Grey Zone Warfare Explainer: बेहद ताकतवर देश भी अब किसी कमजोर से कमजोर दुश्मन देश के खिलाफ सेना नहीं उतारना चाहता है। रूस-युक्रेन का युद्ध छिड़ा था तो तो पूरी दुनिया को उम्मीद थी कि यह युद्ध तुरंत अंजाम तक पहुंच जाएगा क्योंकि यूक्रेन के मुकाबले रूस काफी ताकतवर है। इधर, चीन एलएसी पर भारत के खिलाफ सैन्य तनाव बरकरार रखा है। ऐसे में ग्रे जोन वॉरफेयर की चर्चा जोर पकड़ रही है।
नई दिल्ली: बदलते वक्त में युद्ध का तरीका भी बदल गया है। कहे-सुने के साथ-साथ यह अक्सर अनुभव भी किया जाने लगा है। पड़ोसी देश चीन का पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर लंबे समय से तनाव जारी रखना भी इसी नए तरीके के युद्ध का ही एक उदाहरण है। हालांकि, कुछ दिनों पहले पेट्रोलिंग पॉइंट 15 (PP 15) से भारत और चीन, दोनों की सेनाएं पीछे हटी हैं, लेकिन डेमचॉक और देपासांग जैसे क्षेत्रों में दोनों देशों की सेनाएं अब भी एक-दूसरे की आंखों में आंखें डाले खड़ी हैं। ऐसे में चीन की चाल को समझना मुश्किल हो रहा है। इसी माहौल में भारत के थल सेना प्रमुख (Indian Army Chief) जनरल मनोज पांडे ने कहा है कि हमें अपनी ‘ग्रे जोन’ की युद्ध-क्षमता बढ़ानी होगी। उन्होंने राजधानी दिल्ली में आयोजित इंडिया डिफेंस कॉन्क्लेव में कहा, ‘हमें भी ग्रे जोन कैपिबलिटीज को विकसित करने की जरूरत है।’ उधर, नौसेना प्रमुख (Indian Navy Chief) एडमिरल हरिकुमार ने एक अन्य सम्मेलन में कहा कि युद्ध अब सिर्फ सीमाओं पर नहीं लड़े जाते बल्कि लोगों के दिमागों में भी लड़े जा रहे हैं। दरअसल, नौसेना प्रमुख ने भी ग्रे जोन वॉरफेयर टैक्टिक्स की तरफ ही इशारा किया है। भारतीय सेना को अहसास है कि चीन ने इसमें महारत हासिल कर ली है और उससे निपटने के लिए हमें भी इस कला में पारंगत होना होगा। आइए जानते हैं कि आखिर ग्रे जोन वॉरफेयर क्या है और भारत को इसमें निपुण होने के लिए किन चीजों की दरकार होगी।
मिलिट्री ऐक्शन से इतर है ग्रे जोन वॉरफेयर
ग्रे जोन वॉरफेयर मूलतः सैन्य कार्रवाइयों (Military Actions) से इतर दुश्मन को अलग-अलग मोर्चों पर कमजोर करने की तरकीब है जिसके तहत युद्ध काल में ही नहीं, शांति काल में भी अलग-अलग अभियान चलते रहते हैं। चीन की ‘सलामी स्लाइसिंग’ पॉलिसी इसी ग्रे जोन वॉरफेयर का एक हिस्सा है। चीन ने इस युद्ध कौशल में अपने आपको काफी मजबूत बनाया है। इतना ही नहीं, पड़ोसी देशों को कर्ज के जाल में फांसने की रणनीति हो या बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव जैसा ढांचागत अभियान, चीन इनके जरिए ग्रे जोन वॉरफेयर को ही बढ़ावा देता है। सामान्य समझ तो कहती है कि लोन देकर चीन पड़ोसियों की मदद करता है जबकि बीआरआई जैसे प्रॉजेक्ट्स से पड़ोसी देशों में ढांचागत सुधारों की पहल की जाती है, लेकिन उसके पीछे की मंशा बिल्कुल विपरीत होती है। चीन इन तरकीबों से न केवल दूसरे देशों को अपनी शर्तें मानने पर बाध्य करता है बल्कि उसकी संप्रभुता और सीमाओं का भी अतिक्रमण करता है।
आर्मी चीफ और नेवी चीफ ने बताई जरूरत
नेवी चीफ एडमिरल आर हरिकुमार ने कहा है, ‘भौगोलिक सीमाओं से इतर युद्ध के अखाड़े सजेंगे। यह समुद्र में, जमीन पर, हवा में, सूचनाओं दुनिया और डिजिटल वर्ल्ड में, यहां तक कि हमारे दिमाग में भी लड़ा जाएगा।’ सूचना तकनीक के जमाने में हम कैसे प्रभावित होते हैं, दुश्मन को पता होता है। इसलिए नई युद्ध नीति में दुश्मन देश की जनता का मन बदलकर, उनका समर्थन हासिल करने पर भी जोर दिया जाता है। इस काम को इतनी सफाई से अंजाम दिया जाता है कि दुश्मन देश के आम नागरिक अपने ही देश और वहां की सरकार के खिलाफ हो जाते हैं। स्वाभाविक है अगर देश के अंदर ही बंटवारा हो जाए तो दुश्मन का काम आसान हो जाता है। गैर-सरकारी संगठन, निजी हित में देशहित को दांव पर लगा देने की फिराक में बैठे लोगों एवं संगठनों के समूह, सोशल मीडिया और एवं सूचना के अन्य माध्यम इस काम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इतना ही नहीं, कई बार राजनीतिक दल भी दुश्मन देश के ग्रे जोन वॉरफेयर के औजार के रूप में काम करने लगते हैं।
ग्रे जोन वॉरफेयर के असीमित आयाम
एक्सपर्ट्स ग्रे जोन वॉरफेयर की कोई सुनिश्चित परिभाषा तो नहीं मानते हैं, लेकिन इस बात पर सभी एकमत हैं कि फिजिकल वॉर से इतर जो भी गतिविधियां दुश्मन देश को परेशान करने वाली हों, वो दरअसल ग्रे जोन वॉरफेयर का ही हिस्सा होती हैं। इसमें अलग-अलग मोर्चों पर खतरों (Hybrid Threats) की उत्पत्ति, तीक्ष्ण शक्तियों (Sharp Power) का उपयोग, राजनीतिक युद्ध (Political Warfare), छवि खराब करने की चाल, अनियमित संघर्ष और स्वतंत्र फैसले लेने में रुकावटें पैदा करने जैसे हथियारों का इस्लेमाल किया जाता है। अमेरिका समेत तमाम लोकतांत्रिक देशों के रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन, कोरिया जैसे तानाशाही शासन वाले देश इस क्षेत्र में तेजी से प्रगति करते हैं क्योंकि वहां लोगों के लोकतांत्रिक अधिकार काफी सीमित होते हैं। इस कारण उन देशों की सरकारें जनता के प्रति जवाबदेही से बच जाती हैं क्योंकि उन्हें सवालों का सामना ही नहीं करना पड़ता है। ऐसी शासन व्यवस्था में किसी दूसरे देश के प्रति फर्जी खबरें प्रचारित करने, सोशल मीडिया ट्रोल की फौज खड़ा करना, आतंकियों की फंडिंग और सैन्य स्तर पर छोटे-छोटे उकसावों को बढ़ावा देना आसान होता है।
ग्रे जोन वॉरफेयर के नए-नए टूलकिट
तो क्या ग्रे जोन वॉरफेयर कोई नया कॉन्सेप्ट है? सैन्य मामलों के जानकार कहते हैं कि इंटरनेट और सोशल मीडिया के जमाने में ग्रे जोन वॉरफेयर को नए-नए आयाम जरूर मिल गए हों, लेकिन इसकी नींव शीत युद्ध के दौरान ही रखी गई थी। साल 1945 में खत्म हुए द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एक तरफ अमेरिका एवं पश्चिमी देश और दूसरी तरफ रूस एवं उसके सहयोगी देशों के बीच शुरू हुए शीत युद्ध में गैर-सैन्य युद्ध के हर संभावित क्षेत्र की तलाश होती रही। उसमें दोनों गुटों ने एक-दूसरे के खिलाफ विभिन्न मोर्चों पर अभियान छेड़े और वक्त के साथ-साथ सेना को मजबूत करने और हथियारों के भंडार को समृद्ध करने के अलावा गुटबंदियों पर भी काफी जोर दिया गया। अब तो ग्रे जोन वॉरफेयर के नए-नए टूलकिट विकसित हो रहे हैं। अब सेनाओं को आमने-सामने लाने से बचने की कोशिशें होती हैं, दुश्मन देशों के साथ व्यापारिक साझेदारी को निष्प्रभावी बनाए रखने के प्रयास होते हैं और साथ ही बदस्तूर जारी रहता है कुटिल चाल से मात देने के खेल। दुश्मन देशों की राजनीतिक ताकतों को प्रभावित किया जाता है, उसके यहां चुनावों में परोक्ष दखल दी जाती है, आर्थिक नीतियों को प्रभावित किया जाता है, उसके खिलाफ साइबर ऑपरेशन चलाए जाते हैं और जैसा कि पहले ही कहा गया है- वहां के लोगों के अंदर अपने ही सरकार और शासन के प्रति घृणा का भाव पैदा कर दिया जाता है।
ग्रे जोन वॉरफेयर: जिसकी राह ही मंजिल है
हमारे एक और पड़ोसी देश पाकिस्तान को ही ले लें। वह जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की फंडिंग आज से नहीं कर रहा है। उसकी खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) आतंकी फंडिंग के लिए भारत में अलग-अलग देशों के जरिए ड्रग्स की सप्लाई भी करता है। वह भारत के अलग-अलग अंदरूनी मामलों को लेकर अल्पसंख्यक समुदाय में अलगाव की भावना भड़काने का हर संभव प्रयास करता रहता है। बात जाति की हो या धर्म की, आए दिन विवादित मुद्दों पर पाकिस्तानी टूलकिट का पर्दाफास होता रहता है। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, ग्रे जोन वॉरफेयर का लक्ष्य दूरगामी परिणाम हासिल करना होता है। परंपरागत युद्ध में जिस तरह हार-जीत का फैसला हो जाता है, उससे उलट इसमें एक समय सीमा में हार-जीत की कल्पना नहीं की जाती है। ग्रे जोन वॉरफेयर लगातार चलते रहने वाला अभियान है, चाहे माहौल शांतिपूर्ण ही क्यों न रहे। बिना ध्यान हटाए दुश्न को अंदर और बाहर से कमजोर करते रहने का अभियान ही ग्रे जो वॉरफेयर का असली मुकाम है। कुल मिलाकर कहें तो पारंपरिक युद्ध की एक मंजिल होती है- जीत। ग्रे जोन वॉरफेयर का रास्ता ही उसकी मंजिल है।
ग्रे जोन वॉरफेयर के प्रमुख अंग
नकारे जा सकने वाले हमले: साइबर अटैक से लेकर उन सभी हमले शामिल हैं जिनकी जिम्मेदारी से बचा जा सकता है या जिनके आरोपों को खारिज किया जा सकता है। दूसरी तरफ सुसाइड अटैक, ड्रोन अटैक, मिसाइल अटैक जैसे हमले भी इसी श्रेणी में आते हैं। इसके जरिए दुश्मन देशों में बिना सेना भेजे हत्याओं को अंजाम दिया जाता है। अमेरिका ने दो साल पहले ईरान के कुद्स फोर्स के सुप्रीम कमांडर कासिम सुलेमानी की हत्या कर दी थी।
सूचनाओं का अभियान: इसके तहत गलत तथ्यों या आंशिक तौर पर सही तथ्यों को पेश किया जाता है। सूचना के किसी एक पहलु या कुछ पहलुओं को उभारकर बाकी पहलुओं को छिपाया जाता है ताकि दुश्मन देश की छवि दुनिया ही नहीं, खुद उसके नागरिकों की नजर में ही खराब की जा सके।
परोक्ष ताकतों का सहारा: भारत इसे लंबे समय से भुगत रहा है। बार-बार के युद्धों में लगातार मिली मात के बाद पाकिस्तानी सेना को अहसास हो गया कि वह सीधी लड़ाई में हमेशा हारता रहेगा। इसलिए उसने अपने यहां नॉन-स्टेट ऐक्टर्स को बढ़ावा दिया। पाकिस्तान आज आर्थिक दुर्दशा झलेते हुए भी आतंकी फंडिंग से बाज नहीं आ रहा है।
सीमाई अतिक्रमण: एक तरफ पाकिस्तान तो दूसरी तरफ चीन। चीन की सलामी स्लाइसिंग की पॉलिसी दुनिया में मशहूर है। वह दोस्ती का हाथ बढ़ाकर भरोसे में लेता है और फिर जब उसके टार्गेट देश निश्चिंत हो जाते हैं वह सीमा पर अतिक्रमण करने लगता है। उसकी दूसरी चाल यह होती है कि दूसरे देश की सीमा में चुपके से सेना भेज दो और जब विरोध या तनाव हो तो सेना को थोड़ा पीछे हटा लो। यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है और बहुत आगे-थोड़ा पीछे की नीति से वह धीरे-धीरे दूसरे के बड़े भू-भाग पर कब्जा कर लेता है।