Maharashtra Political Crisis: शिवसेना में बगावत की पांच बड़ी वजह, जानिए अब आगे क्या होगा?

महाराष्ट्र में सियासी उथल-पुथल जारी है। शिवसेना के कई विधायक बागी हो चुके हैं। इनका नेतृत्व उद्धव सरकार में मंत्री एकनाथ शिंदे कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि एकनाथ के साथ करीब 46 विधायक हैं। विधायकों के बागी होने के चलते अब उद्धव सरकार खतरे में है।
ऐसे में बार-बार ये सवाल उठ रहा है कि आखिर ये नौबत ही क्यों आई? क्या कारण थे कि शिवसेना के विधायक बागी हो गए? अब आगे क्या होगा?

1. गठबंधन से नाखुश थे शिवसेना विधायक: 2019 में जब कांग्रेस और एनसीपी के साथ शिवसेना ने गठबंधन का फैसला लिया तभी पार्टी में इसको लेकर नाराजगी की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी। हालांकि, उस दौरान ठाकरे परिवार के आगे किसी ने अपनी नाराजगी को जाहिर नहीं किया।
शिवसैनिकों का मानना है कि एनसीपी और कांग्रेस शिवसेना के विचारधारा के बिल्कुल विपरीत हैं। बाला साहेब ठाकरे का ये लोग सम्मान भी नहीं करते हैं। ऐसे में उनके साथ जाने का मतलब बाला साहेब ठाकरे की विचारधारा के साथ समझौता करना।
2. हिंदुत्व का मुद्दा पीछे हुआ : गठबंधन की सरकार बनने के बाद से शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे पर हिंदुत्व के मुद्दे पर समझौता करने का आरोप लगने लगा। फिर वह पालघर में साधुओं की लिंचिंग का मुद्दा हो गया मस्जिद से अजान और सड़कों पर नमाज का मुद्दा।
इसके अलावा सांसद नवनीत राणा को हनुमान चालीसा का पाठ करने पर हुई गिरफ्तारी भी शिवसैनिकों की नाराजगी का कारण बनी। वहीं, राहुल गांधी ने भी जब हिंदुत्व को लेकर आलोचना की तो शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कुछ नहीं बोला। हिंदुत्व और मराठा के मुद्दे पर शिवसैनिक एकजुट होते हैं और ये दोनों मुद्दे उद्धव सरकार के लिए पीछे छूटते जा रहे थे। लगातार हिंदुत्व के मुद्दे पर शिवसेना प्रमुख का रवैया देखकर शिवसेना विधायक भी नाराज थे।
इसके अलावा सांसद नवनीत राणा को हनुमान चालीसा का पाठ करने पर हुई गिरफ्तारी भी शिवसैनिकों की नाराजगी का कारण बनी। वहीं, राहुल गांधी ने भी जब हिंदुत्व को लेकर आलोचना की तो शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कुछ नहीं बोला। हिंदुत्व और मराठा के मुद्दे पर शिवसैनिक एकजुट होते हैं और ये दोनों मुद्दे उद्धव सरकार के लिए पीछे छूटते जा रहे थे। लगातार हिंदुत्व के मुद्दे पर शिवसेना प्रमुख का रवैया देखकर शिवसेना विधायक भी नाराज थे।
3. एनसीपी ने शिंदे से मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन ली : जब शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी का गठबंधन हो रहा था तो एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री की दौड़ में सबसे आगे थे। कहा जाता है कि शिवसेना ने शिंदे के नाम का ही प्रस्ताव दिया था, लेकिन तब एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने इसे काट दिया। उन्होंने कहा कि ठाकरे परिवार से कोई मुख्यमंत्री बनेगा तभी सही होगा। इसके बाद मंत्रिमंडल बंटवारे में भी शिंदे को ज्यादा तवज्जो नहीं मिली। इसी से शिंदे और उनके खेमे के विधायक नाराज बताए जा रहे हैं।
4. विधायकों से नहीं मिलते उद्धव : विधायकों की नाराजगी का एक बड़ा कारण ये भी है कि उद्धव ठाकरे हमेशा नॉट रिचेबल रहते हैं। मतलब वह अपने विधायकों और नेताओं से काफी कम ही मिलते हैं। उनका ज्यादातर काम उनके बेटे आदित्य ठाकरे ही करते हैं। कोई समस्या होती है तो विधायकों को ये मालूम नहीं होता कि वह किससे संपर्क करें।
5. क्षेत्र के विकास के लिए फंड भी नहीं मिलता : कई शिवसेना विधायक शिकायत कर चुके हैं कि उन्हें उनके क्षेत्र में विकास के लिए फंड नहीं मिलता है। महाराष्ट्र में अभी वित्त मंत्रालय डिप्टी सीएम अजीत पवार के पास है। अजीत एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीजे हैं। आरोप है कि एनसीपी विधायकों के लिए तो फंड जारी होता है, लेकिन शिवसेना विधायकों के लिए नहीं होता है। यही आरोप कांग्रेस के विधायक भी लगाते हैं।
अब आगे क्या ?
ये जानने के लिए हमने महाराष्ट्र की राजनीति पर अच्छी पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार शुभम तावड़कर से बात की। उन्होंने कहा कि मौजूदा हालात देखते हुए दो विकल्प साफ दिख रहे हैं। पहला यह कि उद्धव ठाकरे अपनी पूरी कैबिनेट के साथ इस्तीफा दे दें। इसके साथ ही वह विधानसभा भंग करने की मांग भी कर सकते हैं। हालांकि, विधानसभा भंग करने का फैसला राज्यपाल का होगा। दूसरा यह कि इस्तीफा देने के बाद वापस भाजपा के साथ गठबंधन की सरकार बना लें, जिसकी मांग शिवसेना के विधायक कर रहे हैं।
ये जानने के लिए हमने महाराष्ट्र की राजनीति पर अच्छी पकड़ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार शुभम तावड़कर से बात की। उन्होंने कहा कि मौजूदा हालात देखते हुए दो विकल्प साफ दिख रहे हैं। पहला यह कि उद्धव ठाकरे अपनी पूरी कैबिनेट के साथ इस्तीफा दे दें। इसके साथ ही वह विधानसभा भंग करने की मांग भी कर सकते हैं। हालांकि, विधानसभा भंग करने का फैसला राज्यपाल का होगा। दूसरा यह कि इस्तीफा देने के बाद वापस भाजपा के साथ गठबंधन की सरकार बना लें, जिसकी मांग शिवसेना के विधायक कर रहे हैं।

अब जानिए बगावत की पूरी कहानी?
बगावत की ये कहानी सोमवार 20 जून से शुरू हुई। उस दिन एमएलसी की 10 सीटों पर चुनाव हुए। इसके लिए 11 उम्मीदवार मैदान में थे। महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) यानी शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन ने छह उम्मीदवार उतारे थे तो भाजपा ने पांच।
शिवसेना गठबंधन के पास सभी छह उम्मीदवारों को जिताने के लिए पर्याप्त संख्या बल था, लेकिन वह एक सीट हार गई। इन पांच में कांग्रेस को केवल एक सीट मिली और एनसीपी-शिवसेना के खाते में दो-दो सीटें आईं। यानी, एमएलसी चुनाव में बड़े पैमाने पर क्रॉस वोटिंग हुई है। इसके साथ ही निर्दलीयों ने भी भाजपा को समर्थन दिया।
बगावत की ये कहानी सोमवार 20 जून से शुरू हुई। उस दिन एमएलसी की 10 सीटों पर चुनाव हुए। इसके लिए 11 उम्मीदवार मैदान में थे। महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) यानी शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन ने छह उम्मीदवार उतारे थे तो भाजपा ने पांच।
शिवसेना गठबंधन के पास सभी छह उम्मीदवारों को जिताने के लिए पर्याप्त संख्या बल था, लेकिन वह एक सीट हार गई। इन पांच में कांग्रेस को केवल एक सीट मिली और एनसीपी-शिवसेना के खाते में दो-दो सीटें आईं। यानी, एमएलसी चुनाव में बड़े पैमाने पर क्रॉस वोटिंग हुई है। इसके साथ ही निर्दलीयों ने भी भाजपा को समर्थन दिया।
फिर क्या हुआ?
कहा जा रहा है नाखुश विधायकों ने महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री एकनाथ शिंदे का साथ दिया और शिवसेना गठबंधन को झटका दे दिया। ये सभी गुजरात पहुंच गए हैं। एकनाथ शिंदे के साथ जो विधायक गुजरात गए हैं, उनमें महाराष्ट्र सरकार के तीन मंत्री भी हैं। इसके साथ करीब 46 विधायकों के साथ होने का एकनाथ दावा कर रहे हैं। इनमें कुछ निर्दलीय भी हैं। जैसे ही शिवसेना को ये बात मालूम चली, उद्धव ठाकरे ने पार्टी के तीन नेताओं को सूरत भेज दिया, जहां सारे विधायक ठहरे हुए थे। बागी विधायकों ने उद्धव ठाकरे के प्रतिनिधिमंडल से साफ कह दिया कि अगर शिवसेना वापस भाजपा के साथ गठबंधन कर ले तो सभी विधायक वापस आ जाएंगे। देर रात बागी विधायक गुजरात से निकलकर असम पहुंच गए।
कहा जा रहा है नाखुश विधायकों ने महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री एकनाथ शिंदे का साथ दिया और शिवसेना गठबंधन को झटका दे दिया। ये सभी गुजरात पहुंच गए हैं। एकनाथ शिंदे के साथ जो विधायक गुजरात गए हैं, उनमें महाराष्ट्र सरकार के तीन मंत्री भी हैं। इसके साथ करीब 46 विधायकों के साथ होने का एकनाथ दावा कर रहे हैं। इनमें कुछ निर्दलीय भी हैं। जैसे ही शिवसेना को ये बात मालूम चली, उद्धव ठाकरे ने पार्टी के तीन नेताओं को सूरत भेज दिया, जहां सारे विधायक ठहरे हुए थे। बागी विधायकों ने उद्धव ठाकरे के प्रतिनिधिमंडल से साफ कह दिया कि अगर शिवसेना वापस भाजपा के साथ गठबंधन कर ले तो सभी विधायक वापस आ जाएंगे। देर रात बागी विधायक गुजरात से निकलकर असम पहुंच गए।

अब कैबिनेट की बैठक, उद्धव दे सकते हैं इस्तीफा
उधर, सियासी संकट के बीच मंगलवार को ही उद्धव ठाकरे ने कैबिनेट की पहली बैठक बुलाई। इसमें केवल 20 विधायक शामिल हुए। बुधवार को फिर से उद्धव ने कैबिनेट की बैठक बुलाई। हालांकि, इस बीच वह कोरोना संक्रमित भी हो गए हैं। कहा जा रहा है कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से कैबिनेट की बैठक करने के बाद वह अपना इस्तीफा राज्यपाल को भेज देंगे। इससे पहले उनके बेटे और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री आदित्य ठाकरे ने भी अपने ट्वीटर बायो से मंत्री पद के जिक्र को हटा दिया है। उधर, राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के सभी संक्रमित होने की खबर है
उधर, सियासी संकट के बीच मंगलवार को ही उद्धव ठाकरे ने कैबिनेट की पहली बैठक बुलाई। इसमें केवल 20 विधायक शामिल हुए। बुधवार को फिर से उद्धव ने कैबिनेट की बैठक बुलाई। हालांकि, इस बीच वह कोरोना संक्रमित भी हो गए हैं। कहा जा रहा है कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से कैबिनेट की बैठक करने के बाद वह अपना इस्तीफा राज्यपाल को भेज देंगे। इससे पहले उनके बेटे और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री आदित्य ठाकरे ने भी अपने ट्वीटर बायो से मंत्री पद के जिक्र को हटा दिया है। उधर, राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के सभी संक्रमित होने की खबर है
आंकड़े क्या कहते हैं ?
सत्ता पक्ष के साथ इस वक्त 169 विधायकों का समर्थन है। इनमें से 46 विधायक बागी बताए जा रहे हैं। ये अगर अपना समर्थन वापस लेते हैं तो सत्ता पक्ष के पास 129 विधायकों का साथ ही रह जाएगा। विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा भी 145 है। ऐसे में उद्धव सरकार गिरना तय है। इसके बावजूद बागी विधायकों की सदस्यता नहीं जाएगी।
दरअसल, शिवसेना के कुल 56 विधायक हैं। किसी धड़े को पार्टी से अलग होने के लिए दो तिहाई यानी कम से कम 38 विधायक होने जरूरी है। बागी विधायकों के पास इससे कहीं ज्यादा संख्या है।
सत्ता पक्ष के साथ इस वक्त 169 विधायकों का समर्थन है। इनमें से 46 विधायक बागी बताए जा रहे हैं। ये अगर अपना समर्थन वापस लेते हैं तो सत्ता पक्ष के पास 129 विधायकों का साथ ही रह जाएगा। विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा भी 145 है। ऐसे में उद्धव सरकार गिरना तय है। इसके बावजूद बागी विधायकों की सदस्यता नहीं जाएगी।
दरअसल, शिवसेना के कुल 56 विधायक हैं। किसी धड़े को पार्टी से अलग होने के लिए दो तिहाई यानी कम से कम 38 विधायक होने जरूरी है। बागी विधायकों के पास इससे कहीं ज्यादा संख्या है।
तो भाजपा की बनेगी सरकार?
एकनाथ शिंदे 46 विधायकों के बागी होने का दावा कर रहे हैं। इसमें कुछ निर्दलीय विधायक भी हैं। इसके साथ ही भाजपा निर्दलीय और अन्य छोटे दलों के कुल 13 विधायकों के समर्थन का दावा कर रही है। इस स्थिति में भाजपा के 106 विधायकों को मिलाकर भाजपा के पक्ष में संख्याबल 165 हो जाएगा। जो बहुमत के आंकड़े से कहीं ज्यादा है।
एकनाथ शिंदे 46 विधायकों के बागी होने का दावा कर रहे हैं। इसमें कुछ निर्दलीय विधायक भी हैं। इसके साथ ही भाजपा निर्दलीय और अन्य छोटे दलों के कुल 13 विधायकों के समर्थन का दावा कर रही है। इस स्थिति में भाजपा के 106 विधायकों को मिलाकर भाजपा के पक्ष में संख्याबल 165 हो जाएगा। जो बहुमत के आंकड़े से कहीं ज्यादा है।