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”राहों में मुसीबत आई, पर मैंने हार नहीं मानी, मंजिल पर पहुँच कर लिखूँगा, अपनी सफलता की कहानी”. उपरोक्त पंक्तियां मध्य प्रदेश के शिवकांत कुशवाहा पर बिलकुल फिट बैठती है. जो गरीबी से निकलकर कुछ बनने का सपना देखा. सब्जी बेचीं, भूखे रहे. चार बार असफलता भी मिली. लेकिन हिम्मत नहीं हारी. पांचवी मर्तबा जज बनकर अपनी दिवंगत मां के सपने को पूरा किया. जो उनके संघर्ष और मेहनत का नतीजा है.
गरीबी में बीता बचपना
दरअसल मध्यप्रदेश के सतना जिले के अमरपाटन के रहने वाले शिवकांत कुशवाहा का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ. उनके पिता मजदूरी करते हैं. घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. किसी तरह दो वक्त के खाने का प्रबंध हो पाता था. एक कच्चे मकान में परिवार गुजर बसर करता था.
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वहीं शिवकांत को बचपन से ही पढ़ने का शौक था. वो कुछ बनने का सपना देखने लगे. बेटे के पढ़ाई में अच्छे होने की वजह से मां ने उसे जज बनाने का सपना देखा था. लेकिन हालात के मद्देनजर शिवकांत के लिए यह आसान नहीं था. घर का खर्च चलाने के लिए मां भी मजदूरी करती थीं. शिवकांत का बचपना गरीबी में बीता. अपने पुराने दिनों को याद करते हुए शिवकांत बताते हैं कि मजदूरी करके जब माता-पिता वापस घर आते थे. तब हमारे यहां उस दिन का राशन आता था. एक दिन मैं राशन लाने गया था. तभी मौसम ख़राब हो गया. जोरदार बारिश होने लगी. मैं राशन लेकर जब वापस आ रहा था. तो गड्डे में फिसलकर गिर गया. मेरे सिर में चोट आई थी. मैं बेहोश हो गया था. जब मैं देर रात तक वापस घर नहीं लौटा. तो मां ढूंढते हुए बेहोशी की हालत में वापस घर ले गईं थीं.
सब्जी का ठेला लगाते थे
पढ़ाई करने के दौरान उन पर गमों का पहाड़ टूट पड़ा. साल 2013 में उनकी मां चल बसीं. मां की जुदाई शिवकांत के लिए आसान नहीं थी. लेकिन मां ने उनके लिए जो सपना देखा था. उसे शिवकांत किसी भी हाल में पूरा करने की ठान ली थी. घर की आर्थिक हालात को देखते हुए पढ़ाई करने के साथ कमाने भी लगे. शिवकांत सब्जी का ठेला लगाते. वहीं जब गर्मी का मौसम आता तब वे गन्ने का जूस बेचकर अपना पेट पालते.
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चार बार मिली असफलता
तमाम मुसीबतें आईं, लेकिन शिवकांत ने हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई अमरपाटन के सरदार पटेल स्कूल से पूरी की. इसके बाद अमरपाटन शासकीय कॉलेज में एडमीशन ले लिया. ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल करने के बाद ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय से LLB की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद शिवकांत कोर्ट में प्रैक्टिस करने के साथ-साथ सिविल जज की तैयारी करने लगे. लेकिन एक बार नहीं पूरे चार बार उन्हें असफलता मिली. बावजूद इसके शिवकांत पीछे नहीं हटे. वे मेहनत करते रहे.
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फिर बने सिविल जज, पत्नी का भी मिला साथ
शिवकांत लगातार असफल हो रहे थे. उनकी शादी भी हो चुकी थी. उनकी पत्नी मधु निजी स्कूल में पढ़ाती हैं. उन्होंने भी अपने पति का बहुत सहयोग किया. उनके मनोबल को बनाए रखीं. एक मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मधु पति शिवकांत की राइटिंग सुधारने में भी उनकी मदद करतीं. उनकी कॉपी भी चेक करतीं. जहां गलतियां होतीं उन्हें मार्क कर देतीं. उनका प्रोत्साहन बढ़ाती रहीं.
शिवकांत भी लगे रहे. अंततः पांचवें प्रयास में उन्हें सफलता हासिल हुई. शिवकांत ने अपने दिवंगत मां के सपने को पूरा कर दिया. उन्होंने बिना कोचिंग किए, सेल्फ स्टडी के दम पर सिविल जज की परीक्षा पास की थी. उनको ओबीसी वर्ग में पूरे प्रदेश में दूसरा स्थान प्राप्त हुआ है. जो उनकी मेहनत और संघर्ष का नतीजा है.