सप्ताह के व्रत त्योहार (31 अक्टूबर से 6 नवंबर 2022): जानिए गोपाष्टमी से लेकर देवोत्थान एकादशी और शनि प्रदोष व्रत तक का महत्व

Festival Of This Week : नवंबर माह के पहले सप्ताह कई प्रमुख व्रत त्योहार पड़ने वाले हैं। इसकी शुरुआत गोपाष्टमी से हो रही है और फिर देवोत्थान एकादशी, तुलसी विवाह, शनि प्रदोष व्रत आदि का आयोजन किया जाएगा। आइए जानते हैं इस सप्ताह के प्रमुख व्रत त्योहारों के बारे में…

festival of this week from gopashtami to dev uthani ekadashi 2022 and shani pradosh vrat and saptah ke vrat or tyohar 31 october to 6 november 2022
सप्ताह के व्रत त्योहार (31 अक्टूबर से 6 नवंबर 2022): जानिए गोपाष्टमी से लेकर देवोत्थान एकादशी और शनि प्रदोष व्रत तक का महत्व

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Weekly Vrat Tyohar: वर्तमान सप्ताह का शुभारंभ कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि और उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के साथ हो रहा है। यह शुक्ल पक्ष आगामी 8 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा वाले दिन समाप्त हो जाएगा। इससे अगले दिन यानी 9 नवंबर से मार्गशीर्ष का कृष्ण पक्ष आरंभ हो जाएगा। इस सप्ताह 2 नवंबर, बुधवार से पंचक भी लग रहे हैं जो 6 नवंबर, रविवार को समाप्त हो जाएंगे। इस सप्ताह शनि प्रदोष वाले दिन चातुर्मास भी समाप्त हो चुके होंगे और तुलसी विवाह का आरंभ हो जाएगा। तुलसी विवाह से भावार्थ यह है कि पिछले चार महीने से बंद पड़े विवाह आदि शुभ कार्य भी अब प्रारंभ हो जाएंगे। इस सप्ताह गोपाष्टमी, अक्षय नवमी, देवोत्थान एकादशी, तुलसी विवाह, शनि प्रदोष व्रत आदि का आयोजन किया जाएगा।

– डॉ. अश्विनी शास्त्री

गोपाष्टमी (1 नवंबर, मंगलवार)

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कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी को गोपाष्टमी का आयोजन किया जाता है। मुख्य रूप से यह गोपूजन से जुड़ा पर्व है। इस दिन गौ का पूजन किया जाता है। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने इस दिन से ही गायों को चराना आरंभ किया था। इससे पहले वे केवल गाय के बछड़ों को ही चराया करते थे। इस दिन सुबह उठकर गौ और उसके बछड़े का पूजन कर उनका शृंगार करना चाहिए और आरती उतारनी चाहिए। माना जाता है कि गौ के शरीर में अनेक देवताओं का वास होता है। इसलिए गौ की पूजा करने से उन देवताओं की भी पूजा स्वत: हो जाती है। गौ की परिक्रमा भी लाभ देती है। गीता में भी भगवान कृष्ण ने स्वयं कहा है कि ‘गवां मध्ये वसाम्यहम्’ अर्थात् मैं गायों के बीच में ही रहता हूं। कई बहनें जो भाई दूज पर अपने भाइयों को तिलक नहीं लगा पाती हैं वो भी इस दिन उन्हें तिलक लगाती हैं।

अक्षय नवमी (2 नवंबर, बुधवार)

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कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी का आयोजन किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि त्रेता युग का आरंभ इसी दिन हुआ था। कहा जाता है कि इस पुण्य तिथि पर दान, व्रत और पूजन आदि करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। इस दिन प्रात:काल उठकर शौच और स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान नारायण का ध्यान करते हुए ‘ओम् नमो भगवते वासुदेवाय’ इस मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए और यथाशक्ति दान देना चहिये।

देवोत्थान एकादशी (4 नवंबर, शुक्रवार)

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भाद्रपद मास की एकादशी को शयन करने के लिए गये भगवान विष्णु चार महीने के बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन निद्रा से जागे थे। इसलिए इस दिन को देवोत्थान एकादशी अथवा देव प्रबोधिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन चूंकि नारायण स्वयं निद्रा से जागे थे, इसलिए उपासक को भी इस दिन व्रत रखते हुए रात्रि जागरण करना चाहिए। इस दिन व्रत रखने से बड़े से बड़ा पाप भी नष्ट हो जाता है ऐसा कहा जाता है। इस दिन दान आदि का विशेष महत्व है इसलिए अपने सामर्थ्य के अनुसार दान अवश्य करना चाहिए।

भीष्म पंचक व्रत (4 नवंबर, शुक्रवार)

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कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक के पांच दिनों को भीष्म पंचक के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि इन पांच दिनों में ही मृत्यु शैय्या पर लेटे हुए भीष्म पितामह ने भगवान कृष्ण और पांडवों को राजधर्म का उपदेश दिया था। एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक व्रत रखने से व्रती को पुरुषार्थ चतुष्टय यानी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पूर्णिमा के दिन भीष्म पंचक व्रत समाप्त हो जाते हैं।

तुलसी विवाह (5 नवंबर, शनिवार)

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हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपतियों के कन्या नहीं होती, उन्हें जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त कर लेना चाहिए। इस दिन सारे घर को लीप-पोतकर साफ़ करना चाहिए तथा स्नानादि कर आंगन में भगवान विष्णु के चरणों को चित्रित करना चाहिए। घर के आंगन में गेरू से उनका चित्र बनाकर फल, पकवान, मिष्ठान, बेर, सिंघाड़े, ऋतुफल और गन्ना उस स्थान पर रखकर परात अथवा डलिया से ढक दिया जाता है तथा एक दीपक भी जला दिया जाता है। रात्रि को परिवार के सभी वयस्क सदस्य देवताओं का भगवान विष्णु सहित विधिवत् पूजन करने के बाद प्रात:काल भगवान को शंख, घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर जगाते हैं। इसी दिन ‘हरिप्रियायै नम:’ का उच्चारण 11 बार करके तुलसी की भी पूजा करनी चाहिए।

शनि प्रदोष व्रत (5 नवंबर, शनिवार)

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त्रयोदशी का व्रत भगवान शंकर को समर्पित होता है। क्योंकि त्रयोदशी का व्रत शाम के समय रखा जाता है इसलिए इसे प्रदोष व्रत कहा जाता है। सोमवार को यदि त्रयोदशी हो तो उसे सोम प्रदोष कहा जाता है और यदि मंगलवार को हो तो उसे भौम प्रदोष कहा जाता है। 5 नवंबर को शनिवार होने से शनि प्रदोष व्रत होगा। इस दिन भगवान शंकर की पूजा की जाती है। शिवजी की कृपा प्राप्त करने और पुत्र प्राप्ति की कामना से इस व्रत को किया जाता है। इस दिन ब्रह्मवेला में उठकर स्नानादि कर सबसे पहले ‘अहमद्य महादेवस्य कृपाप्राप्त्यै सोमप्रदोषव्रतं करिष्ये’ यह कहकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और फिर शिवजी की पूजा करके सारा दिन उपवास रखना चाहिए। शाम के समय एक बार फिर से स्नान करके महादेव की अर्चना करके अन्न ग्रहण करना चाहिए।