संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के नाम पर पूरे यूपी में बांटी गईं फर्जी डिग्रियां, 17 कर्मियों के खिलाफ एफआईआर

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में फर्जीवाड़े का खुलासा छह हजार डिग्रियों की जांच के बाद हुआ। इसमें 1130 डिग्रियां जहां फर्जी मिली, वहीं 207 शिक्षकों के दस्तावेज में भी हेराफेरी मिली। अब सभी की निगाहें इस दिशा में होने वाली कार्रवाई पर टिकी है। 

वाराणसी का संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय

वाराणसी स्थित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में प्रमाणपत्रों के फर्जीवाड़े में 17 अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम (एसआईटी) ने मुकदमा दर्ज किया है। 2004 से 2014 के बीच तैनात रहे इन अधिकारियों ने बड़े पैमाने पर फर्जी डिग्रियां बांटीं, जिसमें 1300 से अधिक लोगों को सरकारी नौकरी मिल गई। एसआईटी की जांच में 18 कर्मचारी दोषी पाए गए थे, इसमें से एक कर्मी की मौत हो चुकी है।

यह पूरा मामला 2015 में सामने आया था। फर्जी डिग्री के सहारे बड़ी संख्या में शिक्षकों की भर्ती की शिकायत मिली थी। यह सभी डिग्रियां संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से जारी की गई थीं। इन डिग्रियों को सत्यापन के लिए संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय भेजा गया तो कर्मियों की मिलीभगत से उसे सत्यापित भी कर दिया गया।

इसके बाद इसकी जांच एसआईटी को सौंपी गई। एसआईटी ने डिग्री जारी करने और डिग्री के सत्यापन की प्रक्रिया से जुड़े लोगों को अपनी जांच में दोषी माना और इनके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की शासन से अनुमति मांगी। शासन ने बीते दिनों इसकी अनुमति दे दी थी। अब इस मामले में एफआईआर दर्ज कर ली गई है।

1130 डिग्रियां मिलीं फर्जी, 207 शिक्षकों के दस्तावेज में भी हेराफेरी

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में फर्जी प्रमाणपत्रों के मामले में मुकदमा दर्ज होने के बाद आरोपियों की नौकरी पर भी तलवार लटक रही है। एसआईटी द्वारा मुकदमा दर्ज किए जाने के बाद अब नए सिरे से जांच होगी। अब सभी की निगाहें इस दिशा में होने वाली कार्रवाई पर टिकी है। फर्जीवाड़े का खुलासा छह हजार डिग्रियों की जांच के बाद हुआ। इसमें 1130 डिग्रियां जहां फर्जी मिली, वहीं 207 शिक्षकों के दस्तावेज में भी हेराफेरी मिली।

संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रमाण पत्रों के फर्जीवाड़े की जांच 2015 में एसआईटी को सौंपी गई थी। जिन लोगों के खिलाफ जांच की गई की गई थी। उसमें कुलसचिव विद्याधर त्रिपाठी व गंगाधर पंडा, उप कुलपति परीक्षा इंदुपति झा व योगेंद्र नाथ गुप्ता, सहायक कुल सचिव परीक्षा सच्चिदानंद सिंह, अधीक्षक कार्यवाहक उप सचिव कौशल कुमार वर्मा, सहायक कुल सचिव दीप्ति मिश्रा व महेंद्र कुमार, कार्यालय प्रभारी कृपा शंकर पांडेय, भगवती प्रसाद शुक्ला, मिहिर मिश्रा, हरि उपाध्याय, त्रिभुवन मिश्र, सिस्टम मैनेजर विजय मणि त्रिपाठी, कार्यालय अधीक्षक विजय शंकर शुक्ला, प्रोग्रामर मोहित मिश्रा और सत्यापन अधिकारी शशींद्र मिश्र के नाम शामिल हैं।

75 जिलों में कराया गया था सत्यापन, 17 कर्मचारियों से हुई पूछताछ

प्रमाणपत्रों के फर्जीवाड़े में प्रदेश के 75 जिलों में नौकरी कर रहे शिक्षकों की डिग्रियों का सत्यापन कराया गया था। फर्जी प्रमाणपत्रों के मामले में विश्वविद्यालय के 17 कर्मचारियों से पूछताछ की गई थी। एसआईटी ने 2016 में जांच में पाया था कि विश्वविद्यालय की 3000 लोगों को फर्जी मार्कशीट बेची गई थी।

यह मार्कशीट संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के नाम से जारी हुई थीं। 16 वर्षों का विवरण तलब कर एसआईटी ने वर्ष 1998 से 2014 के बीच संस्कृत विश्वविद्यालय की डिग्री पर शिक्षक बने अभ्यर्थियों का ब्योरा बेसिक शिक्षा विभाग से तलब किया था। विश्वविद्यालय में अभिलेखों के सत्यापन में भारी अनियमितताएं मिली थीं।

शासन में लंबित है 1130 शिक्षकों की बर्खास्तगी की कार्रवाई

एसआईटी के एक अधिकारी ने बताया कि फर्जी डिग्री के मामलों में प्रदेश के विभिन्न जिलों में 40 से अधिक एफआईआर दर्ज है। यह एफआईआर उन शिक्षकों के खिलाफ भी है, जिन्होंने फर्जी डिग्री के सहारे नौकरी हासिल कर ली थी। एसआईटी ने सभी शिक्षकों की बर्खास्तगी के लिए शासन को पत्र भेजा था। शासन स्तर पर इन शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई लंबित है।