जब भी हम विज्ञापनों या न्यूज़पेपर में पढ़ते हैं कि मार्केट में 9 से 10 लाख रुपये तक की कोई कार लॉन्च हुई है. हमें लगता है कि यह कार तो हमारे बजट में ही है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमें जिस रेट पर हमें कार बेची जाती है, वह उसकी ओरिजनल कीमत से बहुत अधिक होती है. ऐसे में जानना जरूरी है कि आखिर कौन सी ऐसी चीजें है जिनकी वजह से कार का फाइनल प्राइस बढ़ जाता है?
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एक्स-शोरूम vs ऑन-रोड कीमत
RTO में भुगतान किए गए टैक्स, बीमा और रजिस्ट्रेशन शुल्क को शामिल करने से पहले कार या बाइक के आधार मूल्य को Ex-Showroom Price के रूप में जाना जाता है. ऊपर दिए गए तीनों एलिमेंट्स देश के पब्लिक Highways पर वाहन चलाने के लिए आवश्यक हैं. इन एलिमेंट्स को कंट्रोल करने वाले नियमों को तोड़ने के गंभीर परिणाम होते हैं. Goods and Services Tax, वाहन डीलर का प्रॉफिट मार्जिन, और एक्स-फैक्ट्री कॉस्ट सभी वाहनों के Ex-Showroom Price में शामिल हैं. यह वह लागत है जिस पर आमतौर पर कारों का विज्ञापन किया जाता है.
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शोरूम से सड़क पर कार लाने के लिए ग्राहक वास्तव में जो कीमत चुकाएगा, उसे उस वाहन की On-Road Pricing के रूप में जाना जाता है. इसलिए, इसे On-Road Price कहा जाता है. इसमें Ex-Showroom Price, बीमा के लिए शुल्क, रजिस्ट्रेशन और रोड टैक्स, साथ ही साथ कई एडिशनल ऑप्शनल कॉस्ट्स भी शामिल हैं. उदाहरण के तौर पर, अगर कई व्यक्ति चाहता है कि उसके नए ऑटोमोबाइल में कुछ एक्स्ट्रा Accessories हों जो डीलर बेचता है, तो डीलर वाहन के Final On-Road Payment में अमाउंट जोड़ देगा.
कारों पर Tax किस तरह तय होता है?
आमतौर पर हम एक या दो कार देखकर ही फाइनल कर देते हैं. लेकिन एक बार जब आपको पता चलता है कि कार की लंबाई यानि Length भी इसकी ऑन-रोड प्राइसेस को प्रभावित करती है तो आप चीजों को अलग तरह से देखना शुरू कर देते हैं. एक पेट्रोल कार(CNG और LPG सहित) 4 मीटर से छोटी लंबाई, 1200cc से कम हॉर्स पावर के इंजन के साथ कुल 29% टैक्स (28% जीएसटी + 1% Cess) लगेगा.
जबकि, एक जैसी कार, लेकिन 4 मीटर से अधिक की लंबाई होने पर कुल 43% टैक्स (28% जीएसटी + 15% Cess) लगेगा. इसी क्रम में जब 1200cc से अधिक इंजन वाली पेट्रोल कार की बात आती है तो उसकी लंबाई कुछ भी हो, टैक्स Manufacturing Cost का आधा यानि 50% (28% जीएसटी + 22% Cess) हो जाता है.
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अब डीजल कारों पर टैक्स ब्रेकअप पर एक नजर डालते हैं. 1500cc से कम इंजन और 4 मीटर से कम लंबाई होने पर कुल 31%(28% जीएसटी + 3% Cess) लगेगा. जबकि सेम कार लेकिन 4 मीटर से ज्यादा लंबाई होने पर कुल 48% टैक्स (28% जीएसटी + 20% Cess) लगेगा. सोचिए अगर हम इसमें Ground Clearance जोड़ दें तो क्या होगा?
यदि डीजल इंजन 1500cc से अधिक है, कार की लंबाई 4 मीटर से अधिक है और 170mm से ऊपर का ग्राउंड क्लीयरेंस भी है तो टैक्स फिर से मैन्यूफैक्चरिंग कॉस्ट का 50% (28% जीएसटी + 22% Cess) बन जाएगा. अब इन सब पर रोड टैक्स जोड़कर आप महसूस करेंगे कि पेट्रोल या डीजल कार खरीदना आपको काफी महंगा पड़ सकता है.
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इस कॉन्टैक्स्ट में, आप इलेक्ट्रॉनिक विकल्पों पर सोचना शुरू कर सकते हैं. क्योंकि विभिन्न टैक्स और लोन से संबंधित प्रॉफिट के अलावा इलेक्ट्रिक वाहनों पर टैक्स 5% है. यहां तक कि Dreaded Road Tax का भी इलेक्ट्रॉनिक वाहनों के कॉस्ट ब्रेकअप में कोई जगह नहीं है. वहीं दोपहिया वाहनों के लिए 350cc तक की मोपेड और मोटरसाइकिल पर GST 28% है, और 350cc की लिमिट से ज्यादा वालों के लिए GST 31% है. जबकि, तीन पहिया वाहनों और एम्बुलेंस के तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले वाहनों पर GST केवल 28% है.
Other Contributing Factors क्या हैं?
यह फीस नए खरीदे गए वाहनों के रजिस्ट्रेशन से जुड़े खर्च से संबंधित है. इसमें राज्य का RTO शामिल है, जहां आप अपने वाहन को पंजीकृत यानि रजिस्टर कराते हैं. वहीं डीलरशिप में अक्सर Licence Plates, Smart Cards जैसी कई अन्य लागत भी शामिल होती हैं. एक बार रजिस्ट्रेशन होने के बाद, वाहन को एक रजिस्ट्रेशन नंबर मिल जाता है जो उसे यूनिक रजिस्ट्रेशन प्रदान करता है.
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Vehicle insurance, Extended Warranty और Annual Maintenance पैकेज कुछ एडिशनल फैक्टर्स हैं जो वाहन के ओरिजनल कॉस्ट में जुड़ जाते हैं. हालांकि, ये ऑप्शनल हैं इसलिए इनकी कॉस्ट भी अलग हो सकती है. इसलिए आपको यह सुनिश्चित करना चाहिए कि क्या आने वाले सालों के दौरान आपका खर्चा पैसा आपको लाभ दिलाएगा.