Explainer : दुनिया पर फिर छाया मंदी का खतरा! समझें इससे पहले कब-कब आया संकट और कैसे बदले दुनिया के हालात?

पिछली वैश्विक मंदी साल 2008 में आई थी.

पिछली वैश्विक मंदी साल 2008 में आई थी.

नई दिल्‍ली. पिछले काफी समय से आर्थिक मंदी की चर्चा किसी न किसी रूप में हो रही है. वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था पर नजर रखने वाले कई बड़े निजी संस्‍थान चालू वित्‍त वर्ष में अमेरिका सहित कई देशों के मंदी की चपेट में आने की घोषणा कर चुके हैं. अब तो विश्‍व बैंक ने भी कह दिया है वर्ष 2023 में पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी आ सकती है. मंदी-मंदी के इस शोर के बीच यह जानना जरूरी है कि आखिर यह है क्‍या? वैश्विक आर्थिक मंदी कब-कब आई और इसने क्‍या असर डाला?

सामान्‍य शब्‍दों में कहें तो किसी भी चीज़ का लंबे समय के लिए मंद या सुस्त पड़ जाना ही मंदी है. इसी को अर्थव्यवस्था के संदर्भ में कहा जाए, तो उसे आर्थिक मंदी कहते हैं. तकनीकी रूप से कहें तो जब किसी अर्थव्यवस्था में लगातार दो तिमाहियों में जीडीपी ग्रोथ घटती है, तो उसे आर्थिक मंदी कहा जाता है. आर्थिक मंदी की स्थिति में अर्थव्यवस्था बढ़ने की बजाय गिरने लगती है. यह सिलसिला कई तिमाहियों तक चलता है. इस परिस्थिति में महंगाई और बेरोजगारी में तेज वृद्धि होती है. लोगों की आय कम हो जाती है, शेयर बाजार में गिरावट आती है, मांग बहुत कमजोर हो जाती है.

कब-कब आई वैश्विक मंदी?
अगर हम बात पिछले 100 वर्षों की करें तो, दुनिया इस अवधि में 5 बार इस घोर आर्थिक संकट का सामना कर चुकी है. ऐसा नहीं है कि हर बार आर्थिक मंदी के कारण समान थे. कारण भी अलग थे और प्रभाव भी. तो आइए जानते हैं कि दुनिया में कब और कैसे दी आर्थिक मंदी ने दस्‍तक और कैसे इसने लोगों के जीवन में उथल-पुथल मचाई.

1929-39 की महामंदी (द ग्रेट डिप्रेशन)
1929 में शुरू हुई और 1939 तक चली मंदी को महामंदी (द ग्रेट डिप्रेशन) के नाम से पुकारा जाता है. 1929 के ‘द ग्रेट डिप्रेशन’ की शुरुआत अमेरिकी शेयर बाजारों में भारी गिरावट आने से हुई थी. देखते ही देखते इसने लगभग पूरी दुनिया को अपने चंगुल में ले लिया. खास बात यह रही इस मंदी का असर रूस (तत्‍कालीन सोवियत संघ) पर बिल्‍कुल नहीं हुआ था. इस मंदी ने पूरी दुनिया में ऐसा कहर मचाया कि उससे उबरने में कई साल लग गए.

इस मंदी के बड़े व्यापक आर्थिक व राजनीतिक प्रभाव हुए. इससे साम्‍यवाद और फासीवाद का प्रसार बढ़ा. इस मंदी ने ही द्वितीय विश्वयुद्ध की नींव रखी. मंदी से वैश्विक जीडीपी करीब 15 प्रतिशत गिर गई. अमेरिका में बेरोजगारी दर 23 प्रतिशत हो गई थी. कृषि उत्पादन 60 फीसदी घट गया. दुनियाभर में करीब 1 करोड़ 30 लाख लोग बेरोजगार हो गए. इस मंदी के दौरान 5 हजार से भी अधिक बैंक डूब गए.

1975 की आर्थिक मंदी
1973 के अरब-इस्राएल युद्ध में इस्राएल का समर्थन करने की सजा के तौर पर तेल उत्पादन करने वाले देशों के संगठन ओपेक ने अमेरिका समेत कुछ देशों को तेल देने पर प्रतिबंध लगा दिया. इससे तेल की कीमत 300 प्रतिशत बढ़ गई. भारत भी इससे बहुत बुरी तरह प्रभावित हुआ. 1972-73 में भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट-0.3 रही. अमेरिका सहित दुनिया के 7 बड़े औद्योगिक देशों में महंगाई बहुत बढ़ गई.

अमेरिका की स्थिति सबसे खराब हुई.16 महीनों की इस मंदी में अमेरिका की जीडीपी 3.4 फीसदी गिरी तो बेरोज़गारी की दर 8.8 फीसदी पहुंच गई. 23 लाख नौकरी से हाथ धो बैठे. इंग्‍लैंड की जीडीपी में भी इस दौरान 3.9% की गिरावट आई. महंगाई दर 20 फीसदी हो गई. इतना बड़ा ऊर्जा संकट पैदा हुआ कि ब्रिटेन में सप्‍ताह में तीन दिन ही बिजली सप्‍लाई होती थी. ब्रिटेन को मंदी से उबरने में 14 तिमाहियों का समय लगा.

1982 की मंदी
1979 में ईरानी क्रांति ने 1982 में आई मंदी की नींव रखी थी. ईरानी क्रांति से कच्‍चे तेल के दाम आसमान छूने लगे. इसका असर वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था पर हुआ. 1979-80 में भारत की जीडीपी ग्रोथ -5.2 फीसदी हो गई थी. पूरी दुनिया में महंगाई बहुत बढ़ गई. काबू करने के लिए अमेरिका सहित कुछ बड़े देशों ने अपनी मौद्रिक नीति सख्‍त करनी शुरू कर दी. इसका परिणाम यह हुआ कि वहां मांग में जबरदस्‍त कमी आई. कुछ लैटिन अमेरिकी देशों में कर्ज बहुत बढ़ गया. 1982 में आई वैश्विक मंदी से विकसित देश तो बहुत जल्‍दी उबर गए लेकिन, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका के देशों पर इसका प्रभाव लंबे वक्‍त तक देखा गया.

1991 की वैश्विक मंदी…भारत ने गिरवी रखा सोना 
यह आर्थिक संकट 1990-91 में हुए खाड़ी युद्ध के बाद आया. हालांकि, इसके लिए केवल युद्ध ही जिम्‍मेदार नहीं था. अमेरिकी बैंकों की बुरी हालत और स्कैंडिनेवियन देशों की चरमराई बैंकिंग व्‍यवस्‍था ने भी दुनिया को आर्थिक संकट में झोंकने में अहम योगदान दिया. भारत पर इसका बहुत बुरा असर हुआ था. 1991 में भारत के आर्थिक संकट में फंसने की सबसे बड़ी वजह भुगतान संकट था. देश का व्यापार संतुलन गड़बड़ा चुका था. सरकार बड़े राजकोषीय घाटे पर चल रही थी. भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार मुश्किल से तीन सप्ताह के आयात लायक बचा था. सरकार कर्ज चुकाने में असमर्थ हो रही थी. विश्व बैंक और आईएमएफ ने भी अपनी सहायता रोक दी. सरकार को भुगतान पर चूक से बचने के लिए देश के सोने को गिरवी रखना पड़ा.

2008-09 की मंदी
‘द ग्रेट डिप्रेशन’ के बाद दुनिया का सबसे बुरा आर्थिक संकट था. इसकी शुरुआत अमेरिका के प्रॉपर्टी बाजार से हुई थी. अमेरिकी प्रॉपर्टी बाजार का बुलबुला फूटा तो उसने अमेरिका के बैंकिंग सिस्‍टम और शेयर बाजार की चूलें हिला दीं. अमेरिका में आया यह संकट जल्‍द ही दुनिया के अधिकतर देशों तक पहुंच गया. एक समय विश्व के सबसे बड़े बैंकों में से चौथे नंबर पर रहा लेहमन ब्रदर्स बैंक इस मंदी को नहीं झेल पाया और दिवालिया हो गया. इस मंदी से दुनिया भर के शेयर बाजार गिरे, मांग में कमी से उत्‍पादन घटा और करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए.

मंदी का आप पर क्‍या होता है असर?
आर्थिक मंदी किसी महामारी या भयानक आपदा से कहीं कम नहीं है. इसका असर भी कई सालों तक बना रहता है. यह न सिर्फ जीडीपी (GDP) का साइज घटाती है, बल्कि रोजमर्रा के खर्चे इसके कारण बेतहाशा बढ़ जाते हैं. महंगाई से हर चीज की मांग कम हो जाती है. मांग का असर उत्‍पादन पर पड़ता है. उत्‍पादन कम करने के कारण कंपनियां कर्मचारियों को निकाल देती है. इस तरह मंदी से महंगाई और बेरोजगारी बढ़ती है. लोगों के काम-धंधे ठप्‍प हो जाते हैं और उन्‍हें कई तरह की आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है.