कार्बन डाई ऑक्साइड के बारे में हम कितना कुछ जानते हैं. प्रकृति के नजरिए से देखे तो घबरा भी रहे हैं, लेकिन कुछ वैज्ञानिकों ने इसका तोड़ निकाला है. चूंकि हर तरह की गैस पर्यावरण संतुलन बनाएं रखने के लिए जरूरी है, इसलिए ये कहना गलत है कि कार्बन डाई ऑक्साइड को खत्म किया जा सकता है. ऐसे में वैज्ञानिक अब कार्बन डाई ऑक्साइड का उपयोग नए रूप में कर रहे हैं.
तकनीक को कुछ इस तरह से विकसित किया जा रहा है कि आने वाले समय में कार्बन डाई ऑक्साइड का उपयोग लोग रोजमर्रा के जीवन में कर सकें. जैसे कार्बन डाई ऑक्साइड से प्लास्टिक बनाना, और तो और सोने के लिए गद्दे-सोफे का निर्माण करना. हालांकि, कार्बन डाई ऑक्साइड हो, या प्लास्टिक…दोनों ही पर्यावरण के लिए नुकसानदायक हैं, लेकिन दूसरा सच ये है कि इनके बिना भी जीवन आसान नहीं.
क़रीब 7.25 ट्रिलियन टन प्लास्टिक ज़मीन और समुद्र में मौजूद हैं. नई टेक्नॉलॉजी से कार्बन डाई ऑक्साइड को प्लास्टिक में बदलना मुमकिन है, इससे कार्बन उत्सर्जन कम किया जा सकता है.
CO2 को प्लास्टिक में कैसे बदला जा सकता है?
प्लास्टिक से कम्यूप्यूटर बनते हैं, लैपटॉप, मोबाइलफोन… घर में उपयोग होने वाले न जाने कितने ही उपकरण बनाएं जाते हैं. बिजली के तारों से लेकर सीरिंज, और इंजेक्शन तक प्लास्टिक से बनाए जा रहे हैं. इसलिए प्लास्टिक को जीवन से निकालना आसान नहीं. पर वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक निर्माण में कार्बन डाई ऑक्साइड के उपयोग का सफल परीक्षण किया है.
ब्रिटेन के सेंटर फ़ॉर कार्बन डाइ ऑक्साइड यूटिलाइज़ेशन के रिसर्चर्स बताते हैं कि कार्बन डाइ ऑक्साइड से नायलॉन बनाया जा सकता है. वे कहते हैं कि ईंधन को रॉ मटेरियल की तरह इस्तेमाल करने के बजाय, आप कार्बन डाई ऑक्साइड में कुछ केमिकल डाल कर इनका उपयोग कर सकते हैं.
वैज्ञानिकों का कहना है कि कार्बन डाई ऑक्साइड सिर्फ उत्सर्जन से ही नहीं आता बल्कि ये कई केमिकल प्रोसेस का बाइ प्रोडक्ट भी है. जैसे क्ट्रियों से निकलने वाला कार्बन डाइ ऑक्साइड. कार्बन डाई ऑक्साइड से प्लास्टिक बनाने के दौरान कई कैटेलिस्ट का इस्तेमाल होता है. जर्मनी के कोवेस्ट्रो पेट्रोकेमिकल ग्रुप ने एक गद्दा बनाया है, जिसनें 20 प्रतिशत कार्बन है.
दुनियाभर में 15 मिलियन टन से ज़्यादा पॉलियूरेथेन का इस्तेमाल होता है. इसलिए कार्बन डाइ ऑक्साइड के इस्तेमाल से रॉ मटेरियल बनाना काफ़ी फ़ायदेमंद हो सकता है, इससे कार्बन उत्सर्जन में कमी आ सकती है. वैज्ञानिकों ने एक कैटेलिस्ट बनाया है जो कार्बन डाई ऑक्साइड और दूसरे कंपाउंड के बीच रिएक्शन करवाता है, और पॉलीयूरेथेन नाम की फ़ैमिली बनाता है. इसी मटेरियल से गद्दे बनाए हैं.
तैयार हो रहा है कार्बन डाई ऑक्साइ का नया बाजार
ब्रिटेन ही नहीं दुनिया के कई और देशों में वैज्ञानिक कार्बन डाई ऑक्साइड का इस्तेमाल कर अलग-अलग तरह के प्लास्टिक बना रहे हैं. आने वाले कुछ सालों में इस नए प्लास्टिक का अच्छा खास बाजार खड़ा होने वाला है. ब्रिटेन की पॉलियूकेथेन बनानी वाली कंपनी इकोनिक ने दावा किया है कि दो सालों में वो फ़ोन के प्रोडक्ट बाज़ार में उतार देंगे. इसके अलावा कोटिंग और इलास्टोमर बना सकते हैं.
इसास्टोमोर रबर जैसे पदार्थ होता है. कंपनी के सेल्स डेट लीड टेलर का कहना है कि ये नए मटेरियल क्वालिटी में प्लास्टिक जैसे ही हैं. यह मटेरियल कई मायनों में बेहतर भी हैं, जैसे इनमें आग नहीं लगती, स्क्रैच नहीं आता. इकॉनिट का अनुमान है कि अगर कुल पॉलिओल का 30 प्रतिशत कार्बन डाई ऑक्साइड से बनाए जाएं, तो 90 मिलियन टन कार्बन उत्सर्जन बचाया जा सकता है.
इसके साथ ही Co2 से ऐसे पोलीकॉर्बोनेट बनाने का प्रयास हो रहा है, जिससे कंटेनर और बोतल बन सके. अगर ऐसा होता है तो बहुत बड़ा बाजार तैयार हो जाएगा. चूंकि कंटेरन और बोतल में प्लास्टिक का सबसे ज्यादा उपयोग होता है. इसके अलावा कार्बन डाइ ऑक्साइड से इथाइलीन बनाने की भी कोशिश की जा रही है. दुनिया की आधी प्लास्टिक इथाइलीन से ही बनती है और ये सबसे महत्वपूर्ण रॉ मटेरियरल है.
भविष्य पर क्या होगा इस नई तकनीक का असर?
ब्रिटेन के सावांसी विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर इन्रिकों एन्ड्रिओली कहते हैं कि कार्बन डाई ऑक्साइड से बने पोलीइथाइलीन का बड़े स्तर पर इस्तेमाल शुरू होने में 20 साल से ज्यादा वक्त लगेगा. क्योंकि 0 से 40 सालों के बाद हम ईंधन से इथाइलीन नहीं बना पाएंगे. इसलिए हमें दूसरे तरीके खोजने होंगे.
लेकिन इसमें बहुत खुश होने जैसा कुछ नहीं. चूंकि नए प्लास्टिक से कार्बन का उत्सर्जन कम हो सकता है, पर इसका उपयोग बढ़ेगा और हम आने वाले कुछ सालों में कार्बन के उसी खतरनाक स्तर पर पहुंच जाएंगे. बॉयोप्लास्टिक उतनी जल्दी खत्म नहीं होते जितनी जल्दी उसके खत्म होने का दावा किया जा रहा था. चूंकि कार्बन उत्सर्जन के मामले में भी इन्हें बनाने में बहुत कार्बन वातावरण में जाता है.
प्लास्टिक के बनने की पुरानी और हाल की प्रक्रिया के अलावा कार्बन डाइ ऑक्साइड से प्लास्टिक बनने की पूरी प्रक्रिया बहुत लंबी और खर्चीली है. इस दौरान कार्बन का उत्सर्जन भी जारी रहता है. अब अगर दावा किया जाए कि कार्बन डाइ ऑक्साइड से बना प्लास्टिक समस्या का हल है तो ये बात सही नहीं. चूंकि इससे समस्या छिप तो रही है पर हल नही हो रही.