बुंदेलखंड पानी की कमी और सूखे के लिए कुख्यात है. इसी बुंदेलखंड का एक किसान ऐसा भी है जिसने खेती की ऐसी तकनीक खोज निकली कि उस से किसानी के गुर सीखने विदेशों से किसान आते हैं. बांदा के रहने वाले प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह ने खेती में नए प्रयोग करते हुए अपने क्षेत्र की तस्वीर बदल दी.
नौकरी छोड़ करने लगे खेती
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80 के दशक में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एमबीए के पहले बैच से पोस्ट ग्रजुऐशन की पढ़ाई पूरी करने वाले प्रेम सिंह ने पढ़ाई के बाद लाखों युवाओं की तरह नौकरी को चुना लेकिन वह 9 से 5 की नौकरी नहीं कर पाए और और घर लौट आए. नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने अपने 25 एकड़ जमीन पर जैविक खेती शुरू की और फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. इतने साल में उन्होंने खेती की ऐसी तकनीक खोज ली है कि अब उनके पास आस-पास के कई किसान उनसे खेती की ट्रेनिंग लेने आते हैं.
करते हैं जैविक खेती
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बुंदेलखंड के जिला बांदा जिला मुख्यालय से लगभग 6 किलोमीटर की दूर स्थित गांव बड़ोखर खुर्द के रहने वाले प्रेम सिंह लगभग 30 साल से जैविक खेती कर रहे हैं. प्रेम सिंह के पास खेती की अनोखी तकनीक सीखने अपने देश ही नहीं, बल्कि 18 अलग-अलग देशों के किसान आ चुके हैं.
NBT की रिपोर्ट के अनुसार प्रेम बताते हैं:
‘हर किसान ऐसा कर सकता है. आज हम जैविक खेती की बात कर रहे हैं. जबकि हमारे यहां तो खेती की पद्धति ही जैविक थी. हमारे पास बाग थे, पशु थे. हम गोबर से खाद बनाते थे और खेतों में डालते थे. चूल्हे की राख से कीटों को भगाते थे. लेकिन, हमने तो जानवर पालना ही बंद कर दिया. अब हम बाजार की जहरीली खाद खरीदकर खेतों में डालते हैं.’
18 देशों के किसान सीखने आते हैं तकनीक
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उन्होंने आगे बताया कि जब वह पढ़ाई कर लौटे तो खेती शुरू कर दी. इसके लिए प्रेम सिंह ने पशुपालन और बागवानी का मॉडल अपनाया. एक हिस्से में जानवार पाले, दूसरे में उनके लिए चारे का इंतजाम किया और तीसरे में जैविक खेती शुरू की. इस विधि को आवर्तनशील खेती का नाम दिया. प्रेम सिंह की ये विधि सफल रही. इसके बाद तो उनकी इस विधि को सीखने के लिए इजरायल, अमेरिका और अफ्रीकी देशों के किसान भी आने लगे. उनके यहां अब तक 18 से ज्यादा देशों के किसान रिसर्च करने आ चुके हैं. प्रेम सिंह का कहना है कि इस तकनीक में में नुकसान होने के चांस बहुत कम होते हैं.’
प्रेम सिंह संतुलन पूर्वक खेती कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि खेती में संतुलन पांच प्रकार के होते हैं. जल संतुलन, वायु संतुलन, ताप संतुलन, उर्वरा और ऊर्जा संतुलन. वह खेती के जिस तरीके को अपना रहे हैं उसमें जितना पानी लेते हैं उससे ज्यादा रिचार्ज करते हैं. इसी तरह उत्पादन से कई गुना ज्यादा खेतों को खाद देते हैं. इसके लिए वह गाय, भैंस, बकरियां और मुर्गी पाल रहे हैं. उन्होंने बताया कि मुर्गी की खाद में कैल्शियम और फास्फोरश अधिक होता है.
वहीं बकरी की खाद में मिनरल बहुत होता है. इसी तरह गाय और भैंस की खाद में कर्बन की मात्रा होती है. इन सबको एक निश्चित प्रोसेस से गुजारकर वह खेतों में डालते हैं. ताप और वायु को ठीक रखने के लिए बाग और वन लगा रखे हैं.
दे रहे हैं रोजगार
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प्रेम सिंह अपनी उपज को सीधे बाजार में बेचने की बजाए उसके प्रोडक्ट बनाकर बेचते हैं. वह गेहूं से दलिया और आटा बनाते हैं, जो दिल्ली जैसे कई बड़े शहरों में ज्यादा कीमत पर बिकते हैं. इसके अलावा मुरब्बा, अचार, बुकनू आदि भी बनाते हैं. उन्होंने आसपास की गांवों की महिलाओं को काम पर रखते हुए उन्हें रोजगार दिया है.