मिला 25 करोड़ साल पुराने विशालकाय समुद्री बिच्छू का जीवाश्म, इस ‘समुद्री शैतान’ का था धरती पर राज

दुनिया एक से एक रहस्यमयी चीजों से भरी पड़ी है. आज की आधुनिकता के दौर में हम कई बार ये बात भूल जाते हैं कि हमारे वजूद में आने से लाखों साल पहले भी इस दुनिया में जीवन था और हमारे जाने के लाखों साल बाद भी यहां जीवन रहेगा. हमें इन बातों का ध्यान तब आता है जब धरती पर लाखों साल पुरानी कोई चीज मिलती है. ऐसी ही एक चीज ऑस्ट्रेलिया में खोजी गई है जो कि 25 करोड़ साल पुरानी है.   

25 करोड़ साल पुराना बिच्छू 

Sea Scorpion BBC

जी हां ऑस्ट्रेलिया में बिच्छू का जीवाश्म मिला है. ये बिच्छू एक ऐसी प्रजाति से है जिनका वजूद धरती पर करीब 25 करोड़ साल पहले था. ये कोई आम बिच्छू नहीं बल्कि एक विशालकाय समुद्री बिच्छू है. इसी वजह से तो इसे समुद्री शैतान के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि एक समय था जब वुडवार्डोप्टेरस फ्रीमैनोरम (Woodwardopterus Freemanorum) नामक इस बिच्छू का राज नदियों से लेकर समंदर और झीलों तक चलता था.

1990 में मिला था पहला जीवाश्म 

Sea Scorpion Twitter

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार ये एक मीटर लंबा बिच्छू ताजा पानी में रहना पसंद करता था. बता दें कि इस विशालकाय बिच्छू का जीवाश्म पहली बार 1990 के दौरान सेंट्रल क्वींसडलैंड के ग्रामीण इलाके में मिला था. इसके बाद इस पर शोध किए जाने लगे. लंबे समय से स्टडी के लिए रखे गए इस बिच्छू का जीवाश्म अब क्वींसलैंड के म्यूजियम में रखा गया है. 

दुनिया में मौजूद अन्य बिच्छुओं की प्रजातियों से इस जीवाश्म की तुलना करते हुए इस पर गहन अध्ययन किया जा रहा है. इस रिसर्च में इस जीवाश्म और अन्य बिच्छुओं की प्रजाति के बीच की समानताओं पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. इस जीवाश्म पर हो रहे रिसर्च में कोरोना काल में तेजी आई क्योंकि इस दौरान लॉकडाउन लगा था और म्यूजियम आम लोगों के लिए बंद था. यह जीवाश्म किसी अन्य प्रजाति से करीब एक करोड़ साल नया बताया जा रहा है. 

अपनी तरह की ये अंतिम प्रजाति थी! 

 

क्वींसलैंड म्यूजियम के अधिकारी एंड्रयू रोजेफेल्डस के अनुसार कोयले के बीच प्रिजर्व इस इस समुद्री बिच्छू का जीवाश्म करीब 25.2 करोड़ साल पुराना है. उन्होंने कहा कि जीवाश्म पर गहन शोध की गई जिसे वैज्ञानिक भाषा में यूरिप्टेरिडा कहा जाता है. रोजेफेल्डस के मुताबिक यह पूरी दुनिया में अपनी तरह का आखिरी यूरिप्टेरिडा था. 

वैज्ञानिकों की मानें तो इसके बाद अनोखे जीव की प्रजाति की दुनिया से खत्म हो गई थी. अब इस जीवाश्म पर हो रहे रिसर्च से पता लगाया जाएगा कि बिच्छू की इस प्रजाति की यात्रा कितनी लंबी रही है. इसके साथ ही यह जानकारी भी जुटाई जाएगी कि क्या इस तरह के बिच्छू ऑस्ट्रेलिया में ही मौजूद थे या फिर दुनिया के अन्य देशों में भी फैले हुए थे.