हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि सभी महिलाएं सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार हैं, चाहे उनकी वैवाहिक स्थिति कुछ भी हो. सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत अब सिंगल, लिव-इन और अविवाहित महिलाएं भी 24 हफ्ते के भीतर सुरक्षित गर्भपात करा सकती हैं.
बीते गुरुवार को जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने कहा,” अगर नियम 3बी(सी) को केवल विवाहित महिलाओं के लिए रखा जाता है तो यह इस स्टेरियोटाइप को कायम रखेगा कि केवल विवाहित महिलाएं ही यौन गतिविधियों में सक्रिय होती हैं. यह संवैधानिक रूप से टिकाऊ नहीं है. आगे कहा कि सिंगल या अविवाहित गर्भवती महिलाओं को 20-24 हफ्ते के बीच गर्भपात कराने से रोकना जबकि विवाहित महिलाओं को गर्भपात की अनुमित देना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा.
अविवाहित और ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग भी गर्भपात करा सकते हैं
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सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा कि विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच कृत्रिम भेद को कायम नहीं रखा जा सकता है. अनुच्छेद 21 के तहत प्रजनन स्वायत्तता, गरिमा और निजता के अधिकार एक अविवाहित महिला को एक विवाहित महिला के समान बच्चे को जन्म देने या गर्भपात कराने का अधिकार देते हैं.
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण बात कही. उन्होने कहा, “women” शब्द में “cis-gender woman” के अलावा दूसरे लोग भी शामिल हैं जो अपनी मर्जी से गर्भपात करा सकते हैं यानि अब ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग भी गर्भपात करा पाएंगे.
नाबालिगों के लिए गर्भपात के नियम
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सुप्रीम कोर्ट ने 18 साल से कम उम्र की लड़कियों के लिए गर्भपात की प्रक्रिया को आसान कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि MTP एक्ट के तहत अगर नाबालिग बच्ची गर्भपात के लिए किसी डॉक्टर के पास जाती है तो पुलिस को नाबालिग की पहचान या डिटेल्स देना आवश्यक नहीं है. वहीं SC ने इस बात से भी इंकार नहीं किया कि POCSO एक्ट 2012 के तहत नाबालिग लोगों के बीच यौन संबंध को अपराध घोषित किया गया है. एक्ट के तहत अगर किसी व्यक्ति को नाबालिगों के बीच यौन संबंध की जानकारी हो या यहां तक कि आशंका हो तो उसे पुलिस को रिपोर्ट करने की जरूरत है. ऐसा नहीं करना दंडनीय है. वहीं अगर नाबालिग बच्ची गर्भपात के लिए किसी डॉक्टर के पास जाती है तो डॉक्टर को अधिकारियों या पुलिस को सूचित करना होता है.
मैरिटल रेप भी रेप कैटगरी में
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सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अब विवाहित महिलाओं के पास भी गर्भपात की अधिक पहुंच हो गई है. दरअसल Abortion Law में कहा गया है कि अगर विवाहित महिला कहती है कि उसके पति ने बिना सहमति के यौन संबंध बनाया है और वह गर्भवती हो गई है, तो वह MTP एक्ट के तहत Rape, Sexual Assault से पीड़ित मानी जाएगी, जिसके चलते वह 20 से 24 हफ्ते के भीतर अबॉर्शन कराने के लिए पात्र होगी.
मैरिटल रेप को लेकर बहस
वर्तमान में, भारतीय दंड संहिता 375 के तहत पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ जबरन यौन संबंध बनाना बलात्कार के दायरे में नहीं आता है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गर्भपात के प्रयोजनों के लिए “Rape” या “Sexual Assault” शब्द में मैरिटल रेप शामिल होगा. मैरिटल रेप के लिए औपचारिक कानूनी कार्यवाही या FIR की जरूरत नहीं होगी.
गौरतलब है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने मई में मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने वाली एक याचिका पर विभाजित फैसला सुनाया था. वहीं फरवरी 2023 में सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई करेगा.
गर्भपात का फैसला केवल महिला का होगा
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इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अक्सर डॉक्टर गर्भपात के लिए महिलाओं से कई तरह के सवाल-जवाब करते हैं और अप्रूवल की मांग करते हैं जिसके चलते कई बार महिलाएं अदालतों की तरफ रुख करती हैं या अनसेफ कंडीशन्स में अबॉर्शन कराती हैं। इसलिए अदालत ने कहा कि अब से गर्भपात पर फैसला लेते समय केवल महिला की सहमति ही जरूरी है.
बेंच ने आगे कहा कि मेंटल हेल्थ जैसे शब्दों को मेडिकल टर्म या मेडिकल भाषा तक सीमित नहीं रखना चाहिए बल्कि आम लोगों को इसके बारे में समझाना भी चाहिए.
गर्भपात अधिकार, एक वैश्विक मुद्दा
American Psychological Association
गौरतलब है कि इस साल गर्भपात के अधिकार को लेकर दुनियाभर में बहस होती रही. वहीं अमेरिका में शुरू हुई Roe v. Wade की बहस में USA की सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात के अधिकार को कानूनी रूप से खत्म कर दिया. कोर्ट ने निर्देश दिया कि राज्य गर्भपात को लेकर अपने-अपने कानून बना सकते हैं. वहीं इस फैसले पर ना तो महिलाओं से राय ली गई और ना ही उनसे पूछा गया कि वे क्या चाहती हैं. उन्हें पूरी तरह से नज़रअंदाज कर दिया गया.