प्रदेश के राजगढ़ जिले स्थित खिलचीपुर ब्लॉक के नाटाराम गांव की 24 वर्षीय आशा राजूबाई मालवीय दो बहनों में सबसे बड़ी है। तीन साल की उम्र में पिता की मौत हो गई है। गरीब परिवार में पली-बढ़ी आशा और उसकी छोटी बहन को लेकर मां अपने पिता के घर आ गई। यहां पर मजदूरी कर दोनों बेटियों को पढ़ाया।
आशा ने बताया कि आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने और मजदूरी नहीं मिलने से कई बार भूखे सोए। छठी में पहुंची तो छह किमी दूर छापेड़ा गांव में स्कूल था। दो साल तक पैदल आना-जाना किया। कक्षा आठवीं में परिवार के परिचित आशाराम शर्मा ने पुरानी हीरो साइकिल दी। उस समय ही साइकिल चलाना सीख गई। घर में बड़ी बेटी होने की वजह से जिम्मेदारी का अहसास था। 12वीं कक्षा में पढ़ाई के समय गाड़ियों के शोरूम में काम कर अपनी पढ़ाई और घर खर्च में मदद की।
आशा ने बताया कि जब वह यात्रा शुरू करने को लेकर लोगों के पास मदद मांगने गई तो उन सबने दुत्कारा। कुछ ने तो कहा कि लड़की कैसे अकेले भारत भ्रमण करेगी। नकारात्मक लोगों से एक बार इच्छा शक्ति भी जवाब देने लगी। एक महीने पहले संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर से मिलने का मौका मिला और उन्हें अपनी इच्छा बताई। उन्होंने उत्साह दिखाया और पर्यटन बोर्ड की तरफ से साइकिल और साइकिलिंग किट भेंट की गई।
आशा ने यात्रा को लेकर कहा कि मैं इस सफर को दुनिया की ऐसी यात्रा बनाना चाहती हूं कि दुनिया में संदेश जाए कि मध्यप्रदेश समेत भारत में बेटियां कितनी सुरक्षित हैं। साथ ही पर्यावरण संरक्षण को लेकर जनता को जागरूक करना यात्रा का उद्देश्य है।