Ayodhya Ram Mandir: अयोध्या के रामजन्म भूमि मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास के बयान अकसर चर्चा में रहते हैं। वह कभी राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का समर्थन करते नजर आते हैं कभी मंदिर ट्रस्ट पर अपनी नाराजगी जताते हैं। ऐसे में मन में यह सवाल उठता है कि आखिर रामलाल के मुख्य पुजारी की राजनीति में इतनी रुचि क्यों है।
अयोध्या: राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की महत्वाकांक्षी ‘भारत जोड़ो’ (Bharat Jodo Yatra) यात्रा पिछले चार महीने के बाद अब अपने अंतिम चरण में यूपी में प्रवेश कर चुकी है। मंगलवार को राहुल गाजियाबाद पहुंचे। इस मौके पर बीजेपी ने इस यात्रा का मजाक उड़ाते हुए इसे ‘परिवार जोड़ो’ यात्रा का नाम दिया। लेकिन बीजेपी की राजनीति का केंद्र बिंदु रहे राम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने एक दिन पहले राहुल गांधी को पत्र लिखकर यात्रा की सफलता की कामना करते हुए उन्हें आशीर्वाद दिया। हालांकि, उससे पहले उन्होंने कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद के उस बयान की निंदा की जिसमें उन्होंने राहुल की तुलना भगवान राम से की थी। मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास की उम्र इस समय लगभग 87 साल है फिर भी गाहे-बगाहे उनके बयान चर्चा में रहते ही हैं।
सत्येंद्र दास पिछले 31 साल से राम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी रहे हैं। इसके बावजूद उनके न तो विश्व हिंदू परिषद से अच्छे रिश्ते रहे और न ही वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बहुत नजदीक रहे हैं। साल 2019 में जब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बना उस समय सत्येंद्र दास को आशंका थी कि उन्हें मुख्य पुजारी पद से हटा दिया जाएगा।
लेकिन ऐसा हुआ नहीं और ट्रस्ट ने उन्हीं को मुख्य पुजारी बनाए रखा, लेकिन इसके बाद भी उनका ट्रस्ट पर से अविश्वास दूर नहीं हुआ। कुछ दिनों पहले उन्होंने ट्रस्ट की ‘अव्यवस्था’ पर टिप्पणी करते हुए कहा था, समझ नहीं आता कि ट्रस्ट में कितने लोग हैं और किसकी क्या जिम्मेदारी है। जो भी आता है ट्रस्टी बन जाता है।’ प्रसाद वितरण व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा था, यहां पुजारी नहीं मजदूर प्रसाद बांट रहे हैं।
आज से चार साल पहले उन्होंने विश्व हिंदू परिषद, संघ के साथ अपने रिश्तों पर कहा था, ‘साफ कहूं, तो मेरा रिश्ता इन लोगों से मधुर नहीं रहा है। क्योंकि, मैं वही करता व कहता था जिसमें सच्चाई रहे। यह बात इन लोगों को पसंद नहीं आती थी। संघ वाले चाहते थे कि मैं उनका मुखौटा बन कर काम करूं। जिस पर मैंने समझौता नहीं किया।
जब उनसे पूछा गया कि संघ परिवार व आप के बीच मतांतर की असली वजह क्या है? तो उन्होंन जवाब दिया, ‘इसके दो कारण हैं। पहला, मैंने उनका मुखौटा बनकर काम नहीं किया। जो सही लगा वही बोला, वही किया भी। दूसरा विरोध व नाराजगी उसी समय से शुरू हुई जब वीएचपी नेता अशोक सिंहल एक बार कोर्ट के आदेश को तोड़ कर कई समर्थकों के साथ रामलला की पूजा करने पहुंच गए थे। मुझ पर प्रशासन व वीएचपी का दबाव पड़ा कि घटना से इनकार कर दूं। पर मैने सच्चाई पत्रकारों व प्रशासन को अपने बयान में दे दी। जिसके बाद ये सभी अरेस्ट किए गए थे। उसके बाद से आज तक मेरे इन लोगों से मधुर रिश्ते नहीं बने।’
आचार्य सत्येंद्र दास मुख्य पुजारी बनने से पहले संस्कृत स्कूल में शिक्षक थे। अपनी नियुक्ति के बारे में वह कहते हैं, विवादित ढांचे के विध्वंस के बाद 5 मार्च, 1992 को विवादित स्थल के तत्कालीन रिसीवर ने मेरी पुजारी के तौर पर नियुक्ति की। उस समय, मैं संस्कृत स्कूल में शिक्षण कार्य करता था।
जहां तक बात रही उनके बयानों पर ट्रस्ट की प्रतिक्रिया न देने की तो जानकारों का कहना है कि ट्रस्ट में यह समझ है कि आचार्य लंबे समय से मुख्य पुजारी रहे हैं। उनकी उम्र भी 90 साल के आसपास है। ऐसे में उनके नाराजगी भरे बयानों या टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देने से कुछ सकारात्मक हासिल नहीं होगा, उलटे विरोधियों को मसाला मिल जाएगा। इसलिए आचार्य सत्येंद्र दास के बयानों में राजनीतिक महत्वकांक्षा न देखकर यही माना जाता है कि चर्चा में रहने वाले बयान देना उनकी आदत है जिसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता।