पिता सड़क किनारे बेचते हैं टोपियां, बेटी गरीबी से लड़ी और उसे हरा कर 12वीं में पाए 96.6%, बनी टॉपर

Indiatimes

गरीबी एक ऐसा दानव है जो अच्छे भले हुनर को खा जाता है. लोग भूख की आग में अपने बच्चों तक का भविष्य जलाने पर मजबूर हो जाते हैं. लेकिन वहीं, जिसे कुछ करना होता है वो हर परिस्थिति से लड़ता है और सफलता हासिल करता है. सिमरन नौरीन उन्हीं चंद लोगों में से एक हैं जो अपनी सफलता के लिए गरीबी से भिड़ गईं और उसे हरा दिया.   

गरीबी से लड़ कर बनीं रांची टॉपर 

Result Twitter

उर्सुलाइन कॉन्वेंट गर्ल्स स्कूल, रांची में 12वीं साइंस की स्टूडेंट सिमरन नौरीन ने गरीबी से जूझते हुए शानदार सफलता हासिल की है. उन्होंने 478 अंक लाकर रांची जिले में पहला स्थान प्राप्त किया है. 96.6 प्रतिशत अंक के साथ रांची की टॉपर बनी सिमरन ने पूरे राज्य में पांचवां स्थान प्राप्त किया है. सिमरन के पिता जशीम अख्तर हाट-बाजार में फुटपाथ पर टोपी बेचते हैं. वहीं, मां इशरत जहां घर का कामकाज संभालती हैं. 

10वीं में भी किया था टॉप 

Simran Facebook

सिमरन अपनी दो बहनों में छोटी हैं. उनकी बड़ी बहन आरफा फिजिक्स से पीजी कर रही हैं. रिजल्ट जारी होने के बाद सिमरन अपनी मां के साथ स्कूल पहुंची और रिजल्ट देखने के बाद उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उन्होंने कहा कि 10वीं परीक्षा में भी उन्होंने टॉप रैंक हासिल किया था. उन्हें पूरा भरोसा था कि 12वीं में भी अच्छा रैंक मिलेगा. 

सिमरन 10वीं में टाप करने के बाद आगे सीबीएसई स्कूल में दाखिला लेना चाहती थीं लेकिन उनके पिता की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि उनका दाखिला किसी प्राइवेट स्कूल में करवा सकते. वह अपनी कमाई से इतने महंगे स्कूल की फीस भरने में सक्षम नहीं थे. इसके बाद सिमरन को अपना मं मारना पड़ा और उर्सलाइन स्कूल से ही अपनी पढ़ाई जारी रखी. 

पिता बेचते हैं टोपियां  

सिमरन हमेशा से ही परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते आ रही है. इसने उनके मन मस्तिष्क पर गहरा असर डाला है. उन्होंने करीब से देखा है कि माता-पिता की जवानी गरीबी और तंगहाली में गुजरी है. ऐसे में सिमरन खून पढ़ लिख कर अपने परिवार की आर्थिक तंगी को हमेशा के लिए दूर करना चाहती हैं.

सिमरन की मां इशरत जहां का कहना है कि उनके पति हाट बाजार में टोपी व अन्य सामान बेचकर घर का खर्च चलाते हैं. लाकडाउन में उनके लिए समस्या तब खड़ी हो गई जब हाट बाजार लगना बंद हो गया. ऐसे में परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना भी बड़ी समस्या बन गई. ऐसे कठिन समय में एक बार इनके मन में आया कि अब उनकी बेटियों आगे नहीं पढ़ पाएंगी. इसके बावजूद पिता ने जैसे-तैसे पढ़ाई का खर्च पूरा किया गया. इशरत जहां के अनुसार बुरे दिन बीत गए. उनकी बेटियां अपनी प्रतिभा से झारखंड का नहीं बल्कि देश का नाम रोशन करेंगी.