कहते हैं नए काम की शुरुआत के लिए उम्र मायने नहीं रखती. एक अच्छा प्लान, उसे मुर्त रूप देने का विश्वास और फिर सतत परिश्रम आपको मंजिल तक पहुंचा देता है. ऐसा ही हुआ कर्नल सुभाष देसवाल के साथ. सेना से रिटायर होने के बाद उन्होंने एक दोस्त के साथ खेती शुरू की और आज उनकी कंपनी देश की सबसे बड़ी विलायती गाजर उत्पादकों में एक है.
कर्नल सुभाष देसवाल 21 साल तक सेना में रहें. इस दौरान छुट्टियों में गांव लौटते तो देखते साल-दर-साल किस तरह किसानी चौपट होती जा रही है. किसान परेशान होते जा रहे हैं. ऐसे में रिटायरमेंट के बाद वह दिल्ली से अपने गांव सिकंदराबाद लौट आए.
यहां उन्हें साथ मिला दोस्त किशन लाल यादव का और उन्होंने एक कंपनी बनाई जिसका नाम रखा सनशाइन वेजीटेबल्स प्राइवेट लिमिटेड. किशन केमिकल इंजीनियरिंग ग्रेजुएट हैं और एग्रीकल्चर-इनपुट डीलर के रूप में काम कर रहे थे.
दोनों ने मिलकर 2 एकड़ जमीन लीज पर ली. इसके बाद देसी उपकरण लाए और आलू, भिंडी और प्याज की खेती की. 3-4 साल का उनका प्रयास ठीक नहीं साबित हुआ और वे निराश होने लगे. इसके बाद साल 2005 में उन्होंने कुछ कृषि वैज्ञानिकों से संपर्कर किया.
इसी दौरान उन्हें विलायती गाजर की खेती की जानकारी हुई. इसकी खेती यूरोप में अच्छी होती है. इसकी खेती करने में उनकी आमदनी बढ़ गई. उसके बाद स्थानी एग्री डीलर्स से बीज बोने की मशीन, सब्जी धोने की मशीन, फसल काटने की मशीन और दूसरी मशीनें उन्होंने ली. इसके बाद फॉर्म एंगेजमेंट मॉडल की नींव रखी.
आज कर्नल देसवाल की कंपनी में 1000 कर्मचारी हैं. उनका दावा है कि बुलंदशहर के 500 से अधिक किसान अब रबी की फसलों को छोड़कर विलायती गाजर की खेती कर रहे हैं. सबकी आमदनी बढ़ गई है.