारत की अर्थव्यवस्था भी चरमरा गई है.

मंदी से कोई देश किस तरह बाहर निकलता है?

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किसी भी देश को अर्थव्यवस्था से बाहर निकलने के लिए देश के अंदर निवेश को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाना चाहिए. निवेश के बढ़ने से लोगों के हाथ में रोजगार होगा, और रोजगार आने से लोग सामान खरीदते हैं जिससे बाजार संतुलित अवस्था में जाने लगता है.

स्टैगफ्लेशन क्या होता है, इसका मंदी से कैसा संबंध?

अर्थशास्त्रियों या देश दुनिया के बजट पर बारीक नजर रखने वाले लोगों द्वारा ‘स्टैगफ्लेशन’ शब्द का प्रयोग खूब सुना जाता है. ‘स्टैगफ्लेशन’ आर्थिक मंदी से जुड़ा एक शब्द है. इस शब्द का प्रयोग तब किया जाता है जब देश की अर्थव्यवस्था ना तो ऊपर जा रही हो और ना ही नीचे गिर रही हो. यानी अर्थव्यवस्था का ग्रोथ जब जीरो हो जाता है तो स्टैगफ्लेशन की स्थिति आ जाती है.

मंदी आने वाली है यह कैसे पता चलता है?

5 Lakh Job Losses Expected In inditimes

जब लगातार बड़ी-बड़ी कंपनियों में छटनी शुरू हो जाए यानी कर्मचारियों को निकाला जाने लगे तो अनुमान लगाया जाता है की स्थिति मंदी की बन रही है. अभी हाल ही में फेसबुक ने अपने 12000 कर्मचारियों को बाहर निकाल दिया. मेटा कंपनी ने भी कई हजार कर्मचारियों को बाहर निकाला है. टि्वटर गूगल जैसी बड़ी कंपनियां लगातार अपने एंप्लाइज को बाहर निकाल रही है.

आईटी इंडस्ट्री के साथ कई इंडस्ट्री, और कई स्टार्टअप कंपनियां लगातार इंप्लाइज को बाहर का रास्ता दिखा रही हैं. इन घटनाओं को देखते हुए अर्थशास्त्री अंदाजा लगाते हैं कि मंदी की गुंजाइश है. जैसे अमेरिका के अर्थशास्त्री बता रहे हैं कि 2023 में 65 प्रतिशत गुंजाइश है कि अमेरिका में मंदी आ सकती है.