कुछ कर दिखाने और सफलता पाने की कोई उम्र निर्धारित नहीं होती. इंसान जब ठान ले तभी से वह अपनी किस्मत बदलने की कोशिश में लग सकता है. सफलता न उम्र देखती और न ये कि कोशिश करने वाला पुरुष है या महिला. इस बात का सबूत पेश किया है बिहार की आचार बनाने वाली किसान चाची ने. उनके संघर्ष और सफलता की कहानी सभी को प्रेरणा देने वाली है. 100 रुपये से करोड़ों का सफर Twitterबिहार के मुजफ्फरपुर जिले के आनंदपुर गांव की निवासी अचार वाली किसान चाची का नाम अब सबकी जुबान पर आ गया है. एक समय था जब इन्होंने 100 रुपये से अचार बनाकर बेचने का काम शुरू किया था मगर आज ये किसान चाची एक साल में एक करोड़ रुपये का बिजनेस कर रही हैं. इसके साथ ही वह सैकड़ों महिलाओं और बुजुर्गों को भी रोजगार दे रही हैं. आज उनका व्यापार देश-विदेश तक बढ़ चुका है.गरीब परिवार में हुआ जन्म Wikiमुजफ्फरपुर जिले के आनंदपुर गांव की किसान चाची का नाम राजकुमारी है. उनका जन्म और पालन पोषण एक गरीब परिवार में हुआ. गरीबी के कारण उनके परिवार में हमेशा पैसे की तंगी बनी रहती थी. गरीबी से लड़ने के लिए राजकुमारी ने समय समय पर कोशिश की. उन्होंने अपने खेतों में खैनी यानी तंबाकु की खेती शुरू की. इसमें कुछ फायदा मिलने पर इन्होंने पपीता की खेती में भी हाथ आजमाया.
खेती के साथ साथ सीखती भी रहीं AAjtakमीडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया था कि 1990 में पपीता 5 रुपये किलो तक बिकता था, इसलिए उन्होंने एक बीघा जमीन पर इसकी खेती की. उन्हें एक पेड़ से 70 से 80 किलो पपीता मिलता, जिससे उनकी अच्छी कमाई हो जाती थी. धीरे धीरे राजकुमारी देवी ने दूसरी सब्जियों की खेती भी शुरू की. खेती करने के साथ साथ वह किसानी के बारे में सीख भी रही थीं. वह यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के कार्यक्रम में जाया करती थीं. इसके साथ ही कृषि मेला में खेती की प्रदर्शनी में भी वह जाने लगीं. यहां उन्हें और उनकी उगाई बेहतरीन सब्जियों को पुरस्कार मिलने लगे. इसी से इन्होंने प्रसिद्धि पाई. इनकी मेहनत का ही नतीजा है कि इन्हें कृषि क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया.
साइकिल सीखने ओर सबने बुरा भला कहाकिसान चाची बीते दौर के बारे में बात करते हुए बताती हैं कि 90 के दशक में कहीं आना जाना आज की तरह आसान नहीं था. उनके गांव आनंदपुर से बस की सुविधाएं नहीं थी. इसके लिए उन्हें सरैया जाना पड़ता था. ऐसे में उन्होंने साइकिल सीखने की ठानी. साइकिल चलाने के लिए भी राजकुमारी को गांव के लोगों से बहुत कुछ सुनना पड़ा. ये वो दौर था जब गांव में महिलाओं के लिए साइकिल चलाना पाप समझा जाता था. किसान चाची ने किसी की भी बात पर ध्यान दिए बिना साइकिल सीखना जारी रखा. इसे चलाते हुए वह गिर भी गईं, जिसके बाद उन्हें डॉक्टर के पास मुजफ्फरपुर ले जाया गया. यहां डॉक्टर ने भी कहा कि 40 साल की उम्र में हड्डी टूट जाएगी तो परेशानी होगी, इसलिए इसे चलाना छोड़ दीजिए. लेकिन किसान चाची मानने वाली कहां थी. उन्होंने साइकिल चलाना सीखा और अपना सामान लेकर शहर तक इसे बेचने के लिए जाने लगी.अचार बनाना किया शुरू 2002 में किसान चाची ने स्वयं सहायता समूह के जरिए 350 से अधिक महिलाओं के साथ अचार बनान शुरू किया. किसान चाची अचार तैयार होने के बाद उसे साइकिल पर बेचने के लिए निकल पड़तीं. वह ये अचार 5-5 रुपये में बेचने लगीं. ऐसे में लोग उनका बहुत मजाक उड़ाते थे. इसके बाद किसान चाची ने अपनी टीम में से महिलाओं को अचार बेचने के लिए प्रशिक्षण देना शुरू किया. इसके बाद यह घर का अचार लोगों को पसंद आने लगा और इसकी बिक्री शुरू हो गई. पा ली सफलता Twitterआज के बिजनेस के बारे में किसान चाची बताती हैं कि दो कंपनियों के साथ उनका एग्रीमेंट है. खादी ग्रामोद्योग विभाग और बिहार सरकार के बिस्कोमान से प्रत्येक महीने उनके समूह को 5 से 10 लाख रुपये की कमाई होती है. किसान चाची और उनका समूह आज भी हाथ से ही अचार बनाते हैं. 11 मार्च 2019 को उन्हें उनके काम के लिए पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया.
खेती के साथ साथ सीखती भी रहीं AAjtakमीडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया था कि 1990 में पपीता 5 रुपये किलो तक बिकता था, इसलिए उन्होंने एक बीघा जमीन पर इसकी खेती की. उन्हें एक पेड़ से 70 से 80 किलो पपीता मिलता, जिससे उनकी अच्छी कमाई हो जाती थी. धीरे धीरे राजकुमारी देवी ने दूसरी सब्जियों की खेती भी शुरू की. खेती करने के साथ साथ वह किसानी के बारे में सीख भी रही थीं. वह यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के कार्यक्रम में जाया करती थीं. इसके साथ ही कृषि मेला में खेती की प्रदर्शनी में भी वह जाने लगीं. यहां उन्हें और उनकी उगाई बेहतरीन सब्जियों को पुरस्कार मिलने लगे. इसी से इन्होंने प्रसिद्धि पाई. इनकी मेहनत का ही नतीजा है कि इन्हें कृषि क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया.
साइकिल सीखने ओर सबने बुरा भला कहाकिसान चाची बीते दौर के बारे में बात करते हुए बताती हैं कि 90 के दशक में कहीं आना जाना आज की तरह आसान नहीं था. उनके गांव आनंदपुर से बस की सुविधाएं नहीं थी. इसके लिए उन्हें सरैया जाना पड़ता था. ऐसे में उन्होंने साइकिल सीखने की ठानी. साइकिल चलाने के लिए भी राजकुमारी को गांव के लोगों से बहुत कुछ सुनना पड़ा. ये वो दौर था जब गांव में महिलाओं के लिए साइकिल चलाना पाप समझा जाता था. किसान चाची ने किसी की भी बात पर ध्यान दिए बिना साइकिल सीखना जारी रखा. इसे चलाते हुए वह गिर भी गईं, जिसके बाद उन्हें डॉक्टर के पास मुजफ्फरपुर ले जाया गया. यहां डॉक्टर ने भी कहा कि 40 साल की उम्र में हड्डी टूट जाएगी तो परेशानी होगी, इसलिए इसे चलाना छोड़ दीजिए. लेकिन किसान चाची मानने वाली कहां थी. उन्होंने साइकिल चलाना सीखा और अपना सामान लेकर शहर तक इसे बेचने के लिए जाने लगी.अचार बनाना किया शुरू 2002 में किसान चाची ने स्वयं सहायता समूह के जरिए 350 से अधिक महिलाओं के साथ अचार बनान शुरू किया. किसान चाची अचार तैयार होने के बाद उसे साइकिल पर बेचने के लिए निकल पड़तीं. वह ये अचार 5-5 रुपये में बेचने लगीं. ऐसे में लोग उनका बहुत मजाक उड़ाते थे. इसके बाद किसान चाची ने अपनी टीम में से महिलाओं को अचार बेचने के लिए प्रशिक्षण देना शुरू किया. इसके बाद यह घर का अचार लोगों को पसंद आने लगा और इसकी बिक्री शुरू हो गई. पा ली सफलता Twitterआज के बिजनेस के बारे में किसान चाची बताती हैं कि दो कंपनियों के साथ उनका एग्रीमेंट है. खादी ग्रामोद्योग विभाग और बिहार सरकार के बिस्कोमान से प्रत्येक महीने उनके समूह को 5 से 10 लाख रुपये की कमाई होती है. किसान चाची और उनका समूह आज भी हाथ से ही अचार बनाते हैं. 11 मार्च 2019 को उन्हें उनके काम के लिए पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया.