महाराष्ट्र-कर्नाटक का सीमा विवाद मंगलवार को तनावपूर्ण हो गया। बेलगावी में महाराष्ट्र की पांच गाड़ियों को रोककर प्रदर्शन और पथराव किया गया। सवाल है कि आखिर ठंड के महीनों में ही महाराष्ट्र कर्नाटक का सीमा विवाद क्यों चर्चा में आ जाता है जानिएः
बेलगावी/सोलापुर: पिछले 6 दशक से जारी महाराष्ट्र-कर्नाटक के बीच सीमा विवाद एक बार फिर गर्माया है। मंगलवार को कर्नाटक के बेलगावी में महाराष्ट्र के रजिस्ट्रेशन वाली पांच गाड़ियों पर पथराव हुआ। इसके बाद यह विवाद और बढ़ गया है। महाराष्ट्र के डेप्युटी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कर्नाटक सीएम बसवराज बोम्मई को कॉल कर नाराजगी जताई। गाड़ियों पर हमला करने वाले कन्नड़ रक्षण वेदिके (केआरवी) संगठन के 100 कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया। पिछले एक दशक से हर बार ठंड के दिनों ही सीमा विवाद का मसला सुलगता है। दो दशक से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लटका है लेकिन अब तक कोई हल नहीं निकल सका है। आगे जानिए क्या है बेलगावी सीमा विवाद और ठंड में ही क्यों होती है इस पर राजनीति?
ताजा विवाद कैसे शुरू हुआ?
कुछ दिन पहले कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई ने दावा किया था कि महाराष्ट्र के सांगली जिले के जट तहसील के कुछ गांवों ने कर्नाटक के साथ विलय के लिए एक प्रस्ताव पारित किया। उन्होंने कहा कि ये गांव पानी के संकट से जूझ रहे हैं। इसके बाद दोनों राज्यों के बीच वाकयुद्ध शुरू हुआ। महाराष्ट्र के डेप्युटी सीएम फडणवीस ने बोम्मई के दावे का खंडन करते हुए कहा कि किसी भी गांव ने कर्नाटक में विलय की मांग नहीं की है। फडणवीस ने ट्वीट कर यह भी स्पष्ट कर दिया कि महाराष्ट्र का कोई भी गांव कर्नाटक नहीं जाएगा।
कर्नाटक महाराष्ट्र सीमा विवाद कितना पुराना?
महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद देश के सबसे पुराने अंतरराज्यीय विवादों में से माना जाता है। यह मामला 6 दशकों से चला आ रहा है। महाराष्ट्र और कर्नाटक दोनों ही जगह बीजेपी गठबंधन और बीजेपी की सरकार है ऐसे की पार्टी भी इस मुद्दे पर पशोपेश में है।
राज्य पुनर्गठन कानून के तहत 1 नवंबर 1956 को मैसूर राज्य बना जिसे बाद में कर्नाटक नाम दिया गया। इसी तरह बॉम्बे प्रांत को बाद में महाराष्ट्र के नाम से जाना गया। तभी से भाषाई आधार पर सीमा विवाद ने तूल पकड़ना शुरू कर दिया। दरअसल वर्तमान में कर्नाटक के विजयपुरा, बेलगावी, धारवाड़ और उत्तर कन्नड़ पहले आजादी से पहले बंबई रियासत का हिस्सा थे।
आजादी के बाद जब राज्यों के पुनर्गठन का काम चल रहा था, तब बेलगावी नगर पालिका ने मांग की थी कि उसे प्रस्तावित महाराष्ट्र में शामिल किया जाए क्योंकि वहां मराठी ज्यादा है।
इसके बाद महाराष्ट्र के कुछ नेताओं ने भी बेलगावी, निप्पणी, कारावार, खानापुर और नंदगाड़ को महाराष्ट्र का हिस्सा बनाने की मांग की। यहीं से हिंसक प्रदर्शन शुरू हुए। इसके लिए महाराष्ट्र एकीकरण समिति का गठन हुआ, जो आज भी जिले के कुछ इलाकों में प्रभावी है।
आयोग की सिफारिशों का क्या हुआ?
जब विलय की मांग जोर पकड़ने लगी तो केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 25 अक्टूबर 1966 को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मेहर चंद महाजन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया। आयोग ने 1967 में रिपोर्ट सौंपी और कर्नाटक के निप्पणी, खानापुर और नांदगाड समेत 264 कस्बों और गांवों को महाराष्ट्र को देने की सिफारिश की। इसी तरह महाराष्ट्र के 247 गांवों (दक्षिण सोलापुर और अक्कलकोट समेत) के कर्नाटक में विलय का सुझाव दिया।
हालांकि महाराष्ट्र बेलगावी सहित 865 गांवों की मांग कर रहा था। इसलिए इस रिपोर्ट पर महाराष्ट्र ने आपत्ति जताई थी। इस रिपोर्ट को 1970 में संसद में पेश किया गया लेकिन कार्यान्वयन के लिए आगे नहीं बढ़ाया गया। तब से यह विवाद आज तक सुलझ ही नहीं सका है। बाद में इसे चुनावी राजनीति और ध्रुवीकरण के लिए समय-समय पर इस्तेमाल किया गया।
सुप्रीम कोर्ट में कब पहुंचा मामला?
साल 2004 में महाराष्ट्र सरकार मामले को सुप्रीम कोर्ट लेकर गई। उन्होंने पुनर्गठन कानून 1956 के कुछ प्रावधानों को चुनौती दी। इसमें मांग की गई कि कर्नाटक के पांच जिलों (बेलगावी, बीदर, कलबुर्गी, विजयपुरा और कारवार) के 865 गांवों और कस्बों को प्रदेश में मिलाया जाए। जबकि कर्नाटक सरकार ने दलील दी कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत राज्यों की सीमाएं तय करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट को नहीं, बल्कि संसद को है।
ठंड में ही क्यों सुलगता है मामला?
2007 में कर्नाटक ने बेलगावी पर अपना दावा पुख्ता करने के लिए सुवर्ण विधान सौधा (विधानसभा) का निर्माण शुरू कराया। 2012 में इसका उद्घाटन कर दिया गया और तब से विधानसभा के शीतकालीन सत्र को यहीं आयोजित किया जाता है। ऐसे में जब भी बेलगावी में शीतकालीन सत्र शुरू होता है सीमा विवाद का मुद्दा सुलगने लगता है। पिछले साल बेलगावी में सत्र के दौरान, शहर में जमकर उत्पात हुआ था। बेलगावी को महाराष्ट्र में विलय करने की मांग को लेकर महाराष्ट्र एकीकरण समिति ने एक कार्यक्रम आयोजित किया था जहां कुछ कन्नड़ कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शनकारियों के चेहरे पर कालिख पोत दी थी।